आध्यात्मिक यात्रा

परमात्मा देता, कार्य का दायित्व, अधिकार स्वतह, मिल जाते हैं।

अपना अस्तित्व, जो शून्य माने, अहंकार से वही, बच पाते हैं।।
अधिकारों से, दायित्व निभ रहा है, बहते पानी का, समझो पाइप हो प्रकृति की भूमिका, स्वीकार करो, आप वक्ता नहीं, आप माइक हो।।
जो कुछ आपके पास, है अतिरिक्त, समझो मिला है, दूसरों के लिए। दायित्व समझ, उसको बांटो, जितना बांटो, उतना ही बढ़े।।
सुखी जीवन का एक ही है सूत्र, अपेक्षा उपेक्षा से, रहना है दूर।
दोनो से ही, समस्या उपजे, फिर कष्ट मिले, हमको भरपूर।।
कोशिश करके भी, नहीं मिला, उसके पीछे, परेशान न हों।
अंततः ओ, हानिकारक है, परमात्मा को है, यह ज्ञान सुनो।।
तन की है खुशियाँ, हैं छण भर की, जीवन भर नहीं कायम रहतीं।
आत्मा की प्रसन्नता, की खुशबू, स्मरण मात्र, शाश्वत मिलती।।
तन की है खुशियाँ, हैं छण भर की, जीवन भर नहीं कायम रहतीं।
आत्मा की प्रसन्नता, की खुशबू, स्मरण मात्र, शाश्वत मिलती।।
उनकी अनुभूति, हर एक खास, सभी मोड़ पे, मुझे देतीं प्रकाश।
ओ रहते सदा, हृदयांगन में, उनसे हो रहा, मेरा विकास।।
लोटे में आया, गंगा जल, बहती गंगा समान।
परमात्मा से जुदा, आत्मा ले शरीर, वही साक्षात भीतर, ईश्वर महान
-आत्मिक श्रीधर

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