वैदिक मंत्रोच्चारण और प्रभु के नाम के जयकारे से प्रारंभ हुआ : श्रीमद् भागवत कथा

 जौनपुर। श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के तृतीय दिन का आरंभ पंडित आनंद मिश्रा के मार्गदर्शन में वैदिक मंत्रोच्चारण और प्रभु के नाम के जयकारे से प्रारंभ हुआ। तीसरे दिन बुधवार को कथा व्यास डॉ रजनीकांत द्विवेदी ने कहा कि मनुष्यों का क्या कर्तव्य है इसका बोध भागवत सुनकर ही होता है। विडंबना ये है कि मृत्यु निश्चित होने के बाद भी हम उसे स्वीकार नहीं करते हैं। निस्काम भाव से प्रभु का स्मरण करने वाले लोग अपना जन्म और मरण दोनों सुधार लेते हैं। 

श्रीमद्भागवत कथा जीवन के सत्य का ज्ञान कराने के साथ ही धर्म और अधर्म के बीच के अंतर को बताती है। महराज जी ने अच्छा जीवन जीने के लिए कुछ सूत्रों का वर्णन करते हुए बताया कि मनुष्य को अच्छा जीवन जीने के लिए एक ही आसान में बैठने का अभ्यास, सूर्योदय से पूर्व (ब्रह्म मुहूर्त में) उठने का अभ्यास, विद्वानों (गुरुजनों) का संगत करना चाहिए और इंद्रियों को वश में करना चाहिए।जीवन से चिंता हटानी है तो प्रभु का चिंतन करना होगा। श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कथा सुनाते हुए कथा व्यास डॉ रजनीकांत द्विवेदी जी महाराज ने बताया कि किसी भी स्थान पर बिना निमंत्रण जाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि जहां आप जा रहे है वहां आपका, अपने इष्ट या अपने गुरु का अपमान न हो। कथा व्यास जी ने कहा कि यदि अपने गुरू,इष्ट के अपमान होने की आशंका हो तो उस स्थान पर नहीं जाना चाहिए। चाहे वह स्थान अपने जन्म दाता पिता का ही घर क्यों न हो। प्रसंगवश भागवत कथा के दौरान सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा था। भागवत कथा में उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए व्यास जी ने समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। 

परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है। भक्त ध्रुव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा को सुनाते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। बच्चों को बचपन में ही भक्ति करने की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्ची मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। महाराज ने कहा कि व्यक्ति अपने जीवन में जिस प्रकार के कर्म करता है उसी के अनुरूप उसे मृत्यु मिलती है। भगवान ध्रुव के सत्कर्मों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ध्रुव की साधना,उनके सत्कर्म तथा ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा के परिणाम स्वरूप ही उन्हें वैकुंठ लोक प्राप्त हुआ। कथा के दौरान महराज ने बताया कि संसार में जब-जब पाप बढ़ता है, भगवान धरती पर किसी न किसी रूप में अवतरित होते हैं। उन्होंने कहा कि कलयुग में भी मनुष्य भगवान कृष्ण के सिखाए मार्ग का अनुसरण करे तो मनुष्य का जीवन सफल हो सकता है। कथा के दौरान उन्होंने बताया कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद् भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया है। भागवत कथा के तीसरे दिन ध्रुव चरित्र, अजमिल एवं प्रहलाद चरित्र के विस्तार पूर्वक वर्णन के साथ संगीतमय प्रवचन दिए।कथा के साथ साथ भजन संगीत भी प्रस्तुत किए गए। कथा में जिले के प्रसिद्ध ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ अरुण मिश्रा, मनोज चतुर्वेदी जी, शम्मी गुप्ता जी, गीता श्रीवास्तव जी भास्कर पाठक पाठक होंडा रत्नेश सिंह प परमार ट्रैवल्स, सुख सागर सेठ जी दिन मणि त्रिपाठी सोमेश गुप्ता गणेश गुप्ता अमित जी वैश्य गाढ़ा श्रीकांत माहेश्वरी सरला महेश्वरी, अनिल श्रीवास्तव सारिका सोनी जी सहित हजारों से भी अधिक लोगों ने रसपान किया।

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