घर खरीददारों का विश्वास खोते कई बिल्डर: इं. आरके जायसवाल

दिल्ली । कहा जाता है कि भगवान कि मेहरबानी से एक सपनों का घर मिलता है और इसमें सहायक बने लोगों को भी ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में माना जाता है लेकिन जब ये प्रतिनिधि किसी बिल्डर या डेवलपर रूप में एक राक्षस बनकर लोगों के सामने आता है तो आपके जीवन भर के पसीने की कमाई को एक झटके में गबन कर जाती है, फिर आपको उनके औफिस के दरवाजे पर बाउंसर मिलते हैं और कोर्ट कचहरी के बाद भगवान भरोसे ही छोड़ देते हैं।

अधिकांश परियोजनाओं में घटनाओं का क्रम नीरस और पूर्वानुमानित है। घर बुक होने से पहले बिल्डर संभावित खरीदारों के पीछे भागते हैं और बुक होने के बाद खरीदार बिल्डर के पीछे भागते हैं। क्रेता की उम्मीदें इस हद तक कम हो गई हैं कि एक साल की देरी वाली परियोजना को पूरी तरह से अस्वीकार्य माना जाता है, फिर भी फंसे हूए क्रेता खराब निर्माण गुणवत्ता और वादा की गई सुविधाओं में कमी को नजर अंदाज कर भी अपने सपनों के घर का मालिकाना हक़ के लिए दर-दर ठोकरें खाते हैं। सच्ची चुनौती तब सामने आती है जब कोई परियोजना खिंच जाती है या रुक जाती है और बिल्डर संवाद करना बंद कर देता है। इसके बाद एक कानूनी लड़ाई होती है और धोखेबाज घर खरीदार को अक्सर पता चलता है कि डेवलपर की कानूनी टीम उसकी निर्माण टीम से बड़ी है। भले ही कानूनी लड़ाई कोई भी जीतता हो, अंतिम परिणाम स्पष्ट है कि अधिकांश घर खरीदार बिल्डर पर विश्वास खो देते हैं और परियोजना की नियमित निगरानी और पर्यवेक्षण के साथ लगभग अंशकालिक बिल्डर बनने के लिए मजबूर हो जाते हैं। कोविड महामारी के बाद से रियल एस्टेट में जबर्दस्त मांग के साथ उछाल आई है।
सूत्रों के अनुसार समीक्षाधीन अवधि में दिल्ली-एनसीआर में आवास बिक्री 11 हज़ार यूनिट से 27 प्रतिशत बढ़कर 14 हज़ार यूनिट हो गई है। साथ ही भारतीय शहरों के एनसीआर प्रापर्टी में लोगों कि रुचि में लगातार वृद्धि हो रही है। वहीं अभी देश में त्योहारों का सीजन दहलीज पर खड़ी है और इसका फायदा उठा कर कुछ डेवलपर शिकारी के रूप में दाने डालने शुरु कर दी है, इसीलिए सावधान रहें और अपने मेहनत कि पसीने से कमाई को सही जगह सोच समझ कर सुरक्षित करें। साथ ही कोर्ट कचहरी परेशानियों से वंचित रहें और अपने सपनों को साकार बनाएं। दिल्ली-एनसीआर कि कुछ छोटे बड़े बिल्डर व डेवलपर को छोड़ दिया जाय तो अधिकांश अपने आपको दिवालिया घोषित करने कि होड़ में लगें हुये हैं। वहीं लाखों लोगों को कई साल बीत जाने के बाद भी सपनों का घर नहीं मिल पाया है। सरकार ने इसके लिए कूछ कठोर कदम उठाते हुए कुछ कानून बनाया जरूर लेकिन यह शिकारी और भी फंसते चले गये। इनकी बजह से खरीदारों के साथ साथ अच्छे-अच्छे बिल्डरों कि भी परेशानी बढ़ गई है। एनसीआर से सटे दिल्ली,‌ ग्रुरूग्राम ख़ासकर नोएडा, फरीदाबाद और गाजियाबाद के सभी राज्य सरकारों को उपभोक्ताओं का अपना सपनों के घर को इन शिकारियों के चंगुल से मुक्त कराने में मदद करनी चाहिए। यह कब तक हो पाएगा, मालूम नहीं लेकिन आप अपनी लड़ाई सरकार द्वारा बनाए गए रेरा अधिनियम-16 के साथ लड़ सकते हैं।
लाखों लोग ऐसे हैं जो घर खरीदते समय बिल्डर की बात पर आंख बंद करके भरोसा कर लेते हैं लेकिन जाल में फंस जाते हैं जिसका बाद में उन्हें पछतावा होता है। जरूरी नहीं है कि सब बिल्डर एक जैसे हों लेकिन आपका बिल्डर सही है, इसका पता लगाना जरूरी है, अन्यथा आपकी सारी गाढ़ी कमाई दांव पर लग सकती है। वहीं जब आप अपने सपनों का घर खरीदने जा रहे हों तो पहले इन सभी बातों का जायजा बिल्डर से जरूर लें। जैसे बिल्डिंग प्लान और उसकी स्वीकृति, सेल डीड, मदर डीड, प्रॉपर्टी का रेरा पंजीकरण, खाता प्रमाण पत्र, ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट, अप्रूवल लाइसेंस और बिल्डर की विश्वसनीयता को परख करके ही घर खरीदें।

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