निकाय चुनाव : कौन जात हो भाई?

उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र का स्थानीय पर्व (स्थानीय निकाय चुनाव) चरम पर है। नगर की हर गली में चहल पहल है। प्रत्याशी सिर झुकाकर हाथ जोड़ रहे हैं। पांव छुए जा रहे हैं। पांव के नीचे से अरमानों की कालीन खींची जा रही है। भैया लाल उर्मिलेश की एक कविता है-

कौन जात हो भाई?
दलित है साहब,
नहीं, मतलब किसमें आते हो?
आपके गाली में आते हैं,
गंदे नाली में आते हैं,
और अलग किए हुए थाली आते हैं साहब।
मुझे लगा हिंदू में आते हो?
आता हूं न साहब,
पर आप के चुनाव में।
क्या खाते हो भाई?
जो दलित खाता है साहब।
नहीं, मतलब क्या क्या खाते हो?
आप से मार खाता हूं,
कजऱ् का भार खाता हूं।
तंगी में कभी नून तो,
कभी आचार खाता हूं साहब।
नहीं मुझे लगा मुर्गा खाते हो?
खाता हूं न साहब,
पर आप के चुनाव में।
क्या पीते हो भाई?
जो दलित पीता है साहब।
नहीं, मतलब क्या क्या पीते हो?
छुआछूत का गम,
टूटे अरमानों का दम,
नंगी आंखों से देखा गया सारा भ्रम साहब।
मुझे लगा शराब पीते हो?
पीता हूं न साहब, पर आपके चुनाव में।
चुनाव में क्या मिला है भाई?
जो दलितों को मिलता है साहब।
नहीं, मतलब क्या-क्या मिला?
जिल्लत भरी जिंदगी,
आपकी छोड़ी हुई गंदगी,
इस पर भी आप जैसी, परजीवों की बंदगी साहब।
मुझे लगा वादे मिले हैं?
मिला है ना साहब,
पर आप के चुनाव में।
क्या किया है भाई?
जो दलित करता है साहब।
नहीं मतलब क्या-क्या किया है?
सौ दिन तालाब में काम किया,
पसीने से तर सुबह को शाम किया,
आते-जाते आप लोगों को सलाम किया साहब।
मुझे लगा कोई बड़ा काम किया?
किया है न साहब,

आपके चुनाव का प्रचार।
भारत में स्थानीय निकाय (स्थानीय स्वशासन) चुनाव कराने का श्रेय जॉर्ज फैडरिक सैमुअल रॉबिंसन प्रथम लार्ड रिपन (1880,1884) को जाता है। लार्ड रिपन ने भारत मैं बहुत से सुधार कार्य किए जिसके कारण लॉर्ड रिपन को भारत के उद्धारक की संज्ञा दी गई। उसने जिलों में तहसील बोर्डों और नगरों में नगरपालिका परिषद का गठन किया। भारत में प्रथम जनगणना लॉर्ड मेयो के समय में 1872 में प्रायोगिक तौर पर शुरुआत हुई लेकिन नियमित जनगणना लार्ड रिपन के समय में 1881 से प्रारंभ हुई तब से लेकर प्रत्येक 10 वर्ष के अंतराल पर जनगणना कराई जाती है। भारत में जाति जनगणना का मुद्दा बहुत जोरों पर है जो केंद्र सरकार को भी असमंजस में डाल रखा।
एक बात स्पष्ट कर दें कि 1931 तक भारत में ब्रिटिश सरकार ने जाति जनगणना कराती रही लेकिन 1941 में ब्रिटिश सरकार ने जाति जनगणना का आंकड़ा जारी नहीं किया। इसका कारण ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध बताया उसके बाद जाति जनगणना कभी नहीं हुई। लार्ड रिपन ने प्राइमरी शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा में सुधार के लिए डब्ल्यू डब्ल्यू हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया हंटर ने अपनी रिपोर्ट 1882 में प्रस्तुत की। लार्ड रिपन के समय मे ही बहुचर्चित इल्बर्ट बिल प्रस्तुत किया गया था इस विधेयक में भारतीय न्यायाधीशों को यूरोपीय मुकदमों को सुनने का अधिकार दिया गया था भारत में रहने वाले अंग्रेजों ने इसका जोरदार विरोध किया इस विद्रोह को श्वेत विद्रोह कहा गया उनका कहना था कि ए काले (भारतीय लोग) हमारे ऊपर हुक्म चलाएंगे।
इस विरोध के कारण लॉर्ड रिपन को इल्बर्ट विधेयक को वापस लेना पड़ा और बाद में संशोधन के साथ पुन: प्रस्तुत किया जिसमें यह प्रावधान था कि भारतीय न्यायाधीश यूरोपीय न्यायाधीश के सहयोग से मुकदमों का निर्णय करेंगे। इस विधेयक के कारण ही लार्ड रिपन को त्याग पत्र देना पड़ा और लंदन सरकार ने लार्ड रिपन को वापस बुला लिया। फ्लोरेंस नाइनटीगेल ने रिपन को भारत के उद्धारक की संज्ञा दी है। भारतीय लोग लॉर्ड रिपन को सज्जन रिपन के रूप में याद करते हैं रिपन के शासनकाल को भारत में स्वर्ण युग का आरंभ कहा जाता है। लार्ड रिपन अपने बारे में कोलकाता के अपने प्रथम वक्तव्य में ही कहा था मेरा मूल्यांकन मेरे कार्यों से करना मेरे शब्दों से नहीं।
हरी लाल यादव
सिटी स्टेशन जौनपुर
मो.नं. 9452215225

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