भगवान श्रीराम और रामनवमी का महापर्व

 डॉ दिलीप सिंह एडवोकेट

इक्ष्वाकु वंश प्रभवो रामै नाम जनै श्रुतः
नियतत्मा महावीर्यो द्युतिमान ध्रीतिमान वशी (वाल्मीकि रामायण)
भगवान श्रीराम का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था जिसमें सागर रघु आज भगीरथ दिलीप और महाराजा दशरथ जैसे चक्रवर्ती सम्राट हुए भगवान श्री राम के बारे में ब्रह्म ऋषि वालों ने लिखा है कि शॉप वंश में जन्म लेने वाले भगवान श्रीराम नियत आत्मा महावीर हनुमान विद्युत के समान तेज वाले और धरती के समान धैर्यवान भगवान विष्णु के समान महा पराक्रमी काला अग्नि के समान भगवान और हिमालय की तरह अचल रहने वाले थे। इससे भगवान श्रीराम की महत्ता अच्छी तरह समझ में आ जाती है, इसीलिए तो कहा गया है श्रीराम जन्म के पावन अवसर पर शीतल मंद सुगंध पवन लेकर वसंत ऋतु आई है।
भगवान श्रीराम का जन्म सभी शुभ ग्रह नक्षत्र के उच्चतम स्थान के बिंदु पर हुआ था। मंगलवार का दिन था। चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी थी और आज से साडे 1700000 वर्ष पहले परम पावन अयोध्या में सरयू नदी से गिरे हुए नगरी में उनका जन्म हुआ था और उनके जन्म लेने के पहले ही सब कुछ परम एवं सुंदर और समृद्धिशाली हो गया था। अयोध्या स्वर्ग तथा बैकुंठ से भी सुंदर लग रही थी। सभी लोग भगवान श्री राम के दर्शन के उतावले थे।
भगवान श्रीराम के जन्म और उनके कल्पना से परे महानतम और असाधारण कार्यों का सबसे प्रमाणिक विवरण ब्रह्म ऋषि वाल्मीकि की रामायण में मिलता है। किस प्रकार से विश्व मोहिनी के ऊपर मोहित होकर नारद ने भगवान विष्णु को श्राप दिया और कहा बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे किस तरह राजा प्रताप भानु ने राक्षसों के चक्कर में आकर ब्राह्मणों को गाय का मांस खिलाया और शराब के कारण रावण कुंभकरण इत्यादि के रूप में किस प्रकार से मनु और शतरूपा ने घनघोर तपस्या करके श्रीहरि को पुत्र रूप में प्राप्त करने का वर प्राप्त किया और किस तरह से राक्षसों के अत्याचार से कराह रही धरती को श्री हरि ने आश्वासन दिया कि मैं अंशु के साथ भगवान के अवतार के रूप में जन्म लूंगा और समस्त देवता बंदर भालू रिचुअल कर मदद करेंगे। इन सब कार्यक्रम के अंतर्गत परम पवित्र अयोध्या नगर में उनका जन्म हुआ और जन्म से लेकर बैकुंठपुर तक उन्होंने जो लक्ष्मण रेखा खींच दिया, वही आज तक समस्त मानव जाति का समस्त धर्मों का सर्वोच्च बिंदु बना हुआ है उसको पार करना तो दूर वहां पहुंचना भी बड़े से बड़े लोगों के लिए एक कल्पना भर है।
सम्राट दशरथ के घर राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न के रूप में जन्म लेने के बाद उनके कार्यों का संक्षेप में वर्णन है कि गुरु के घर में सारी विद्या प्राप्त करने के बाद अल्पकाल में ही ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम पर आकर ताड़का सुबाहु मारी को उचित दंड देकर और वध करके इंद्र के 24 से पीड़ित अहिल्या का उद्धार किया और ब्रह्मा ऋषि गौतम से उनका मिलन किया और राजा जनक के धनुष को तोड़कर भगवती सीता को स्वयंवर में प्राप्त किया और प्रमुख रोधी अमित पराक्रमी परशुराम का गर्व खर किया।
विवाह के पश्चात राज्याभिषेक के समय के की आज्ञा मानकर अपने रघुकुल रीत की रक्षा करते हुए लक्ष्मण और सीता के साथ वन में पधार कर सभी ऋषि मुनि संत सज्जन महंत और ऋषि गांवों को कृतार्थ किया और अयोध्या से श्रृंगवेरपुर प्रयागराज चित्रकूट होते हुए लाखों वर्ग किलोमीटर में फैले दंडकारण्य में प्रवेश किया और 13 वर्षों से लेकर पंचवटी तक बिताया।
वहां रावण के उपनिवेश बना रहे राक्षसों का संहार करके ऋषि-मुनियों को अभय दान दिया और गाने जंगल के कोने कोने में जाकर राक्षसों का संहार किया भगवती सीता को अग्नि रूप में समाहित करके छाया सीता के हरण होने पर उन्होंने शबरी के जूठे बेर खाए और मतंग सरबंग सुतीक्षण जैसे परम दिव्य ऋषियों से मिलते हुए अत्री अनुसूया के आश्रम में जाकर पतिव्रत धर्म की दीक्षा लिए और सबसे तेजस्वी और विश्वामित्र के समान महान वैज्ञानिक ब्रह्म ऋषि अगस्त से परमाणु नाभिकीय जैव रासायनिक अस्त्र-शस्त्र को प्राप्त किया जटायु को परम गति देते हुए सुग्रीव को राज्याभिषेक करके हनुमान की सहायता से सीता मां का पता लगाकर संपूर्ण राक्षस सेना और रावण कुंभकरण मेघनाथ का वध करके सोने की लंका विभीषण को दान कर दिया और कुबेर का अभिमान भी उन्हें लौटा दिया जिसे पाने के लिए रावण ने अपने सगे भाई कुंभकरण से लड़ाई करके उसे छीन लिया था।
भगवान श्रीराम के सारे कार्य कल्पना और बुद्धि की पहुंच पर है। चाहे बालिका अंत करके उसका राज सुग्रीव को देना हो और अंगद को युवराज घोषित करना हो या फिर सोने की लंका जीतकर विभीषण को दान देना हो या माता सीता की अग्नि परीक्षा करना होगा उनको वाल्मीकि आश्रम के पास वन में त्याग करना हो या फिर संभोग को दंड देना हो या फिर अपनी सेना और सेनानायक नायकों का गर्व गर्व करने के लिए लव और कुश के द्वारा उनकी भीषण पराजय दिखाना हो। संबंध को निभाना तो भगवान श्रीराम से अधिक कोई सोच ही नहीं सकता उनके सर्वोपरि जितने भी लोग थे। उनमें कोई भी संभ्रांत नहीं था। सभी दबे कुचले पीड़ित प्रताड़ित परित्यज्य और निम्न वर्ग के संबंधित थे। चाहे वह हनुमान, सुग्रीव, जामवंत, अंगद, रिजवान और भालू हो या आदिवासी शबरी या फिर निम्नतम वर्ग से संबंध रखने वाले ऋषि मुनि राक्षस और विभीषण जैसे शत्रु का भाई हो या फिर शबरी जैसी परम तपस्वी महिला हो जिसका झूठा बेर खाकर उन्होंने मानवता को धन्य किया जबकि आज बड़े से बड़ा दलित राजनेता या दुनिया का कोई भी सम्राट प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति इस प्रकार का उदाहरण प्रस्तुत नहीं कर सकता या फिर निषादराज केवट जिनको उन्होंने भरत और लक्ष्मण के समान माना कहने का तात्पर्य है कि भारत को सही अर्थ में भगवान श्रीराम नहीं उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम क्षेत्र बनाकर जोड़ा।
चाहे शिव जी के धनुष को पल भर में तोड़ देना हो परशुराम के क्रोध अभिमान और अहंकार को चूर करना होया रावण से भी परम शक्तिशाली कुंभकरण को मार गिराना हो या अकेले ही खर दूषण त्रिशिका को 14000 सेना के साथ नष्ट कर देना हो या अपने गुरु ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के सम्मान के लिए स्वयं हनुमान जी से लड़ना हो या फिर पिता की आज्ञा के अनुसार 14 वर्ष वन में भटकना हो कहीं भी भगवान श्रीराम अपनी मर्यादा से क्यूट नहीं हुए और तो और उन्होंने उन माता कैकेई को सर्वप्रिय और सबसे आदरणीय माना जिन्हें खुद उनके पुत्र भरत ने त्याग दिया था और जो स्वयं ही अपनी करनी से लज्जित थी ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता।
समन्वय त्याग तपस्या वीरता उदारता दया क्षमा शरणागत वत्सलता और सरल हृदय की प्रतिमूर्ति थे भगवान श्री राम चाहते तो एक ही बार में समुद्र को सुखा सकते थे। एक ही बार में रावण और बाली का वध कर सकते थे लेकिन उन्होंने सुधर जाने का पूरा पूरा अवसर दिया और जब अधर्मी दुराचारी बाली ने उनसे प्रश्न किया तो भगवान श्री राम के उत्तर से वह लज्जित होकर नतमस्तक हो गया और आज तो कहावत हो गई है कि श्रीराम कबाड़ अमोघ होता है 7 ताड़ के विराट पेड़ जिन्हें एक भी गिरा पाना किसी के लिए संभव नहीं था। भगवान श्रीराम ने उसे एक ही बार में मार गिराया जिस बाली ने तीनों लोगों के विजेता रावण को अपने कांख में दबाकर संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा किया था, उस बाली को उन्होंने एक ही बार में मार गिराया।
जब कभी भगवान श्रीराम को क्रोध आया तब उनके सामने तीनों लोगों में कोई नहीं टिक सका चाहे वह दुराचारी रावण रहा हो या इंद्र का पुत्र जयंत रहा हो या रावण विजेता त्रैलोक्य विजेता बाली रहा हो। जयंत तो अपने कुकर्म के लिए आकाश पाताल धरती स्वर्ग ब्रह्मलोक शिवलोक बैकुंठ लोक सब जगह भागकर गया लेकिन खुद उसके पिता ने उसको दुत्कार कर भगा दिया। कोई भी श्रीराम के बाण से उसकी रक्षा नहीं कर सका फिर भी इतने दयालु कि जब उनके पैरों पर आकर गिरा तो उसे थोड़ा सा दंड देकर क्षमा कर दिया। उन्होंने देखते-देखते एक ऐसा सौ योजन का फूल बना दिया जो आज भी रामसेतु के नाम से सारी दुनिया में विख्यात है और सबसे बड़ा आश्चर्य है दुनिया में सबसे बड़े मूर्ख और अज्ञानी वही है जो भगवान श्रीराम जैसे मानवता की सर्वोच्च उपलब्धि पर भी गलत टीका टिप्पणी करते हैं जबकि वह स्वयं श्रीराम के जीवन चरित्र का 1000000000 वां भाग भी नहीं पालन कर सकते।
संकोची इतने कि जिस सोने की लंका को भगवान शिव ने घनघोर तपस्या करने वाले रावण को हर्ष के साथ दिया। उसे प्रभु श्री राम ने अत्यंत ही संकोच के साथ विभीषण को सौंपा हनुमान के अप्रतिम भक्ति और त्याग से नतमस्तक होकर वे उनसे अयोध्या से जाने के लिए कह नहीं पाए विभीषण का राज्याभिषेक कर दिया और कभी भी एक पत्नी व्रत का त्याग नहीं किया। अश्वमेध यज्ञ हो या ना हो परंतु अपना एक पत्नी व्रत नहीं छोड़ा। चाहे वह वैष्णो मां हो या वेदवती हो या कोई अन्य तपस्विनी उन्होंने सीता का स्थान किसी को नहीं दिया और सोने की सीता बनाकर अश्वमेध यज्ञ संपन्न कर भारत के लिए एक पत्नी व्रत का सर्वोच्च उदाहरण स्थापित किया, इसीलिए तो भगवान श्रीराम के बारे में कहा जाता है कि ना भूतो, ना भविष्यति मानवता के जो सर्वोच्च प्रतिमान है, वह भगवान श्रीराम ने स्थापित किया।
भगवान श्रीराम ने शैव और वैष्णवको एक दूसरे से जोड़कर अद्भुत एकता भारत में स्थापित किया और यहां तक कहा कि शिव द्रोही मम दास कहावा सो नर सपनेहु मोह न भावा उनका विशाल हृदय उनकी करना दया और क्षमा के प्रसंग कैकेई मंत्रा मंदोदरी सुलोचना और तारा जैसे प्रसंगों पर देखते ही बनती है लक्ष्मण जिन्होंने पूरे रामायण में भगवान श्रीराम के समान प्रत्येक त्याग तपस्या की सारी सीमाएं पार की उनको प्राणदंड न देकर उनको त्याग कर उन्होंने अपने धर्म और राजधर्म दोनों का निर्वाह किया और हनुमान जी को यमराज के रास्ते से हटाकर बैकुंठ में प्रयाण किया।
पूरे इतिहास में आज तक भगवान श्रीराम के अलावा और कोई ऐसा प्रजावत्सल सम्राट नहीं हुआ जिसके लिए सारी प्रजा उनके पीछे-पीछे तब तक चलती रहे जब तक रात को थक कर सो नहीं गए और जब तक श्रीराम लौटकर अयोध्या नहीं आए तब तक किसी घर में दिया नहीं जला और जब श्रीराम वापस आए तो सारी अयोध्या में परम प्रसन्नता के दीपक जले और दीपावली कब प्रारंभ हुआ और भगवान श्री राम धन है जिन्होंने सारी प्रजा के साथ शरीर में समाहित होकर सभी को वैकुंठ लोक परलोक स्वर्ग लोक प्रदान किया। इतना ही नहीं, युद्ध के बाद अमृत वर्षा कर सभी बंदर भालू और कमियों को जीवित किया हर जगह उन्होंने समन्वय किया। नर और वानर सभ्यता में राजा और प्रजा में ऋषि और राजा में राक्षस और आर्य में आदिवासी वनवासी निषाद और आर्य सभ्यता में सबको एक सेतु से जोड़कर उन्होंने वास्तविक अर्थ में सारे भारत को एक किया अन्यथा विंध्याचल के उत्तर का भाग उत्तर और दक्षिण का भाग दक्षिणा पथ कहा जाता था। बीच में विराट विंध्य पर्वत अगस्त्यमुनि के श्राप से शापित था और उत्तर और दक्षिण की सभ्यता एक दूसरे से अनजान थे तभी तो उनको एक नहीं वशिष्ठ विश्वामित्र अगस्त वाल्मीकि और अत्री जैसे 5_5 ब्रह्म ऋषि गुरुजन मिले और संसार की सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता नारी सती अनुसूया ने उनको अपना आशीर्वाद प्रदान किया। भगवान श्रीराम का बाढ़ और उनकी प्रतिज्ञा आज तक उदाहरण के रूप में कहीं जाती है। यहां तक कहा जाता है कि यह दवा तो रामबाण है।
श्रीराम का अपनापन अपने लोगों के लिए चाह त्याग अप्रतिम है। उन्होंने सदैव सारे दोस्त अपने ऊपर लिया और अपने छोटों को क्षमा करते गए सीता माता के हरण के बाद उनका विलाप जटायु के प्रति उनकी करुणा विराट को मुक्तिदान अहिल्या का उद्धार सुलोचना को मेघनाथ के सिर का दान हनुमान जी को मां की आज्ञा का पालन करने का वरदान उनके अनगिनत कार्य इतने हैं कि वह एक लेख में नहीं गिनाए जा सकते हैं तभी तो दुनिया की हर भाषा में श्रीराम के दिव्य और पावन चरित्र का वर्णन हुआ है और हर भाषा में रामायण है। कोई भी व्यक्ति श्रीराम इतना लोकप्रिय कहीं नहीं हुआ त्रेता द्वापर बीत जाने पर कलयुग में भी उनकी कीर्ति दिग दिगंत में प्रसारित हो रही है,
इसलिए अंत में यही कहा जा सकता है कि श्रीराम का नाम है सब कुछ है कण-कण में श्रीराम है राम शब्द का अर्थ ही है जो सबको प्रसन्न करें जो कण-कण में रमे वही राम है जिनका उल्टा नाम जपने से वाल्मीकि जैसा हिंसक व्यक्ति ब्रह्म ऋषि बन गया जिसका नाम जप कर अनगिनत लोग तर गए। विभीषण जैसा राक्षस भी जिनका राज्य पाकर धन्य हो गया जो अंत तक अपनी प्रजा के साथ खड़े रहे और सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता नारी भगवती सीता का भी परित्याग करने में संकोच नहीं किया, बल्कि राज धर्म का निर्वाह किया उनके लिए तो बस केवल इतना ही कहा जा सकता है।
जग में अब तक जो भी आया भगवान राम सर्वोत्तम है। उनका प्यारा मेरा जीवन आदर्श और अति उत्तम है। आओ हम सब मिलकर के श्री राम नाम स्मरण करें। उनके जीवन को अपनाकर खुद अपना जीवन धन्य करें।

Related

जौनपुर 4446371413219045976

एक टिप्पणी भेजें

emo-but-icon

AD

जौनपुर का पहला ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

आज की खबरे

साप्ताहिक

सुझाव

संचालक,राजेश श्रीवास्तव ,रिपोर्टर एनडी टीवी जौनपुर,9415255371

जौनपुर के ऐतिहासिक स्थल

item