क्या नेहरू को पीएम पद से हटाना चाहते थे पटेल?

भारत को आजाद कराने में प्रमुख रूप से तीन लोगों का नाम लिया जाता है। महात्मा गांधी जवाहर लाल नेहरू और लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल लेकिन सरदार पटेल को वह श्रेय नहीं मिल पाया जिसके वह हकदार थे। चाहे राजनेता रहे हो या इतिहासकार, जैसे सुनिल खिल्लानी की किताब 'द आईडिया ऑफ इंडिया में सरदार पटेल का नाम केवल 8 बार आया है जबकि वहीं नेहरू का नाम 64 बार आया है। जाने—माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी में सरदार पटेल का जिक्र 47 बार जबकि नेहरू का का वर्णन 185 बार किया गया है। कुछ लोग ऐसे भी थे जो सरदार पटेल के बारे में अच्छे विचार रखते थे। जैसे सर रावर्ट बूचर जो ब्रिटिश कमांडर एंड चीफ थे। उनका मानना था कि पटेल को देखते ही वह एक रोमन एपिंरर की छवि देते थे। उनका एक चट्टान जैसा व्यक्तित्व था। उनको देखकर आभास होता था कि आप इस व्यक्ति में विश्वास कर सकते हैं। प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने शिकायत की थी कि गांधी अपने सबसे टेस्टेड लेफ्टिनेंट को नेहरू की ग्लैमर की वजह से बलि चढ़ा दिया। भारत के पूर्व गृह सचिव ए.बी आयगंर का कहना था कि सरदार पटेल का शुरू से ही मानना था कि भारत के दिल में एक ऐसे क्षेत्र निजाम हैदराबाद का होना जिसकी निष्ठा देश की सीमा से बाहर हो भारत की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा था। आयंगर यहां तक कहते हैं कि पटेल की दिली इच्छा थी कि निजाम का अस्तित्व ही समाप्त हो जाय लेकिन जवाहर लाल नेहरू एवं लॉर्ड माउंटबेटन की वजह से पटेल अपनी इस इच्छा को पूरा नहीं कर पाये। सरदार पटेल की नजर में उस समय हैदराबाद भारत के पेट में एक कैंसर की तरह था जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था।

22 अक्टूबर 1948 को रजादारों ने जब गंगापुर स्टेशन पर ट्रेन में सफर कर रहे हिंदुओं पर हमला बोला गया तो पूरे भारत में सरकार की आलोचना होने लगी कि वे निजाम के प्रति नर्म रूख अपना रहे हैं। नेहरू हैदराबाद में सेना भेजने के पक्ष में नहीं थे। सरदार पटेल की जीवनीकार रहे राज मोहन गांधी लिखते हैं— नेहरू का मानना था कि हैदराबाद में सेना भेजने से कश्मीर में भारतीय सैनिक ऑपरेशन को नुकसान पहुंचेगा। एजी नूरानी अपनी किताब 'द डिस्ट्रक्शन आफ हैदराबाद में लिखते हैं कि हैदराबाद के मुद्दे पर कैबिनेट की बैठक बुलाई गई जिसमें नेहरू और पटेल दोनों लोग मौजूद थे। नेहरू सिद्धांत रूप से सैनिक कार्रवाई के खिलाफ नहीं थे, बल्कि सेना भेजना अंतिम विकल्प मानते थे लेकिन पटेल सेना भेजना पहला विकल्प मानते थे। बातचीत के लिए उनके पास धैर्य नहीं था। इस बैठक की एक और गवाह और पटेल के मित्र रहे और उस समय रिफार्म कमिश्नर बी.पी. मेनन ए.एच.बी. हॉस्टन को 1964 के एक इंटरव्यू में किया है। मेनन कहते हैं कि नेहरू शुरुआत में मुझ पर हमला बोला। असल में वे मेरे बहाने सरदार पटेल को निशाना बनाना चाह रहे थे। पटेल थोड़ी देर तो चुप रहे लेकिन नेहरू जब ज्यादा कटु हो गये तो पटेल बैठक से वॉकआउट कर गये। मैं भी उनके पीछे-पीछे बाहर आया, क्योंकि मेरे मंत्री के अनुपस्थिति में मेरे वहां रहने का कोई तुक नहीं था।
इसके बाद राजा जी (चक्रवर्ती गोपालाचारी) ने मुझसे संपर्क कर सरदार को मनाने के लिए कहा। फिर मैं और गोपालाचारी सरदार पटेल के पास गए सरदार पटेल लेटे हुए थे और उनकी बी.पी बहुत ही हाई थी। सरदार गुस्से में चिल्लाए नेहरू अपने आपको समझते क्या हैं? आजादी की लड़ाई दूसरे लोगों ने भी लड़ी है। सरदार पटेल का इरादा था। कार्यसमिति की बैठक बुलाकर नेहरू को पी.एम. पद से हटा दिया जाए लेकिन राजा जी ने सरदार को डिफेंस कमेटी की बैठक में शामिल होने के लिए मान लिया। बैठक में नेहरू शांत रहे और हैदराबाद पर हमला करने की योजना को मंजूरी मिल गई। भारतीय सेना के उपसेना प्रमुख एसके सिन्हा अपनी आत्मकथा में लिखते हैं— मैं जनरल करिअप्पा के साथ कश्मीर में था कि उन्हें संदेश मिला कि सरदार पटेल उनसे तुरंत मिलना चाहते हैं। मैं उनके साथ सरदार पटेल के घर गया। मैं बरामदे में रहा। करिअप्पा उनसे मिलने अंदर गए और 5 मिनट में बाहर आ गये। बाद में जनरल करियप्पा ने मुझे बताया कि सरदार ने उनसे सीधा सवाल पूछा कि अगर हैदराबाद के मसले पर पाकिस्तान से कोई प्रतिक्रिया आती है तो वह बिना किसी अतिरिक्त मदद के हालात से निपट पाएंगे। करिअप्पा ने एक शब्द का जवाब दिया— हां। उसके बाद यह बैठक खत्म हो गई। इसके बाद सरदार पटेल ने हैदराबाद के खिलाफ  सैनिक कार्रवाई का अंतिम रूप दिया।
भारत के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल रावर्ट बुचर इस फैसले के खिलाफ थे। उनका कहना था कि पाकिस्तान की सेना इसके जवाब में अहमदाबाद और मुंबई में बम गिरा सकती है लेकिन सरदार पटेल उनकी सलाह नहीं मानी इंदर मल्होत्रा अपने एक लेख मे लिखते हैं। जैसे ही भारतीय सेना हैदराबाद में घुसी पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान अपने डिफेंस काउंसिल की बैठक बुलाई और सवाल किया कि क्या हैदराबाद में पाकिस्तान कोई एक्शन ले सकता है? बैठक में मौजूद ग्रुप कैप्टन अल वर्दी खान ने कहा नहीं लियाकत अली ने फिर जोर देकर पूछा— क्या हम दिल्ली पर बम नहीं गिरा सकते हैं। अलवर्दी का जवाब था। हां, यह संभव तो है लेकिन पाकिस्तान के पास कुल 4 वर्षक विमान है जिनमें से सिर्फ दो काम कर रहे हैं। इनमें से शायद एक दिल्ली पहुंचकर बम गिरा भी दे लेकिन इनमें से कोई वापस नहीं आ पाएगा। 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना मेजर जनरल जे.एन चौधरी के नेतृत्व में हैदराबाद में घूसी। इस ऑपरेशन को ऑपरेशन पोलो नाम दिया गया। 108 घंटे की इस कार्रवाई में 1373 रजाकार मारे गये। हैदराबाद स्टेट के 807 जवान भी मारे गये। भारतीय सेना ने अपने 66 जवान खोये। जब निजाम ने उनके सामने आकर अपना सिर झुकाकर हाथ जोड़ तो लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल मुस्कुराकर उनके अभिवादन का जवाब दिया।
टाइम्स पत्रिका ने अपने 22 फरवरी 1937 के अपने मुख्य पृष्ठ पर छापते हुए शीर्षक दिया था— निजाम दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति। निजाम अमीर होने के साथ बहुत बड़े कंजूस भी थे। निजाम फटी शेरवानी और 35 साल पुरानी फौज कैप पहना करते थे जिसमें रूसी की एक परत जमा होती थी। जब वह अपने यहां किसी मेहमान को बुलाते थे तो बहुत कम खाना परोसा जाता था। चाय पर सिर्फ दो बिस्कुट आती थी। एक निजाम के लिए एक मेहमान के लिए अगर मेहमानों की संख्या ज्यादा होती थी तो उसी अनुपात में बिस्किटों की संख्या बढ़ाई जाती थी। दीवान जर्मनी दास अपनी किताब महाराजा में लिखते हैं— निजाम को उनके जानने वाले अमेरिकी ब्रिटिश टर्की सिगरेट पीने के लिए ऑफर करते थे तो वे एक बजाए 4-5 सिगरेट निकालकर अपने सिगरेट केस में रख लिया करते थे। उनकी अपनी सिगरेट सस्ती चारमीनार हुआ करती थी जिसका उस जमाने में 10 सिगरेटों का एक पैकेट 12 पैसे में आता था। जाने—माने इतिहासकार डोमिनिक लापियर और लोरी कलियंस अपनी किताब फ्रीडम एंड मिडनाइट में एक दिलचस्प वाकया का जिक्र किया है। हैदराबाद में रस्म थी कि साल में एक बार रियासत के कुलीन लोग निजाम को सोने का सिक्का भेंट करते थे जिन्हें वे छूकर वापस लौटा देते थे लेकिन आखिरी निजाम उन सिक्कों को लौटाने की बजाय अपने सिंहासन पर रखे एक कागज के थैले में डालते जाते थे। एक बार जब एक सिक्का जमीन पर गिर गया तो निजाम उसे ढूंढने के लिए अपने हाथों—पैरों के बल जमीन पर बैठ गये और लुढ़कते हुए सिक्के के पीछे तब तक भागते रहे जब तक सिक्का निजाम के हाथ में नहीं आ गया।
हरी लाल यादव
सिटी स्टेशन, जौनपुर
मो.नं. 9452215225

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