एक ही छत के नीचे पढ़ाया जाता है श्लोक और कलमा


जौनपुर. 'न हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा।' कुछ ऐसा ही पाठ पढ़ाया जाता है जौनपुर के एक मदरसे में। एक तरफ यहां कई हिन्दू बच्चे उर्दू की तालीम लेते हैं। वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम बच्चे संस्कृत और गणेश श्लोक फर्राटे से बोलते नजर आते हैं। इस मदरसे में एक छत के नीचे हिन्दू, मुस्लिम संस्कृति का अनोखा संगम देखने को मिलाता है। इसे लोग गंगा जमुनी तहजीब का नायब पाठशाला मानते हैं।
जौनपुर के जिला मुख्यालय से 25 किमी0 दूर जलालपुर के चवरी बाजार में साल 1998 में मदरसा अनवारूल इस्लाम की नींव रखी गई। तब किसी ने ये नहीं सोचा था कि एक दिन यही मदरसा न सिर्फ क्षेत्र का बल्कि शिराजे हिन्दू जौनपुर का नाम पूरे देश में रौशन करेगा। करीब 25 मुस्लिम बच्चों के साथ इस मदरसे की शुरूआत की गई। कमेटी ने जिस उद्देश्य को लेकर इस मदरसे को शुरु किया था, वही तालीम बच्चों को भी दी। धर्म से परे इस सोच की चर्चा धीरे-धीरे पूरे इलाके में मशहूर हो गई। मदरसा अनवारुल कमेटी के प्रधानाचार्य मोहम्मद सियाकत ने बताया कि इस मदरसे को बनाने के पीछे सिर्फ एक ही मकसद था, इंसानियत के धर्म को बढ़ावा देना। उन्होंने कहा कि यहां का पढ़ने वाला बच्चा जब बाहर जाए, तो वह न हिन्दू बने न मुसलमान। बल्कि एक अच्छा हिन्दुस्तानी बने और देश का नाम रौशन करे।  मदरसे के बारे में पता लगते ही आस-पास के ग्रामीणों ने अपने बच्चों का दाखिला यहां कराना शुरू कर दिया। यहां हिन्दू बच्चे न सिर्फ उर्दू, अरबी, फारसी की तालीम ले रहे है बल्कि कलमा, नाथ शरीफ और तराने ऐसे पढ़ते है मानो यही उनकी जुबान हो। दूसरी ओर मुस्लिम बच्चे जब संस्कृत और गणेश श्लोक पढ़ते हैं तो अच्छे-अच्छे लोग दांतो तले अंगुलियां दबा लेते हैं। शिक्षक सविता ने बताया कि करीब 500 छात्र-छात्राओं को तालीम दे रहे इस मदरसे में 16 शिक्षक पढ़ाते हैं। इनमें 6 हिन्दू हैं।
शिक्षक यहां छात्र-छात्राओं को एक अच्छा देश का नागरिक बनाने में दिन रात मेहनत करते हैं। उनका कहना है कि यहां कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। मदरसे में उर्दू अरबी की तालीम ले रहे छात्र-छात्राओं को नज्म और कलाम बेहद पसंदीदा‌ हैं। यहां की जमीन एक ब्राहम्ण परिवार से मदरसे की कमेटी ने खरीदी थी। कमेटी का मकसद साफ था, उनके मदरसे से पढ़ कर जब बच्चा बाहर जाए तो न सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल बने। बल्कि पूरी मानवता की सेवा करें। शायद यही वजह है कि आस-पास तीन और विद्यालय चलते हैं बावजूद इसके उन विद्यालयों में छात्रों की संख्या नाम मात्र है। वहीं इस इस मदरसे में छात्रों की संख्या में दिनों दिन इजाफा ही होता जा रहा है।

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