नीतीश की उपलब्धियां और चुनौतियां

.राजीव ओझा 
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारतीय राजनीति की दिशा बदल रहे थे । 2010 के बिहार के जनादेश ने अचानक उनका कद बहुत बडा कर दिया था । एक बार लोग ये कहने लगे थे कि नीतीश मे प्रप्रधानमंत्री वाला मेटेरियल और मेटल मौजूद है । शासन का एक अपना माॅडल खडा कर दिया है नीतीश ने।  इधर नीतीश बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छोडते थे और उधर दिल्ली मे कांग्रेस के अधिवेशन में सोनिया और मनमोहन सिंह उसी नीतीश माॅडल को फॉलो करते नजर आते थे । नीतीश एक के बाद एक मील का पत्थर गाड रहे थे । पंचायतों में 20% आरक्षण देकर उनहोंने सोशल इंजीनियरिंग का एक कामयाब नमुना पेश किया । नीतीश के प्रिय सलाहकारो में एक सांसद शिवानंद तिवारी नीतीश को एक विजनरी नेता मानते थे अब पता नहीं और बार _ बार भाजपाइयों को ये सुझाव देते हैं कि वे नीतिश के शासन के माॅडल का अनुकरण करें । यानी नीतीश का माॅडल सुपर डुपर हो गया है । कमाल की बात ये है कि नीतीश कुमार ने भारतीय राजनीति में जो मुकाम और शोहरत हासिल किए हैं उनमें से बहुत कुछ बिहार के सीएम के रुप में हासिल किए हैं । बिहार के सीएम का कुर्सी में कांटे ही कांटे है । इस सूबे में कुछ भी अच्छा करना और शोहरत बटोरना सबको असंभव जैसा ही मालूम पडता रहा है । लालू प्रसाद यादव ने रेल चमका दिया था मगर बिहार को चमकाने का कोइ क्लू कोई एक्सन प्लान या कोई रूट चार्ट उनके पास नहीं था । नीतीश ने ये भ्रम तोडा है कि इस बिहार का कुछ नहीं हो सकता ।नीतीश ने एक अंधेरी सुरंग में रोशनी जलाने का काम किया है । दृढ इच्छा शक्ति दिखा कर उनहोंने क्रिमिनल और पॉलिटिशियन का नेक्सस तोडा है । निष्क्रिय नौकरशाहों को सोए से जगाया है ।
अकेले दम उन्होंने गांव का भ्रमण करके लोगों से संवाद बनाया है और भरोसा दिया है कि सरकार काम कर सकती है और सरकार उनके लिए काम करेगी। यही नीतीश का करिश्मा है। ,,,, ,,,, ,, तंत्र में विश्वास  खो चुकी पब्लिक एक बार फिर नीतीश के वायदों पर भरोसा कर रही है । ये करिश्मा  कायम रहे ये एक बहुत बडी चुनौती है- बडी पूंजी लाने की चुनौती। जीरो इंडस्ट्री वाले स्टेट में उधोग धंधे खडा ककरने का चुनौती,  मैनुफैकचरिंग युनिट लगाने की चुनौती। बाढ के स्थाई निदान के लिए युद्ध स्तर पर जल प्रबंधन की दरकार है ईसके लिए लाख दो लाख करोड रुपये चाहिए होंगे।ये सब इतना आसान नहीं है लेकिन नीतीश उम्मीदों और हौसले से भरे हैं। हार स्वीकार करना उनकी फितरत में नहीं है।
बडे सूरमाओं को पछाडा है मनमोहन,  सोनिया, राहुल, लालू पासवान सब उनके सामने धराशाई हुए हैं। नरेन्द्र मोदी बिहार आना चाहते थे वह भी पीएम के कैंडिडेट है । भाजपा उनके आखिल भारतीय छवि के बारे में चिंतित रहती है,  लेकिन नीतीश को नहीं मंजुर था, तो नरेन्द्र मोदी बिहार नहीं आ सके उस समय ये नीतीश का ताकत है।  इस ताकत मे बेतहाशा इजाफा हुआ है लेकिन क्या नीतीश की ये राजनीतिराजनीतिक ताकत है। बिहार के विकास, समृद्धि और संपदा मे ट्रांसलेट हो पायेगी। बिहार को अचछी क्वालिटी वाले हजारों स्कूल चाहिए,  हजारों अस्पताल चाहिए,  उन्नत बीज के बडे बडे भंडार चाहिए।
बडे सूरमाओं को पछाडा है मनमोहन,  सोनिया, राहुल, लालू पासवान सब उनके सामने धराशाई हुए हैं। नरेन्द्र मोदी बिहार आना चाहते थे वह भी पीएम के कैंडिडेट है । भाजपा उनके आखिल भारतीय छवि के बारे में चिंतित रहती है,  लेकिन नीतीश को नहीं मंजुर था, तो नरेन्द्र मोदी बिहार नहीं आ सके उस समय ये नीतीश का ताकत है।  इस ताकत मे बेतहाशा इजाफा हुआ है लेकिन क्या नीतीश की ये राजनीतिराजनीतिक ताकत है। बिहार के विकास, समृद्धि और संपदा मे ट्रांसलेट हो पायेगी। बिहार को अचछी क्वालिटी वाले हजारों स्कूल चाहिए,  हजारों अस्पताल चाहिए,  उन्नत बीज के बडे बडे भंडार चाहिए,  मजबूत कारगर नहर प्रणाली चाहिए,  हजारों मेगावाट बिजली चाहिए,  उच्च शिक्षा के सैकडों प्रतिष्ठितइस संस्थान चाहिए,  ताकि शिक्षा के क्षेत्र में पलायन रूक सके। यानी राजनीतिक बदलाव का एक बडा सूत्रपात हो गया है,  लेकिन समाजिक और आर्थिक बदलाव के क्षेत्र में मंजिले बहुत दूर है। नीतीश का सफर अभी बहुत लंबा है और रास्ते की मुश्किलें कम नहीं है। हम तो कहते हैं बिहार में जब तक जाती वाद,  परिवार वाद, जब तक खत्म नहीं होगा तब तक बिहार में कोई बदलाव नहीं होगा।

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