इस रामलीला में शिक्षक, इंजीनियर और चिकित्सक निभाते है किरदार

खुटहन ( जौनपुर) 16 अक्टूबर उसरौली शहाबुद्दीनपुर गाँव में खेली जा रही रामलीला अपने में तीस वर्षो का सुंदर इतिहास समाहित किए हुए है। पूरे गाँव का होली, दिवाली से बढ़कर रामलीला मंचन को लेकर उत्साह और लगाव है। गाँव का यह ऐसा सामूहिक अवसर होता है, जहां लोग वर्ष भर की आपसी शिकवा शिकायत भूल अपनी गलतियों का एहसास कर एक दूसरे के गले मिल पुनः आपसी सौहार्द बना लेते है। रामलीला में आज भी शिक्षक, इंजीनियर और चिकित्सक अपना अपना किरदार बखूबी निभाते है। 


वर्ष 1992 में गाँव निवासी व तत्कालीन संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य इंदिरापति पाण्डेय, प्रधानाध्यापक बद्री प्रसाद पाण्डेय, खेल शिक्षक त्रिभुवन पति तिवारी, गन्ना विकास अधिकारी रुद्रमणि मिश्र आदि जो कि अब सेवामुक्त हो चुके है। इन्ही लोगो के द्वारा रामलीला की शुरुआत करायी गयी। तीस वर्ष बीत जाने के बाद भी गाँव में रामलीला के प्रति लोगों में श्रद्धा और उत्साह उसी प्रकार से बना हुआ है। रामलीला में अपना किरदार निभाने वाले कई अभिनेता जो परदेश में रहते है। वे छुट्टिया ले गांव आते है। बाद में वे फिर वापस लौट जाते है। 


वयो बृद्ध हो चुके इंदिरापति और बद्री पाण्डेय बताते है कि रामलीला के शुरूआत के समय धन व संसाधनो का बहुत आभाव था। पात्रों के श्रृंगार के लिए दर्जी के यहां ड्रेस सिलाए जाते थे। लाइट नही थी, मिट्टी के तेल वाली गेस जलायी जाती थी। माइक शाहगंज से मंगाया जाता था। तब जोड़ तोड़ कर किसी प्रकार से रामलीला संपन्न करायी जाती थी। आज के परिवेश में न तो धन का आभाव है, और न ही संसाधनो का। अब तो एक दर्जन से अधिक पात्र चिकित्सक, शिक्षक, इंजीनियर और ब्यवसायी है। जिनके सहयोग से सारे संसाधन उपलब्ध हो जाते है। उन्होंने बताया कि पूरे गाँव में इस दिन का बड़ी बेताबी से इंतजार रहता है। गांव में आपसी विभेद को भी मंच पर साझा कर एक दूसरे के गिले शिकवे खतम करा दिए जाते है। उन्होंने यहाँ तक कहा कि हमारे गांव में जो आपसी प्रेम सौहार्द कायम है तो उसकी जड़ रामलीला है।

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