नगर निकाय चुनाव की चहल कदमी हुई तेज, नये नेताओं की फौज मैदान में उतरने को तैयार

नगर निकाय चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियो ने सितम्बर महीने से पूरी ताकत झोक दिया था। चेयर मैन, नगर पंचायत अध्यक्ष और सभासद बनने के लिए युवाओ की भारी फौज मोहल्लो व गलियों में चुनाव प्रचार तेज कर दिया था लेकिन ओबीसी आरक्षण के चलते मामला कोर्ट में जाने के कारण चुनाव टाल दिया गया था। दो दिन पूर्व कोर्ट से चुनाव कराने की हरी झण्डी मिलने के बाद एक बार फिर से नेताओं की फौज टहने लगी है। लेकिन आरक्षण लिस्ट जारी न होने और चुनाव के तारीख का ऐलान न होने के कारण नेताओ के कदम और जेब से नोट धीमी गति से निकल रही है।
लेकिन चुनाव को अवसर में बदलने वाले नेंताओ के पिछलग्गुओ की टीम मलाई काटने के लिए पूरी जुगत में लग गयी है ऐसी जमात के लोग अपने नेताओ को उनका वार्ड उन्ही के लिए आरक्षित होने तथा जीत पक्की होने का भरोषा दिलाकर अपना उल्लू सीधा करने जुटे हुए है। कोई अपना सम्पर्क सीधे लखनऊ से बताकर अपने को शिकार उल्लू बना रहा तो कोई बड़े नेताओ के हवाले से वार्डो का आरक्षित अनारक्षित होने का दावा कर रहा है।
लेकिन चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी जनता के सामने भोला जरूर बनता लेकिन वह यह भी भली भांति जनता है कि उसका हितैषी कौन है, लेकिन अक्सर देखने को यह भी मिलता है कि कई नेताओ का समाज शास्त्र और राजनीत शास्त्र कमजोर होने के कारण वे चुनावी लूटरी गैंग के शिकार भी हो जाते है इसका ज्ञान उन्हे चुनाव बाद ही पता चल पाता है।