वैज्ञानिक संदर्भों की कसौटी पर हमारी होली

  सुयश दूबे
प्रति वर्ष हर्षोल्लास के साथ होली पर्व हम  सभी मनाते हैं। होली दन्त.कथाएं भी प्रचलित है। वास्तव में हम होली क्यों मनाते हैं। होली पवित्र पर्व है। भारत कृषि प्रधान देश है। यहां पर्वो को  फसलों से साथ जोड़ा गया है। होली भी रबी की फसल पकने पर मनाई जाती है। गेहूं चना जौ आदि की बालियों को अग्नि में आधा पका कर खाने का प्राविधान है। दरअसल ये अर्ध.पकी बालियाँ ही ष्होलाष् कहलाती है। संस्कृत का ष्होलाष् शब्द ही होली के उदय  से  जुडा है। होली पर्व पर चौराहों पर अग्नि जलाना पर्व का विकृत रूप है। असल में यह सामूहिक हवन होता था। विशेष तौर पर ३६ आहुतियाँ जो नयी फसल पकने पर राष्ट्र और समाज के हित के लिए की जाती थीं उनका प्रभाव न केवल अन्न धन.धान्य सुरक्षा  से  जुडा था बल्कि लोगों का स्वास्थ्य भी संरक्षित होता था। लेकिन आज हम होली  पर कूड़ा टायर.ट्यूब आदि हानिकारक पदार्थों जला रहे हैं। परिणाम भी वैसा ही पा रहे हैं। इसका असर हमारे वायुमंडल पर पड रहा है जिससे हमें अति वर्षा बाढ़.सूखा और दूसरी समस्याभओं  से  जुझना पड रहा  है। संक्रामक रोग और विविध प्रकोप इसी का दुष्परिणाम हैं। जैसा किष्श्रीदेवी भागवत में वैज्ञानिक व्याख्याष् में पहले ही स्पष्ट किया गया है कि हिरण्याक्ष और हिरणाकश्यप कोई व्यक्ति.विशेष नहीं थेण्बल्कि वे एक चरित्र का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पहले भी थे और आज भी हैं और आज भी उनका संहार करने की आवश्यकता है। संस्कृत.भाषा में हिरण्य का अर्थ होता है स्वर्ण और अक्ष का अर्थ है आँख अर्थात वे लोग जो अपनी आँखे स्वर्ण अर्थात धन पर गडाये रखते हैं वह हिरण्याक्ष कहलाते हैं। ऐसे व्यक्ति केवल और केवल धन के लिए जीते हैं और साथ के अन्य मनुष्यों का शोषण  करते हैं। आज के सन्दर्भ में हम कह सकते हैं कि उत्पादक और उपभोक्ता दोनों का शोषण करने वाले व्यापारी और उद्योगपति गण ही हिरण्याक्ष  हैं। ये लोग कृत्रिम रूप से वस्तुओं का आभाव उत्पन्न करते है और कीमतों में उछाल लाते है वायदा कारोबार द्वारा पिसती है भोली और गरीब जनता। एक और   तो ये हिरण्याक्ष लोग किसान को उसकी उपज की पूरी कीमत नहीं देते और उसे भूखों मरने पर मजबूर करते हैं और दूसरी और कीमतों में बेतहाशा वृद्धी करके जनता को चूस लेते हैंण्जनता यदि विरोध में आवाज उठाये तो उसका दमन करते हैं और पुलिस .प्रशासन के सहयोग से उसे कुचल डालते हैं। यह प्रवृति सर्व.व्यापक है चाहे दुनिया का कोई देश हो सब जगह यह लूट और शोषण अनवरत हो रहा है। ष्कश्यपष्का अर्थ संस्कृत में बिछौना अर्थात बिस्तर से है। जिसका बिस्तर सोने का हो वह हिरण्यकश्यप है। इसका आशय यह हुआ जो धन के ढेर पर सो रहे हैं अर्थात आज के सन्दर्भ में काला व्यापार करने वाला व्यापारी और घूसखोर अधिकारी हिरण्यकश्यप हैं। सिर्फ ट्यूनीशियाएमिस्त्र और लीबिया के ही नहीं हमारे देश और प्रदेशों के मंत्री.सेक्रेटरी आदि सभी तो हिरण्य कश्यप हैं। प्रजा का दमन करना उस पर जुल्म ढाना यही सब तो ये कर रहे हैं।जो लोग उनका विरोध करते हैं प्रतिकार करते है सभी तो उनके प्रहार झेलते हैंण् अभी ष्प्रहलादष् नहीं हुआ है अर्थात प्रजा का आह्लाद नहीं हुआ है। आह्लाद खुशी प्रसन्नता जनता को नसीब नहीं है। करों के भार से एअपहरण .बलात्कार सेए चोरी.डकैती एलूट.मार सेएजनता त्राही.त्राही कर रही है। आज फिर आवश्यकता है ष्वराह अवतारष् की ण्वराह यानी वऱअह त्रवर यानि अच्छा और अह यानी दिन। इस प्रकार वराह अवतार का मतलब है अच्छा दिन .समय आना। जब जनता जागरूक हो जाती है तो अच्छा समय  आता है और तभी ष्प्रहलादष् का जन्म होता है अर्थात प्रजा का आह्लाद होता है त्रप्रजा की खुशी होती हैण्ऐसा होने पर ही हिरण्याक्ष तथा हिरण्य कश्यप का अंत हो जाता है अर्थात शोषण और उत्पीडन समाप्त हो जाता हैण्। अब एक कौतूहल यह रह जाता है कि ष्नृसिंह अवतारष् क्या है घ् खम्बा क्या हैघ्किसी चित्रकार ने समझाने के लिए आधा शेर और आधा मनुष्य वाला चित्र बनाया होगा। अगर आज हमारे यहाँ ऐसा ही होता आ रहा है तो इसका कारण साफ़ है लोगों द्वारा हकीकत को न समझनण्बहरहाल हमें चित्रकार के मस्तिष्क को समझना और उसी के अनुरूप व्याख्या करना चाहिएण्ष्खम्भाष् का तात्पर्य हुआ उस जड़ प्रशासनिक व्यवस्था से जो जन.भावनाओं को नहीं समझती है और क्रूरतापूर्वक उसे कुचलती रहती हैण्जब शोषण और उत्पीडन की पराकाष्ठा हो जाती है एजनता और अधिक दमन नहीं सह पाती है तब क्रांति होती है जिसके बीज सुषुप्तावस्था में जन.मानस में पहले से ही मौजूद रहते हैंण्इस अवसर पर देश की युवा शक्ति सिंह .शावक की भाँती ही भ्रष्ट एउत्पीड़कएशोषक शासन.व्यवस्था को उखाड़ फेंकती है जैसे अभी मिस्त्र और ट्यूनीशिया में आपने देखा.सुनाण्लीबिया में जन.संघर्ष चल ही रहा हैण्१७८९ ईण् में फ़्रांस में लुई १४ वें को नेपोलियन के नेतृत्व में जनता ने ऐसे ही  उखाड़  फेंका थाण्अभी कुछ वर्ष पहले वहीं जेनरल डी गाल की तानाशाही को मात्र ८० छात्रों द्वारा पेरिस विश्वविद्यालय से शुरू आन्दोलन ने उखाड़ फेंका थाण्इसी प्रकार १९१७ ईण् में लेनिन के नेतृत्व में ष्जार ष् की जुल्मी हुकूमत को उखाड़ फेंका गया थाण् १८५७ ईण् में हमारे देश के वीरों ने भी बहादुर शाह ज़फ़रएरानी लक्ष्मी बाई एतांत्या टोपेएअवध की बेगम आदि.आदि के नेतृत्व में क्रांति की थी लेकिन उसे ग्वालियर के  सिंधियाएपजाब के सिखों एनेपाल के राणा आदि की मदद से साम्राज्यवादियों ने कुचल दिया थाण्कारण बहुत स्पष्ट है हमारे देश में पोंगा.पंथ का बोल.बाला था और देश में फूट थीण्इसी लिए ष्प्रहलादष् नहीं हो सका।आज के वैज्ञानिक प्रगति के युग में यदि हम ढकोसलेएपाखण्ड आदि के फेर से मुक्त हो सकें सच्चाई  को समझ सकें तो कोई कारण नहीं कि आज फिर जनता वैसे ही आह्लादित न हो सकेण्लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में आज स्वंयभू भगवान् जो अवतरित हो चुके है । वे कभी नहीं चाहते कि जनता जागे और आगे आकर भ्रष्ट व्यवस्था को उखाड़ फेंके।विकृति ही विकृति.होली के पर्व पर आज जो रंग खेले जा रहे हैं वे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। जबकि रंग खेलने का उद्देश्य स्वास्थ्य रक्षा था। टेसू ;पलाशद्ध के फूल रंग के रूप में इस्तेमाल करते थे जो  रोगों से त्वचा की रक्षा करते थे और आने वाले प्रचंड ताप के प्रकोप को झेलने लायक बनाते थेण्पोंगा.पंथ और  पाखण्ड वाद ने यह भी समाप्त कर दिया एवं खुशी व उल्लास के पर्व को गाली.गलौच का खेल बना दियाण् जो लोग व्यर्थ दावा करते हैं  .होली पर सब चलता है वे अपनी हिंसक और असभ्य मनोवृतियों को रीति.रस्म का आवरण पहना देते हैंण् आज चल रहा फूहण पन भारतीय सभ्यता के सर्वथा विपरीत है उसे त्यागने की तत्काल आवश्यकता हैण्काश देशवासी अपने पुराने गौरव को पुनः  प्राप्त करना चाहें ! इस पर्व के सम्बन्ध में धार्मिक मान्यगता  से भी जोडा जाता है। जिसमें  ष्प्रह्लादष् को उसके पिता द्वारा उसकी बुआ के माध्यम से जलाने की कहानी लोक.प्रिय है। लेकिन हमें  उसके वैज्ञानिक मर्म को समझने की आवश्यकता है न कि बहकावे में भटकते रहने की। अफ़सोस और दुःख इस बात का है कि पढ़े.लिखे लोग भी उसी पाखंड को पूजते एवं सिरोधार्य करते हैं और सत्य कथन को ष्मूर्खतापूर्ण कथाष् कह कर उपहास उड़ाते हैं। वैज्ञानिक तथ्योंए  और  आधारों  का उपहास उडाया  जाता  है। इसी विडम्बना ने हमारे देश को लगभग हजार वर्षों तक गुलाम बनाये रखा और आज आजादी के ६३ वर्ष बाद भी देशवासी उन्हीं पोंगा.पंथी पाखंडों को उसी प्रकार  चिपकाये हुए हैं जिस प्रकार बन्दरिया अपने मरे बच्चे की खाल को चिपकाये  फिरती रहती हैण्

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