विश्व योग दिवस-21 जून पर विशेष: योगा का ग्लोबल डिमांड बनेगा बनेगा इंडिया

प्रभुनाथ शुक्ला
 योग की परिभाषा को शब्द जाल में नहीं समेटा जा सकता है। भारत की समस्त सृष्टि और संस्कार में योग समाहित है। योग विकारों से मुक्ति मार्ग का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक ज्ञान है। महायोगेश्वर भगवान कृष्ण योग के महागुरु हैं। इसकी सार्थकता को दुनिया के कई धर्मों ने स्वीकार किया है। योग सिर्फ व्यायाम का नाम नहीं है। योग के आठ आयामों के जनिए हम मन, मस्तिष्क और शारीरिक विकारों को नियंत्रित कर सकते हैं। आधुनिक जीवन पद्धति में योग विकारों का मुक्तिमार्ग हैं। योग शब्द का दूसरा स्वरुप भारत की आध्यात्मिक ज्ञान सभ्यता से है। योग शब्द आते ही हमारे मन और मस्तिष्क में वैदिक परंपरा का अनुभव होने लगता है। योग आध्यात्मिक प्रक्रिया है। जिससे हम शरीर, मन और आत्मा को एक साथ केंद्रीय बिंदु में स्थिर करते हैं। योग से हम अपनी तंदुरुस्ती को लाख इनामत बना सकते हैं। 21 जून हमारे लिए गौरव का विषय है। भारत की लाखों साल पुरानी आध्यात्मिक और वैज्ञानिक व्यवस्था पर आधारित यह वैदिक ज्ञान अद्वितीय है। दुनिया अब इसकी उपलब्धि को स्वीकार किया है। हमारे लिए यह मौका विवाद और विकार का नहीं, एक मंच पर आने का मौका है। दुनिया वालों का अपनी यौगिग शक्ति और साधना और उससे होने वाले लाभों से परिचय करना है। योग भारत के लिए आने वाले दिनों में बड़ा बाजार साबित हो सकता है। इसे हम धार्मिक झगड़ों में घसीट कर अपनी ही प्रगति में बाधक बन सकते हैं। यह मेक इन इंडिया पालसी का भी हिस्सा भी हो सकता है। विश्व के लगभग 200 देश भारत की इस वैदिक परंपरा का अनुसरण करेंगे। योग को अब वैश्विक मान्यता मिल गयी है। यह हमारे लिए गर्व की बात है। भगवान कृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है कि ‘योगः कर्मसु कौशलम‘ यानी हमारे कर्मों में सर्वश्रेष्ठ योग है। योग यज्ञ है और यज्ञ कर्म है। योग जीवात्मा और परमेश्वर के मिलन का साधन मात्र ही नहीं ईश साधना का भी साध्य है। योगी भगवान कृष्ण ने योग को सर्वोपरि बताया है। उन्होंने कहा है कि ‘योगस्थः कुरु कर्माणि‘ इसका तात्पर्य है कि योग में स्थिर होकर ही सद्चित कर्म संभव है। गीता में तीन प्रकार के योग ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग का वर्णन है। सांख्ययोग में 25 तत्वों का उल्लेख है। गीता का छठवां अध्याय योग को समर्पित है। लेकिन यह परिवारिक जीवन जीने वालों के लिए संभव नहीं है। श्रीमद्भागवत गीता में योग शब्द का बार-बार इस्तेमाल हुआ है। जिसमें बुद्धि और संन्यास योग के अलावा सांख्य योग, हठ योग, मंत्रयोग भी शामिल है। हठ योग इस परंपरा का अद्वितीय योग है। इसके चलते शरीर की हजारों नाडि़यों को नियंत्रित किया जाता है। मानव शरीर में पिंगला, इड़ा और सुषुम्ना तीन नाडि़या हैं। योग  मन को स्थिर रखता है। यह चित्त और मन को लगाम लगा आप को आध्यात्म सद्चित जीवन की ओर ले जाता है। मन को नियंत्रित करने के लिए योग सबसे उत्तम साधन है। मंत्रयोग के जरिय यह स्थिति प्राप्ति की जा सकती है। योग ईश्वर मिलन का साधन मात्र नहीं साध्य भी है। योग के जरिए कुंडलनी जागृत करने की हमारे यहां वैदिक परंपरा रही है। जिससे माध्यम से आत्मा और परमात्मा का मिलन संभव है। हम इसके जरिए परकाया प्रवेश भी कर सकते हैं इस तरह का उल्लेख हमारी वैदिक परंपरा में मिलती है। हमारा योगशास्त्र इस गौरवशाली उपलब्धि से अटा पड़ा है। इसके अलावा हमारे यहां लययोग, राजयोग का भी वर्णन है। चित्त की निरुद्ध अवस्था लयोग में आती है। राजयोग सभी योगों से श्रेष्ठ बताया गया है। महर्षि पतंजलि की योग परंपरा भारत में अधिक संवृद्धशाली है। योगगुरु बाबा रामदेव आज पतंजलि योग व्यवस्था के संवाहक बन गए हैं। दुनिया भर में योग की महत्वा स्थापित करने में पतंजलि योग संस्थान ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। योग और आयुर्वेद को उन्होंने वैश्विक स्वीकारोक्ति बना दी। पतंजलि योग में योग साधाना के आठ आयाम हैं। जिसमें यम, नियम, आसन, प्रणायाम, प्रत्यहार, धारणा, ध्यान और समाधि है। जिसका नतीजा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल से संयुक्तराष्ट संघ इसकी महत्व को स्वीकार किया है। पतंजलि योग परंपरा में अष्टांग योग का वर्णन आता है। यह सांसारिक धर्म और कर्म से मुक्ति पाने वालों के लिए अनुशासित और वैदिक मार्ग है। योग का इतिहास प्राचीन है। सिंधु घाटी सभ्यता का भी संबंध योग से है। प्राचीन काल की कई मूर्तियां योग मुद्रा में स्थापित हैं। भगवान शिव को योग मुद्रा में देखा जा सकता है। बुद्ध की मूर्तियां भी योग साधना में स्थापित हैं। बौद्ध और जैनधर्म में भी योग की महत्ता पर काफी कुछ है। बौद्ध और धर्म के अलावा ईसाई और इस्लाम में सूफी संगीत परंपरा में भी योग की बात आयी हैं। 21 जून विश्वयोग दिवस मनाया जाएगा। इसे लेकर पूरे देश में तैयारियां जोरों पर हैं। दिल्ली के राजपथ पर इसका भव्य आयोजन होगा। पूरा देश योग को वैश्विक सार्वभौंमिक स्वीकारोक्ति बनाने में जुटा है। लेकिन योग में दिवस पर वैदिक मंत्रोच्चार पर सवाल उठाए गए हैं। इस्लाम धर्म के कुछ लोगों ने इसका विरोध किया है। जबकि इसमें ईश साधना के श्लोक को सरकार ने हटा दिया है। योग में शामिल होने वाले किसी भी धर्म के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह दूसरे धर्म से संबंधित मंत्र या श्लोक का पाठ करे। जिससे इस विवाद पर विराम लग गया है। योग को हिंदूधर्म से जोड़ कर इसकी उपलब्धि को कम करने की कोशिश की जा रही है। यह साजिश मुस्लिम बुद्धिजीवी की ओर से अमान्य कर दी गयी है। भारत की योग व्यस्था को पटल पर लाने में योग गुरु बाबा रामदेव और बीकेएस अंयगर के योगदान को नहीं भूलाया जा सकता है। योग को धर्म से जोड़ना नाइंसाफी होगी। बदले दौर में योग का स्वरुप बदल गया है। हम केवल इसे हिंदू धर्मग्रंथों की कटघरे में बांध कर नहीं रख सकते। योग ज्ञान अब व्यापक हो चला है। भारत और दुनिया में 20 करोड़ से अधिक लोग योग साधना का लाभ उठा रहे हैं। आधुनिक युग की व्यस्त दिनचर्या में योग हमारे लिए अमृत है। अपनी जिंदगी को खुशहाल और डिप्रेशन मुक्त बनाने के लिए योग हमें खुला आकाश देता हैं। इसे हम धर्म, जाति, भाषा, सपं्रदाय और मुल्कों की सीमा में बांध कर स्वयं का और राष्ट का अहित करेंगे। भारत में योग की परंपरा 5000 हजार साल पुरानी है। भारतीय मिशन ने संयुक्तराष्ट संघ में 11 अक्टूबर 2014 को इसका प्रस्ताव दिया था। अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया के 177 देशों ने भारत के पक्ष में वोट दिया। भारत अब दुनिया का विश्वगुरु बन गया है। हम योग के 21 आसनों को अपना कर अपनी जिंदगी को सुखी, शांत और निरोगी बनाकर खुशहाल और उन्नतशील जीवन जी कसते हैं। वहीं राष्ट निर्माण और विकास में अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं। दुनिया भर में करोड़ों लोग योग को अपना नियमित जीवन बना लिया है। यह भारत के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि की बात है। योगगुरु बाबा रामदेव पहले ही इसे भारत की जीत बता चुके हैं। योग को वैश्विक मान्यता मिलने से बाबा रामदेव बेहद रोमांचित हैं। क्योंकि उनके मिशन को अधिक बल मिला है। योग संपूर्ण जीवन और चिकित्सा पद्धिति है। दुनिया में शांति युद्ध से नहीं योग से आएगी। देश विदेश के करोड़ों को योग से सुखी जीवन जी रहे हैं। दुनिया के सबसे ताकतवर अमेरिकी राष्टपति ओबामा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 जून यानी विश्व योग दिवस को एक साथ मानने का अनुरोध पहले ही किया था। योग से संबंधित युनिवर्सिटी, शोध संस्थान, आयुर्वेद मेडिसिन उद्योग नयी उम्मीदें और आशाएं लेकर आएगा। योग को पर्यटन उद्योग के रुप में विकसित किया जा सकता है। लाखों विदेशी आज भी भारत भूमि में शांति की खोज के लिए आते हैं। प्राकृकि सुंदरता के दर्शन करने यहां लोग आते है। जिससे पर्यटन उद्योग को करोड़ों रुपये का मुनाफा होता है। जब इसे मान्यता मिल गई है तो यह बड़ी जमीन उपलब्ध कराएगा। विज्ञान और विकास के बढ़ते कदम तनाव की जिंदगी दे रहा है। जिंदगी की गति अधिक तेज हो चली है। लोगों के जीने का नजरिया बदल रहा है। काम का अधिक दबाव बढ़ रहा हैं इससे हाईपर टेंशन, और दूसरी बीमारियां फैल रही हैं। तनाव का सबसे बेहतर इलाज योग विज्ञान में ही हैं। वहीं लोगों में सुंदर दिखने की बढ़ती ललक भी योग और आयुर्वेद विज्ञान को नया आयाम देगी। यह पूरे भारत के गर्व का विषय है। हमारी हजारों हजारों साल की वैदिक परंपरा का वैश्विक मंच मिला है। योग का प्रयोग अब दुनिया भर में चिकित्सा विज्ञान के रुप में भी होगा। योग करें और निरोग रहें। यह हेल्दी वल्र्ड की ओर बढ़ता पहला कदम है। 
लेखकः स्वतंत्र पत्रकार हैं









  प्रभुनाथ शुक्ल

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