भागवत के बयान से करोड़ों हिन्दुओं को लगा आघात: अजय पाण्डेय

जौनपुर। भारतवर्ष के ध्वज वाहक कहे जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का अमर्यादित बयान देश सहित विदेशों में रहने वाले करोड़ों लोगों को आहत पहुंचाया है। उक्त बातें अंतरराष्ट्रीय हिन्दू परिषद के जिलाध्यक्ष अजय पांडेय ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कही। उन्होंने आगे कहा कि मोहन भागवत से पूछना चाहूंगा कि पंडित ने यदि वर्ण व्यवस्था सनातन हिंदुओं में बनाई तो दूसरे समुदाय में जातियों का विभाजन किसने किया? ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र को कर्मों के अनुसार बांटा गया था। यह आज नहीं, बल्कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश देते हुए अर्जुन से कहे हैं कि इस संसार चार वर्णों में बनाया गया है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र। इन वर्ण को उनके कर्म के आधार पर सुनिश्चित किया गया है।

श्री पाण्डेय ने कहा कि भागवत जी के कथनानुसार 4 वर्ण में से 56 से अधिक जातियों का निर्माण किसने कराया? सत्ता की लोलुपता व चकाचौंध में अपने व्यक्तित्व एवं बुद्धि को पर धकेल कर यदि ऐसा वक्तव्य आपके द्वारा दिया जाता है तो यह कहां तक सही है? इस प्रकार का वक्तव्य देकर मोहन भागवत ने अपनी ओछी मानसिकता का परिचय दिया है। श्री पाण्डेय ने कहा कि हिन्दू समाज के लोगों के मन—मस्तिक पर इस तरह का कुठाराघात करने वाले भागवत जी क्या कभी भागवत का अध्ययन किया? विद्वानों का कहना था कि जथा नामे तथा गुणे परंतु आपने उसे भी झूठा साबित कर दिया। जिस कुल में जन्म लिया, उसी कुल को ही आपने धर्म के कटघरे में खड़ा कर दिया।
जिलाध्यक्ष ने कहा कि अभी तक तो अन्य राजनीतिक पार्टियां और अनेकों मतावलम्बियों द्वारा धर्म, देवी देवताओं, हिंदुत्व के नाम पर अतिशयोक्ति टिप्पणियां की जाती थीं परंतु आज सनातन धर्म के कतिपय ध्वज वाहक कहने वाले ने ऐसे वक्तव्य देकर खुद को निंदा का पात्र बना दिया है। वर्तमान में रामचरितमानस पर चल रहे घमासान वाले स्वामी प्रसाद मौर्य से भी बढ़कर आपने हिंदुत्व के ऊपर कुठाराघात किया है। लोगों का आकलन करना भी कहीं से गलत नहीं होगा कि स्वामी प्रसाद मौर्य एवं मोहन भागवत दोनों ही एक मानसिकता के व्यक्ति हैं।
श्री पाण्डेय ने कहा कि भागवत जी को अपने कुछ महापुरुषों की जीवनी और उनके द्वारा दिए वक्तव्य सहित अभिलेखों पर दृष्टि डालनी चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने अपने अभिलेखों पर कहा है कि भारतवर्ष को विश्व गुरु बनाने का मुख्य कारण भारतवर्ष के अंदर वर्ण व्यवस्था रही है। समाचार पत्रों के माध्यम से पूछना चाहूंगा कि भारत में चमार जाति कहां कब और कैसे आयी? कहां से आये? इनको किसने चमार शब्द से सम्बोधित किया। जिस चंवर वंश के क्षत्रिय ने अपने धर्म को हिंदुत्व को बचाने के लिए युद्ध किया, वे प्रतापी रहे। उन्हें सिकंदर लोदी जैसा व्यक्ति भारत में आकर चंवर वंश के राजाओं के ऊपर आधिपत्य जमाने का प्रयास किया था जबकि महाभारत के अनुशासन ग्रंथ में चंवर वंश प्रतापी क्षत्रिय होना बताया गया है। उन्होंने चमड़ा उतारना स्वीकार किया परंतु सनातन धर्म को कभी छोड़ा नहीं।
बताते चलें कि बप्पा रावल के खानदान से वैवाहिक संबंधों में भी चंवर वंश रहा है। राणा सांगा व झाली रानी ने रैदास जी को ईश्वर भक्ति के साथ मेवाड़ का राजगुरु बनाना स्वीकार किया था परंतु मुगल शासक चंबर सेन राजा पर आक्रमण कर सिकंदर लोदी ने पहली बार चमार शब्द का उपयोग किया जबकि संत रैदास जी चंवर वंश के थे। रैदास जी को मेवाड़ का राजगुरु भी बनाया गया था परंतु मुगल ने उन्हें जेल में बंद कर उनसे चमड़ा खींचवाया। चमड़ा पिटवाया। तमाम तरह की यातनाएं दीं परंतु उन्होंने इस्लाम स्वीकार नहीं किया और अंत तक वैष्णो हिंदू ही बने रहे। उन्होंने कहा कि वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान। फिर मैं क्यों छोड़ो इसे, पढ़ लूं झूठ कुरान। वेद धर्म छोडू नहीं,कोशिश करो हजार। तिल तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार।
श्री पाण्डेय ने कहा कि सनातन हिंदू समाज में छुआछूत भेदभाव ऊंच-नीच का भाव था ही नहीं। यह सब भ्रांतियां एवं कुरीतियां विदेशों से आए आकांक्षाओं, आक्रांता, अंग्रेज कालीन व्यवस्था व भाड़े के वामपंथी एवं हिंदू विरोधी इतिहासकारों की देन रही। हिंदवा: सहोदरा: सर्वे। न हिंदू पतितो भवेत्। मम दीक्षा, हिंदू रक्षा, मंत्र समानता। जितने दोषी स्वामी प्रसाद मौर्य सहित अन्य हैं जिन्होंने सनातन संस्कृति पर कुठाराघात किया है, उससे कहीं बड़ा अपराध मोहन भागवत ने किया है।

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