छुवत सिला भई नारी सुहाई, पाहन ते न काठ कठिनाई

 जलालपुर।जिस तरह पैर से पत्थर की सिला को छूते ही वह नारी बन गई थी, अगर मेरी काठ की नाव में आपके चरण पड़ेंगे तो मुसीबत हो जाएगी मेरी जीविका प्रभु इसी काठ की नाव से चलती है। पहले मैं आपके पाव पाखारूंगा, उसके बाद ही नाव पर चढ़ने दूंगा। श्री राम की आज्ञा पाकर वह पांव पखारते हैं और श्री राम को नाव में विराजमान कराया।

उक्त बातें क्षेत्र के बीबनमऊ ग्राम सभा में पंडित राजेश मिश्र के आवास पर चल रही संगीतमय सात दिवसीय रामकथा के छठवें दिन गुरुवार को अयोध्या से पधारे कथावाचक पंडित बाल कृष्ण दास जी महाराज ने कथा के दौरान भक्तो को श्रवण कराया रामकथा में राम वनवास, भरत मिलाप और राम-केवट संवाद की कथा का प्रसंग सुनाया गया।उन्होंने कथा श्रवण कराते हुए कहा कि भरत जैसा भाई इस युग में मिलना मुश्किल है। राम-केवट संवाद का प्रसंग सुनकर भक्त भाव-विभोर हो गए।मानस मर्मज्ञ ने कहाकी भगवान राम मर्यादा स्थापित करने के लिए मानव शरीर में अवतरित हुए। पिता की आज्ञा पर वह वन चले गए। भगवान राम वन जाने के लिए गंगा घाट पर खड़े होकर केवट से नाव लाने को कहते हैं, लेकिन केवट मना कर देता है और पहले पैर पखारने की बात कहता है। केवट भगवान का पैर धुले बगैर नाव में बैठाने को तैयार नहीं होता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के आदर्श समाज में आज भी कायम है। भगवान प्रेम भाव देने वाले का हमेशा कल्याण करते हैं।भरत ने भगवान राम के वनवास जाने के बाद खड़ाऊं को सिर पर रखकर राजभोग की बजाय तपस्या की।जीवन में भक्ति और उपासना का अलग महत्व है। निष्काम भाव से भक्ति करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।इस दौरान श्रोता राम-केवट संवाद का प्रसंग सुनकर  आनंदित हो गए। कथा पंडाल में  उमेश मिश्रा, बृजेश पांडेय,डॉक्टर अरविंद पाण्डेय,    घनश्याम मिश्रा,शशिकांत पाठक,प्रशान्त सिंह, आनंद प्रदीप ,बृजेश, धर्मेंद्र,जयशंकर ,राजबहादुर,लकी मोनू राकेश तमाम श्रद्धालु एंव श्रोता मौजूद रहे। 

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