भारतीय राजनीत में महत्व पूर्ण अहमियत रखता है जौनपुर लोक सभा सीट
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जौनपुर
लोक सभा सीट भारतीय राजनीत में महत्व पूर्ण अहमियत रखता है। इस सीट पर
आचार्य बीरबल 1952 से लेकर 1962 तक काग्रेस का परचम लहराया था। 1963 के उप
लोक सभा चुनाव में जन संघ के संस्थापक पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ने अपनी
किस्मत आजमाया था लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी जैसे कई दिग्ज नेताओ के लाख
कोशिशो के बावजूद दीनदयाल जी यहाँ के जमीनी नेता व काग्रेस प्रत्यासी बाबू
राजदेव सिंह से चुनाव हार गये थे। इसके बाद राज देव सिंह ने इस सीट पर जीत
की हैट्रिक लगाई थी। 1999 में इस सीट पर भाजपा प्रत्यासी स्वामी चिन्मयानंद
जनादेश हासिल कर केद्र सरकार में गृहराज्य मंत्री बने थे।
किस पार्टी का गढ़, किसका दबदबा, पिछले कुछ सालों में उलटफेर
1952 से लेकर 1979 तक इस सीट पर काग्रेस का कब्जा रहा। 1980 में यह सीट सोसलिस्ट पार्टी के खाते में चली गई थी 1984 में फिर काग्रेस के हाथो में आ गई थी लेकिन 1989 के चुनाव में यह सीट भाजपा ने छीन लिया। 1991 के चुनाव में जनता दल ने अपना परचम लहराया 1996 के चुनाव में यह सीट फिर भाजपा के खाते में आ गई थी। 1998 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पहलीबार जीत दर्ज किया था। 1999 के चुनाव में एक बार फिर इस लोक सभा सीट पर भाजपा का कमल खिला। 2004 में सपा की साईकिल धूम कर चली। 2009 में बीएसपी के बाहुबली प्रत्यासी धनंजय सिंह ने सपा से यह सीट छीनकर बसपा की झोली में डाल दिया।
अब तक के सांसदो की सूची
1- 1952 - आचार्य बीरबल - काग्रेस
2- 1957 - आचार्य बीरबल - काग्रेस
3- 1962 - राजदेव सिंह - कांग्रेस
4- 1967 - राजदेव सिंह - कांग्रेस
5- 1971 - राजदेव सिंह - कांग्रेस
6- 1977 - आचार्य बीरबल - काग्रेस
7- 1980 - ए यू आज़मी सोसलिस्ट पार्टी
8- 1984 - कमला सिंह कांग्रेस
9- 1889 - राजा यादवेंद्रदत्त दूबे - भाजपा
10- 1991 - अर्जुन यादव - जनता दल
11- 1996 - राजकेसर सिंह - भाजपा
12- 1998 - पारसनाथ यादव- सपा
13-1999 - स्वामी चिन्मयानंद- भाजपा
14- 2004 - पारसनाथ यादव - सपा
15- 2009 - धनंजय सिंह - बीएसपी
किस पार्टी का गढ़, किसका दबदबा, पिछले कुछ सालों में उलटफेर
1952 से लेकर 1979 तक इस सीट पर काग्रेस का कब्जा रहा। 1980 में यह सीट सोसलिस्ट पार्टी के खाते में चली गई थी 1984 में फिर काग्रेस के हाथो में आ गई थी लेकिन 1989 के चुनाव में यह सीट भाजपा ने छीन लिया। 1991 के चुनाव में जनता दल ने अपना परचम लहराया 1996 के चुनाव में यह सीट फिर भाजपा के खाते में आ गई थी। 1998 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पहलीबार जीत दर्ज किया था। 1999 के चुनाव में एक बार फिर इस लोक सभा सीट पर भाजपा का कमल खिला। 2004 में सपा की साईकिल धूम कर चली। 2009 में बीएसपी के बाहुबली प्रत्यासी धनंजय सिंह ने सपा से यह सीट छीनकर बसपा की झोली में डाल दिया।
अब तक के सांसदो की सूची
1- 1952 - आचार्य बीरबल - काग्रेस
2- 1957 - आचार्य बीरबल - काग्रेस
3- 1962 - राजदेव सिंह - कांग्रेस
4- 1967 - राजदेव सिंह - कांग्रेस
5- 1971 - राजदेव सिंह - कांग्रेस
6- 1977 - आचार्य बीरबल - काग्रेस
7- 1980 - ए यू आज़मी सोसलिस्ट पार्टी
8- 1984 - कमला सिंह कांग्रेस
9- 1889 - राजा यादवेंद्रदत्त दूबे - भाजपा
10- 1991 - अर्जुन यादव - जनता दल
11- 1996 - राजकेसर सिंह - भाजपा
12- 1998 - पारसनाथ यादव- सपा
13-1999 - स्वामी चिन्मयानंद- भाजपा
14- 2004 - पारसनाथ यादव - सपा
15- 2009 - धनंजय सिंह - बीएसपी
दावे और वादे की पोल खोल 1989
के पहले जौनपुर में विकास की कुछ किरणे जरुर दिखाई पड़ी थी.। काग्रेस के शासन
काल में कताई मिल , रतना शुगर मिल , सतहरिया अधौगिक क्षेत्र और पूर्वांचल
विश्वविद्यालय का स्थापना हुआ था। उसके मंडल कमन्डल की राजनीत ने यहाँ के
विकास को विनाश की तरफ धकेल दिया है। शुगर मिल को मायावती सरकार ने अवने
पौने दामो में बेच दिया, कताई मिल को समाजवादी पार्टी ने घाटे के कारण बंद
कर दिया है सतहरिया अधौगिक क्षेत्र अंतीम सांसे ले रहा है पूर्वांचल
विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रट्राचार किसी से छिपा नहीं है। हलाकि चुनाव
के समय सभी पार्टियो के प्रत्यासी इस जिले के तक़दीर और तस्वीर बदलने का
वादा जरुर करते है लेकिन चुनाव बीतने के बाद अपनी ही तक़दीर और तस्वीर बदलने
में जुट जाते है।
6. इलाके में मूलभूत सुविधाओं की स्थिति - सड़क, बिजली, पानी
जौनपुर
लोक सभा क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओ का पूरी तरह टोटा है गड्ढे में सड़क है
या सड़के गड्ढे में यह तय कर पाना नामुमकिन है बिजली रानी का क्या कहना
जैसे गरीबो के नसीब से लक्ष्मी गायब होती है उसी तरह से जौनपुर की जनता के
नसीब से बिजली गायब हो गई है । जब बिजली ही नही है तो पानी कहा से मिलेगी।
शहरी इलाके की अवाम पानी के लिए रात में जगाकर इंतज़ार करती है महिलाये
पुरुष और बच्चे पानी के लिए कड़ी मशकत करते है ग्रामीण इलाके के
किसान खाद ,पानी और बिजली ना मिलने के कारण त्राह - त्राह कर रहे है 7. शिक्षा का स्तर, रोजगार-कारोबार के हालात, औद्योगिक इकाइयों की हालत