दुनिया का सबसे बड़ा विजय/ महापर्व: विजयदशमी या दशहरा

विजय दशमी दशहरा दुनिया का सबसे बड़ा महा पर्व है और एकमात्र ऐसा महापर्व है जहां पर अस्त्र शस्त्रों की पूजा होती है और जहां अस्त्र-शस्त्र मानव जाति की प्रगति और सुरक्षा की प्रत्याभूति माने जाते हैं। बिना अर्थशास्त्र में शक्तिशाली और नेपुर हुए हम अपने देश धर्म की रक्षा शैतानी राक्षसी शक्तियों से नहीं कर सकते। भारत के अन्य सभी महान व्रत पर्व और उत्सव की तरह दसारा का महापर्व भी असत्य पर सत्य की अंधकार पर प्रकाश की और अज्ञान पर ज्ञान की महा विजय के रूप में मनाया जाता है। यह महापर्व भी पूरी तरह विज्ञान धर्म-दर्शन अध्यात्म और ऋतु चक्र तथा मौसम पर आधारित है। इस समय जहां गर्मी और वर्षा की विदाई होती है तो दूसरी ओर शरद ऋतु और जाड़े का आगमन होता है और मौसम समशीतोष्ण अर्थात एक जैसा रहता है।


क्यों मनाया जाता है दशहरा?
विजयादशमी अथवा दशहरा मनाया जाने का सबसे प्रमुख कारण है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने आतंक अत्याचार और विश्व भर में अशांति के प्रतीक बन चुके राक्षसराज रावण का वध किया था और उनके 10 शीश को हरण किया था, इसीलिए इसका नाम दशहरा है। भगवान श्री राम की विजय होने से इसे विजयादशमी भी कहते हैं, क्योंकि यह आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी की तिथि थी जिसके बाद भगवान श्रीराम श्रीलंका से चलकर विभिन्न देश प्रदेश से होकर दीपावली के दिन अयोध्या की सुंदर और भव्य राजधानी में पहुंचे थे और सारी अयोध्या आह्लादित हो उठी थे। इसी महा विजय के उपलक्ष में दशहरे को रावण, कुंभकरण, मेघनाथ सहित राक्षसों के पुत्रों का वध किया जाता है। देश भर में राम—रावण का प्रतीकात्मक युद्ध होता है और रामलीला भी इसी समय से शुरू हो जाती है। यह महापर्व हमें संदेश देता है कि असत्य अंधकार अज्ञान कितना भी विराट और गहरा हो लेकिन ज्ञान सत्य और न्याय के आगे वह एक दिन हार जाता है।
इसकी दूसरी एक कथा है कि जब महिषासुर नामक महान असुर से तीनों लोक परास्त हो गए और देवता स्वर्ग छोड़कर पलायन कर गए और इंद्र का वज्र भी उसके आगे असफल हो गया हो गया तब भगवान विष्णु के सुझाव पर तीन महान ईश्वरीय तत्वों ब्रह्मा विष्णु महेश तथा उनकी प्रकृति शक्तियों और सभी देवी—देवताओं के सम्मिलित तेज को मिलाकर तेज पुंज रूपी दुर्गा देवी का निर्माण किया गया जिसमें अपने प्रलयंकारी और अद्भुत पराक्रम से 9 दिन घनघोर युद्ध करने के बाद 10वें दिन तीनों लोको का उत्पीड़न करने वाले अहंकारी अत्याचार और आतंक के प्रतीक महिषासुर को मार गिराया, उसी समय से 9 दिन की नवरात्रि और उसके बाद महिषासुर वध के प्रसंग के कारण भी दशहरा या विजयादशमी महापर्व मनाया जाता है। इस क्रम में उन्होंने सारी असुर सेना और शुंभ निशुंभ का वध अपनी सहायक दैवी शक्तियों द्वारा किया था।

क्षत्रिय वीरों के असाधारण अतुलनीय और चमत्कारिक शौर्य का प्रतीक है दशहरा अथवा विजय दशमी
प्राचीन काल में इसको क्षत्रियों के लिए शस्त्र पूजा के लिए बनाया गया था, ऐसा इसलिए है कि कोई देश बिना अस्त्र शस्त्र और सुरक्षा के उन्नति नहीं कर सकता और ऐसा करने वाला देश कालांतर में शत्रुओं का दास हो जाता है। अस्त्र शस्त्रों के आगे देव शक्तियां ज्ञान विज्ञान सब परास्त हो जाता है। जैसा कि भारत में हुआ जब क्षत्रिय शक्ति कहीं भी कमजोर पड़ी तब वहां विदेशी राक्षसी आक्रमणकारियों का आक्रमण हुआ और उन्होंने लाखों—करोड़ों लोगों को बिना अपराध के मार डाला। अनगिनत सामूहिक हत्या बलात्कार किया पुरुष और स्त्रियों को बाजारों में कौड़ियों के भाव बेच दिया देश के बहुमूल्य धरोहर और अद्वितीय ज्ञान विज्ञान के पुस्तकालय जला दिये, इसलिए विजयदशमी के दिन सभी क्षत्रियों के लिए अस्त्र शस्त्रों की पूजा अनिवार्य की गई जिसे सभी राजा महाराजा सम्राट चक्रवर्ती सम्राट बड़े धूमधाम से मनाया करते थे और इसी दिन शस्त्र की पूजा करके अपने विजय अभियान या चक्रवर्ती विजय अभियान में निकल जाया करते थे। सृष्टि के प्रथम मानव और सम्राट मनु से लेकर मांधाता, मुचकुंद, रघु, श्रीराम, श्रीकृष्ण, चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, हर्षवर्धन, पृथ्वीराज चौहान, हम्मीर देव, राणा प्रताप, शिवाजी सभी लोग दशहरा से ही अद्भुत प्रेरणा लिया करते थे। पूरी दुनिया के इतिहास संस्कृति सभ्यता को मटिया मेट करने वाले शक, हूण, कुषाण, पहलाव, यूनानी, रोमन, तातार, तुर्क मुगल मुस्लिम, यूरोपीय शक्तियां, काल, यवन, असुर, रक्षा, शैतान, दानव, म्लेच्छ शक्तियों का नाश टी क्षत्रिय राजाओं ने अनादि काल से सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग में किया। जिस इस्लामी शक्ति के आगे बड़ी से बड़ी सभ्यता 10 वर्ष नहीं टिक पाये। उसे उन्होंने लगातार डेढ़ हजार वर्षों तक सफलता के साथ लोहा लिया और प्रतिकार किया और अरब देशों तक अपनी यश पता का पहरी और अनेक बार उनको क्षमादान किया। यह बात और है कि छल कपट धोखे से अनभिज्ञ होने के कारण इनको अपना सिर उठाने का मौका मिल गया।
दशहरा महापर्व भारतीय सेना का तथा परतंत्र भारत में क्रांतिकारियों का सबसे बड़ा प्रेरणा स्रोत रहा है। भगत सिंह, आजाद, बिस्मिल से लेकर सुभाष चंद्र बोस तक इसे देश का सबसे महान और महत्वपूर्ण विजय का महापर्व कहा करते थे। इस दिन इस दिन नीलकंठ पक्षी का और शमी वृक्ष का दर्शन अत्यंत ही शुभ और विजय देने वाला माना जाता है और अगर किसी को शमी के वृक्ष पर बैठा नीलकंठ पक्षी दिख जाए तो निश्चित रूप से उसे राजश्री धन वैभव प्राप्त होता है। अंत में हम इतना ही कह सकते हैं कि आज विश्व का सबसे बड़ा महापर्व भगवान श्रीराम के साथ अनन्य रूप से जुड़कर उनकी अभूतपूर्व, असाधारण, अद्भुत और कल्पना से परे के साहस संकल्प वीरता संगठन और सूझ—बूझ का पर्याय बन गया है। प्रत्येक व्यक्ति भगवान श्री राम के समान बनकर अपने सनातन धर्म और अखंड भारत देश को बेहतर रूप में विस्तार करें। साथ ही यह संकल्प लें रामचरितमानस पढ़ते हो। राम तुम्हें भी बनना होगा। दुष्ट तुम्हें पथभ्रष्ट न कर दें। तुमको इनसे लड़ना होगा। जिस तरह भगवान श्रीराम संपूर्ण जगत में अतुलनीय हैं, उनका कोई जोड़ नहीं है। मर्यादा पुरुषोत्तम है। अपनी क्रोधक नशे द रावण जैसे त्रिलोक विजेता को जला देने वाले हैं। सबको अभयदान करके सोने की लंका शरणागत को देने वाले हैं। इस तरह विजय का महापर्व दशहरा अद्भुत अतुलनीय और सबसे बडा महापर्व है।
डा. दिलीप सिंह एडवोकेट
ज्योतिष शिरोमणि व मौसम विज्ञानी।


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