'पुस्तक हूं मैं'


 पुस्तक हूं मैं! हां, मैं पुस्तक हूं

तुम्हारी मित्र! सहचर! प्राण।
तुम्हारी अनावश्यक भटकन को
विराम देती, मैं, तुम्हें! तुम्हारे
लक्ष्य तक ले जाऊंगी, पुस्तक हूं मैं।
हां, पर, तुम्हें भी सच्चे मन से
चलना होगा साथ मेरे, त्यागना
ही होगा शैथिल्य तुम्हें।लानी
होगी स्फूर्ति और चैतन्यता तब
ही बना सकोगे मुझे अच्छा मित्र
अपना और यदि ऐसा तुम कर पाए
तो सचमुच ले जाऊंगी मैं तुम्हें
सन्मार्ग पर क्योंकि पुस्तक हूं मैं।
बस तुम संकल्पित हो बढ़ो मेरे
साथ सदैव यूं ही अनथक-अविराम ।
बढ़ो तुम! ज्ञान के क्षेत्र में, मेरे साथ
अनथक-अविराम। पुस्तक हूं मैं!
तुम! चलो मेरे साथ! तुम!बढ़ो मेरे
साथ, सदैव यूं ही अनथक-अविराम
मैं हूं तुम्हारी मित्र! सहचर! प्राण
हां, पुस्तक हूं मैं, मैं पुस्तक हूं।
डॉ मधु पाठक
हिन्दी विभाग
राज कॉलेज, जौनपुर।

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