नार्वे में हिंदी की अलख जगा रहे प्रवासी भारतीय सुरेशचन्द्र शुक्ल - डा ब्रजेश यदुवंशी

जौनपुर । सिविल लाइन स्थित एक होटल‌ में‌ प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार सुरेश चन्द्रशुक्ल 'शरद आलोक' का स्वागत एवं अभिनन्दन समारोह का आयोजन किया गया । 

कार्यक्रम आयोजक शिक्षाविद डा. ब्रजेश यदुवंशी द्वारा माल्यार्पण कर अंगवस्त्रम, एवं स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया । इस मौके पर बोलते हुए डा. ब्रजेश यदुवंशी ने कहा कि सुरेशचन्द्र शुक्ल हिंदी जगत के वैश्विक मशाल वाहक हैं। श्री शुक्ल विश्व हिंदी सम्मेलन लंदन व मारीशस से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार हैं, आपकी दो दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं । श्री शुक्ल की कोरोना काल में लिखी गई मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत पुस्तक 'लाकडाउन ' विश्व पटल पर पहचान बनाने में कामयाब रही । 


इस मौके पर सुरेशचन्द्र  शुक्ल ने अपने उद्बोधन में कहा कि वैश्विक स्तर पर हिंदी की मांग बढ़ी है , हिंदी भाषा ने निपुणता हो तो विश्व स्तर पर पहचान बनाने के साथ ही मातृभाषा को समृद्ध किया जा सकता है । 


स्वागत की कड़ी में सभाजीत द्विवेदी प्रखर ने शीष आदर्श का बोझ लादे हुए , पांव गन्तव्य की ओर बढ़ता रहा , मैं जहां से चला था वहीं रह गया, जबकि अबिराम वर्षो से चलता रहा सुनाकर माहौल को सोचने पर मजबूर कर दिया‌ । डा. प्रमोद वाचस्पति ने हर कदम फूंक-फूंक रखना, ठोकरें हैं बहुत जमाने में, दोस्ती का भरम बना ही रहे , टूट जाता है आजमाने में  सुनाकर सामाजिक संदेश दिया । मौके पर  पत्रकार  विद्याधर राय विद्यार्थी, कृष्ण मुरारी मिश्रा, आशीष यादव, अभिषेक यादव, अमन, अमित , धर्मेन्द्र, उमेश , मुकेश प्रजापति, शीश यादव, राजा यादव, जितेंद्र यादव,  श्रीकांत, अमर सिंह, अनिल केशरी, रोहित, सचिन, आदि ने उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संचालन सभाजीत द्विवेदी प्रखर ने किया । अंत में आये हुए लोगों का स्वागत व आभार शैलेन्द्र सिंह ने किया ।

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