उपले की उपयोगिता ही ऐसी कि बिना इसके नहीं चलता काम

 

जौनपुर। जनपद के ग्रामीण इलाकों में गाय और भैंस के गोबर से उपले बनाने का कार्य इस समय जारी है। ग्रामीण इलाकों में औरतें शारदीय नवरात्र के पश्चात गोबर से उपले बनाने का कार्य शुरू कर देती हैं। उपले बनाने के साथ साथ उनका उपयोग ईंधन के रूप में चलता रहता है साथ साथ अतिरिक्त उपलों का उपडउर बनाकर ऊपर से गोबर का लेप करके या घर या छप्पर के नीचे भविष्य में उपयोग करने के लिए संरक्षित कर दिया जाता है। सरकार द्वारा रसोईघरों में स्वच्छ ईधन के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए उज्ज्वला योजना के माध्यम से तथा गोबर गैस संयंत्र की मदद से गरीबों की रसोई में भी स्वच्छ ईधन के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं जिनका प्रभाव भी दिखा है किन्तु ग्रामीण इलाकों में भोजन बनाने के काम के साथ -साथ उपले के ढेर सारे ऐसे प्रयोग हैं कि गोबर से उपले बनाने का कार्य अभी भी ग्रामीण इलाकों में बदस्तूर जारी है। सबसे पहली जरूरत दूध से घी बनाने के लिए दूध को लम्बे समय तक धीमी आंच पर गर्म करना पड़ता है जिसके लिए गोबर के उपले एक अच्छा विकल्प हैं। सर्दियों में बिजली की निर्बाध उपलब्धता न होने के कारण गांवों में हीटर और ब्लोअर का प्रयोग ग्रामीण इलाकों में बमुश्किल से पांच फीसद तक ही लोग इनका इस्तेमाल करते हैं ज्यादातर लोग भीषण ठंड से बचने के लिए करीब तीन महीने तक लकड़ी के साथ  अलाव में उपले का उपयोग अवश्य करते हैं। बरसात के समय में मच्छरों और खून पीने वाली मक्खियों से अपने गाय भैंसों को बचाने के लिए गोबर के उपले का धुआं करते हैं।यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि आज भी भूने आलू,बैगन, टमाटर का चोखा लीटी लगाने के लिए उपले का प्रयोग ग्रामीण इलाकों के साथ- साथ शहरी इलाकों में भी साधन सम्पन्न लोग भी करते हैं।

बदले समय में गोमूत्र और गोबर से कई मूल्यवर्धित वस्तुएं जैसे गोबर का गमला, मूर्तियां,कमल दान, कूडादान, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती,जैव रसायनों का निर्माण आदि में उपयोग किया जा रहा है किन्तु इन्हें बनाने के प्रशिक्षण के अभाव और इन्हें बेचने के बाजार तक इन गरीब ग्रामीण इलाकों की महिलाओं पहुंच न होने के कारण जनपद के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में गोबर से उपले बनाने का परम्परागत कार्य ही किया जा रहा है। यह विकास खंड मछलीशहर के गांव बामी का दृश्य है जहां शनिवार की सुबह उपले बनाने के काम में ग्रामीण महिला मशगूल है।इस सम्बन्ध में गांव बामी की ही गृहणी सुनीता गौड़ कहती हैं कि उपले बनाने से एक सीधा -सीधा लाभ तो यह होता ही है कि गाय माता के गोबर और हम ग्रामीण इलाकों की महिलाओं मेनहत की बदौलत आज भी बहुत सारे हरे पेड़ कटने बच जाते हैं।

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