ललही छठ पर महिलाओं ने की पूजा,पुत्र की दीर्घायु के लिए रखा उपवास,उत्तम स्वास्थ्य की कामना

 

जौनपुर । पूर्वांचल में लोक आस्था से जुड़ा पर्व ललही छठ पूरे जनपद में धूमधाम से मनाया गया। मातायो बहनों द्वारा  तालाब के किनारे नदी के किनारे या घर में ही ललही छठ माता का अर्घ बनाकर पूजा की जाती है।ऐसी मान्यता है कि यह पूजा सिर्फ वही माताएं बहने कर सकती हैं जिनके पुत्र हो पूजा की खास बात यह है कि इस पूजा में सिर्फ भैंस के ही गोबर दूध दही का प्रयोग किया जाता है। इस व्रत को करने के लिए माताएं बहने पूरे दिन निराजल व्रत रहती हैं इस दिन यह लोग खेतों में नहीं जा सकते हैं खाने के लिए महुआ तिन्नी का चावल दही महुआ की चाय  करेमुवा के साग का प्रयोग किया जाता है। नगर के रुहट्टा मोहल्ले में काफी संख्या में महिलाओं ने एकत्रित होकर विधि विधान से पूजा अर्चना किया।इस व्रत के बारे में जानकारी देते हुए व्रती माता शशि कला श्रीवास्तव ने बताया कि यह पूजा पुत्रों की और पतियों की दीर्घायु के लिए की जाती है साथ ही इस पूजन का विधि विधान से पूजा करने पर जिन माता बहनों के बच्चे नहीं होते हैं उन्हें भी जरूर औलाद प्राप्त होती है। कुश परस की पत्ती महुआ की पत्ती फल फूल मिष्ठान कपड़ा इत्यादि चढ़कर ललही छठ माता की पूजा की जाती है। सबसे बड़ी बात की इस पूजा में हिंदुओं की आस्था गौ माता के एक भी सामान का प्रयोग नही किया जाता है। जबकि किसी भी पूजा में गौ माता के सामानों का ही प्रयोग शुद्ध माना जाता है। एक कथा प्रसिद्ध है कि प्राचीन काल में एक राजा थे जिन्हें कोई औलाद नहीं थी उनके घर में पलने वाले किसी भी जानवर या उनके पूरे परिवार में किसी को संतान सुख नहीं प्राप्त था राजा काफी परेशान थे कि एक दिन उनकी रानी द्वारा कहीं ललही छठ माता की पूजा की बात सुनने पर वहां पहुंची और उनका प्रसाद खुद ग्रहण किया और पूरे परिवार सहित अपने पशुओं को भी खिलाया जिसका परिणाम रहा कि कुछ समय बाद सभी को संतान प्राप्त हुई तब से इस व्रत का विधान लगातार चल रहा है जिसे वर्तमान समय में भी हम महिलाओं द्वारा आस्था के साथ किया जाता है और हमारी जो भी मनोकामनाएं होती हैं। ललही छठ माता जरूर पूरी करती है। इसी प्रकार एक और कथा प्रचलित है कि यह घर में देवरानी और जेठानी दोनों को बच्चे नहीं थे दोनों बहुत ही परेशान थी की तभी एक दिन लड़ाई छठ माता ने उन्हें दर्शन दिया और उन्हें चावल देकर यह कैसे जगह खाने के लिए भेजा जहां ढेर सारे बच्चे खेल रहे हो और यह कहा कि जो जल्दी ही इस चावल को खाकर आएगा उसे जरूर संतान प्राप्त होगी इतना सुनकर दोनों महिलाएं नदी किनारे पहुंची जहां बच्चे खेल रहे थे बच्चों ने इसे खाने के लिए चावल मांगा तो जेठानी ने बच्चों को भगा दिया जबकि देवरानी ने बच्चों को चोरी चुपके खिलाया और एक मुट्ठी चावल खुद खाया वापस लौटकर माता ने दोनों से जानकारी मांगी और देवरानी को पांच बच्चे होने का वरदान दिया जबकि जेठानी को यह कह कर वापस कर दिया कि तुम्हारे अंदर बच्चों को पालन पोषण करने की समझ नहीं है और तुम्हें बच्चों से प्यार नहीं है जबकि देवरानी के अंदर बच्चों को लालन-पालन और उन्हें प्यार करने की समझ है ऐसे में उसे ही बच्चे दिए जाएंगे। ललही छठ पर्व पर महिलाओं ने पुत्र के दीर्घायु के लिए कामना की। महिलाएं  स्वच्छ परिधानों में पूजा की थाली लेकर पूजन स्थल पर पहुंची। जहां ललही छठ की कथा एक दूसरे को सुनाकर पुत्र के दीर्धायु होने तथा कुशलता की कामना की।पूजा के उपरांत ललही छठ मइया की गीतों से पूजा स्थल गूंज उठा।

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