जन्म मरण के बंधन से मुक्त कराती है भागवत: आचार्य डॉ. रजनीकांत द्विवेदी

 
जौनपुर|  श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के द्वितीय दिन का आरंभ व्यास नारद संवाद से हुआ।  कथा व्यास आचार्य (डॉ.) रजनीकांत द्विवेदी जी के सान्निध्य में काशी से आए हुए आचार्यों ने वैदिक मंत्रोच्चारण से कार्यक्रम को विधिवत प्रारंभ किया। पूज्य डॉ रजनीकांत द्विवेदी जी महराज ने कथा की शुरुआत में कहा कि भागवत और कृष्ण में कोई भेद नहीं हैं हमको भागवत और कृष्ण में भेद नहीं करना चहिये। उन्होने कहा कि संतों की सेवा में जो आनंद है वो किसी अन्य कार्य में नहीं। महाराज जी ने बताया की गरुण पुराण में लिखा है कि आप देवताओं से पहले अपने पितरो को मना लो क्यूंकि देवता तो आपको आपके कर्म अनुसार फल देते है लेकिन अगर पितृ एक बार खुश हो जाए तो वह वो दे देते है जो तुम्हारे भाग्य में भी नहीं होता और अगर पितृ अप्रसन्न हो जाए तो वो भी छीन लेते है। पूज्य डॉ रजनीकांत जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा की भागवत वही अमर कथा है जो भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी। कथा सुनना भी सबके भाग्य में नहीं होता जब भगवान् भोलेनाथ से माता पार्वती ने उनसे अमर कथा सुनाने की प्रार्थना की तो बाबा भोलेनाथ ने कहा की जाओ पहले यह देखकर आओ की कैलाश पर तुम्हारे या मेरे अलावा और कोई तो नहीं है क्योकि यह कथा सबको नसीब में नहीं है। माता ने पूरा कैलाश देख आई पर शुक के अपरिपक्व अंडो पर उनकी नज़र नहीं पड़ी। भगवान शंकर जी ने पार्वती जी को जो अमर कथा सुनाई वह भागवत कथा ही थी। लेकिन मध्य में पार्वती जी को निद्रा आ गई और वह कथा शुक ने पूरी सुनली। यह भी पूर्व जन्मों के पाप का प्रभाव होता है कि कथा बीच में छूट जाती है। भगवान की कथा मन से नहीं सुनने के कारण ही जीवन में पूरी तरह से धार्मिकता नहीं आ पाती है। जीवन में श्याम नहीं तो आराम नहीं। भगवान को अपना परिवार मानकर उनकी लीलाओं में रमना चाहिए। गोविंद के गीत गाए बिना शांति नहीं मिलेगी। धर्म, संत, मां-बाप और गुरु की सेवा करो। श्री शुक जी की कथा सुनाते पूज्य महाराज जी ने बताया कि श्री शुक जी द्वारा चुपके से अमर कथा सुन लेने के कारण जब शंकर जी ने उन्हें मारने के लिए दौड़ाया तो वह एक ब्राह्मणी के गर्भ में छुप गए। कई वर्षों बाद व्यास जी के निवेदन पर भगवान शंकर जी इस पुत्र के ज्ञानवान होने का वरदान दे कर चले गए। व्यास जी ने जब श्री शुक को बाहर आने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि जब तक मुझे माया से सदा मुक्त होने का आश्वासन नहीं मिलेगा, मैं नहीं आऊंगा। तब भगवान नारायण को स्वयं आकर ये कहना पड़ा की श्री शुक आप आओ आपको मेरी माया कभी नहीं लगेगी ,उन्हें आश्वासन मिला तभी वह बाहर आए। यानि की माया का बंधन उनको नहीं चाहिए था। पर आज का मानव तो केवल माया का बंधन ही चारो ओर बांधता फिरता है। और बार बार इस माया के चक्कर में इस धरती पर अलग अलग योनियों में जन्म लेता है। तो जब आपके पास भागवत कथा जैसा सरल माध्यम दिया है जो आपको इस जनम मरण के चक्कर से मुक्त कर देगा और नारायण के धाम में सदा के लिए आपको स्थान मिलेगा। कथा पंडाल में यजमानों सहित कई गणमान्य अतिथियों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिती दर्ज करवाई । भजन, गीत व संगीत पर श्रद्धालु देर तक झूमते रहे।

श्रीमद भागवत कथा के इस पावन अवसर पर मुख्य यजमान के रूप में श्रीमती प्रतिमा गुप्ता पत्नी श्री गणेश साहू जी, श्रीमती पूजा मिश्रा पत्नी श्री संतोष मिश्र  जी और श्रीमती माधुरी देवी पत्नी श्री हीरालाल मोदनवाल ने कथा का पूर्ण श्रद्धा एवं समर्पण के साथ कथा का रसपान किया। श्रोता के रूप मे चंद्र प्रकाश सोनी जी,  प्रमोद कुमार जी, संजय पाठक जी, आशीष यादव जी, डॉ गंगाधर शुक्ल जी, कपिल जी, अनुज जी, रत्नेश जी, गोपाल जी निशाकांत द्विवेदी जी आदि लोगों के साथ हजारों लोगों के कथा का रसपान किया। व्यवस्था प्रमुख पंडित आनंद मिश्रा जी ने बताया कि कथा प्रतिदिन सायं पांच बजे से हरी इच्छा तक चलेगी। कथा के उपरांत प्रसाद के साथ ही साथ भंडारे की व्यवस्था भी है।

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