'संवैधानिक जनतंत्र की रक्षा देश के लिए कलमकारों को आगे आना ही होगा'

जौनपुर, 6 अगस्त। शांति के मसीहा बुद्ध, नानक और कबीर के जरिए संजोई गयी हमारे देश की परम्परा दुनिया में सबसे पुरानी है। यह एक ऐसी साझी विरासत है, जो हमें दुनिया के समक्ष गर्व करने लायक बनाती है, उसकी रक्षा साहित्य और संस्कृति कर्मियों को एकजुट होकर करनी होगी।

यह विचार प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. सुखदेव सिंह सिरसा के हैं। वह यहां हिन्दी भवन में आयोजित प्रगतिशील लेखक संघ के बारहवें राज्य सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। विभिन्न सत्रों में बांटकर हुए इस सम्मेलन की थीम 'जनतंत्र की रक्षा में लेखक' रखी गई थी।
कार्यक्रम में प्रलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वर्धा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति विभूति नारायण राय ने अपने संबोधन में कहा कि जबतक देश का संविधान है और वह सुरक्षित है, तबतक देश भी सुरक्षित है। उन्होंने कहा कि यह अलग बात है कि मौजूदा समय में संविधान को लेकर सांप्रदायिक ताकतें खास तरह की सांप्रदायिक सोच पैदा करने में लगी हुई हैं और ऐसा करके देश को एक खास केंद्र पर लाना चाहती हैं। उनका यह कृत्य इन ताकतों की सांप्रदायिक- जातिवादी राजनीति को पुष्ट करता है, जिसे आम जनमानस समझने लगा है।

उद्घाटन सत्र के आरंभ में पोस्टर प्रदर्शनी, जनगीत
उद्घाटन सुखदेव सिंह सिरसा ने किया।
इस अवसर पर प्रांतीय अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध कवि नरेश सक्सेना, इप्टा के राष्ट्रीय राकेश ने अपने विचार व्यक्त किए। धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ आलोचक एवं हरिश्चन्द्र कालेज वाराणसी के पूर्व प्राचार्य डा.गया सिंह ने किया। संचालन प्रलेस के प्रांतीय महासचिव डा.संजय श्रीवास्तव ने किया।

सम्मेलन के आरंभ में स्वागत वक्तव्य हिंदी भवन के संरक्षक अजय कुमार ने दिया।


इसके बाद संगोष्ठी में पहला सत्र 'अभिव्यक्ति के ख़तरे उठाने ही होंगे' पर परिचर्चा हुई। इसमें देश के प्रसिद्ध साहित्यकारों ने अपने विचार प्रकट किए। इस परिचर्चा के अध्यक्ष मण्डल में वीरेंद्र यादव, चौथीराम यादव, शाहिना रिज़वी शामिल थे जबकि 
मुख्य वक्ता बीएचयू के प्रो और आलोचक आशीष त्रिपाठी थे। परिचर्चा में
रघुवंशमणि, खान अहमद फारूक, प्रियदर्शन मालवीय, एम.पी.सिंह ने अपने विचार व्यक्त किए। सत्र का संचालन  आनंद शुक्ल ने किया और 
आभार ज्ञापन कलीमुल हक़ ने किया।


प्रलेस-उ.प्र.के राज्य सम्मेलन में परिचर्चा का दूसरा सत्र  'विकलांग श्रद्धा का दौर' था। इसके अध्यक्ष मण्डल में
प्रो. अनीता गोपेश, प्रो.आर.एन.राय, प्रो.अवधेश प्रधान रहे जबकि मुख्य वक्ता  प्रो.सूरज बहादुर थापा और 
वक्ता सुरेंद्र राही, डा.बसंत त्रिपाठी, प्रो.मनोज सिंह रहे।संचालन डा.वंदना चौबे ने किया और आभार डा.नगीना जबीं द्वारा किया गया। 

परिचर्चा के बाद सांगठनिक सत्र हुआ। फिर 'पूस की रात' प्रेमचंद जी की कहानी पर आधारित एकल अभिनय आगरा डा.विजय शर्मा ने किया। अंत में प्रसिद्ध कवि नरेश सक्सेना के कविता-पाठ से सम्मेलन का समापन हुआ।

आयोजन में स्वागत वक्तव्य हिंदी भवन के संरक्षक अजय कुमार ने दिया। इस मौके पर जेपी सिंह, सालिग राम पटेल, किरण शंकर रघुवंशी,  डा.आनंद तिवारी, प्रो.धीरेंद्र पटेल, आर.पी.सोनकर, डा.अख़्तर सईद, प्रो.गोरखनाथ, डा.के.एल. सोनकर सहित बड़ी संख्या में प्रदेश भर से साहित्यकार इस सम्मेलन में शामिल हुए।

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