भारत मां है सिसक रही, वेदना से पीड़ित पिहक रही ......

 


राष्ट्र भाषा----

राष्ट्र भाषा के अभाव में,

गूगा देश है, जनता गूंगी।

कहती है भाषा हिंदी कि

देश की अभिव्यक्ति मैं ही रहूंगी।।

भारत मां है सिसक रही,

वेदना से पीड़ित पिहक रही,

कहना चाहे पर न कहती है,

हो मौन पिहकती रहती है,यह

शायद पीड़ा की अतिशयता है,

कहां गायब हुई इयत्ता है,

राष्ट्र भाषा हमेशा से रही,

राष्ट्र की असली अस्मिता है।

तब आज हुआ आखिर क्या है,

हिंदी में नहीं होता बयां है,

क्या बाधा है क्या पीड़ा,

जो मौन हो रही वीणा है।

भाषिक गुलामी अपनाते हो

और फूले नहीं समाते हो।

अब शर्म आयेगी तुझको तब

तू पुकारेगा मां न बोलेगी,

भाषा का अधूरा ज्ञान लिए

तू चीत्कारेगा पर वह मुख ना खोलेगी।

देखो विदेशियत ओढ़ पहन कर ऐसा स्वांग रचाओ ना।

भारत माता की अभिव्यक्ति को अब विक्लांग बनाओ ना।

बहुत सिसक चुकी मां भारती

अब न सिसकी लेगी न रोएगी।

अपनों से अपनी भाषा में बात

करेगी भाव के मोती पिरोएगी ‌‌।

भारत मां की प्यारी इच्छा कि,

अपने बच्चों को न भटकने दूंगी।

 ले संकल्प हमारी जनता,

    ना होगी बहरी गूंगी।

डा पूनम श्रीवास्तव असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी विभाग सल्तनत बहादुर पी जी कालेज बदलापुर जौनपुर।

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