शिराज ऐ हिन्द के सरजमी पर एक मुस्लिम युवक ने लिखा उर्दू में लिखा हनुमान चालिसा
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जौनपुर । गंगा-जमुनी तहजीब वाले जिला
जौनपुर के मोहम्मद आदिब ने उर्दू में हनुमान चालीसा को लिखा है। अभी तक
घरों व मंदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ हिंदी भाषा में ही होता है लेकिन
अब उर्दू में भी उसे पढ़ा जा सकता है।
जौनपुर के हमाम दरवाजा निवासी मोहम्मद आदिब ने हनुमान चालीसा को लिखने का कारनामा किया है। इसके पीछे सोच विभिन्न संप्रदाय के लोग एक-दूसरे की सभ्यता, संस्कृति व धर्म को अच्छी तरह समझ सकें ताकि उनके बीच सौहार्द बना रहे। जौनपुर के तमाम साहित्यकार व रचनाकारों ने कृतियों के माध्यम से दो धर्मों को एक धागे में पिरोने का काम किया है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मोहम्मद आबिद ने भी हनुमान चालीसा का उर्दू में अनुवाद किया।
बकौल आबिद यह इस कार्य की प्रेरणा उन्हें शिव की नगरी काशी से मिली। वह दशाश्वमेध घाट पर थे। वहां दीवार पर अंकित हनुमान चालीसा को कुछ विदेशी बड़ी ही उत्सुकता से देख रहे थे। समस्या यह थी कि वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर यह लिखा क्या है। अंतत: उन्होंने एक बालक को बुलाया, जिसने टूटी-फूटी अंग्रेजी में उन्हें समझाने का प्रयास किया। बालक से अधकचरे संवाद के बाद भी उन विदेशियों की आंखों में चमक देख लगा कि वे हनुमान की विलक्षण प्रतिभा के कायल हो गए। यहीं से उन्हें प्रेरणा मिली कि जब विदेशी हमारी धार्मिक सभ्यता को समझने के लिए इतने आतुर हैं तो हम पीछे क्यों रह जाएं। उन्होंने फौरन अनुवाद के लिए हनुमान चालीसा खरीदी। उसके बाद 90 लाइन व 15 बंधनों में उसका उर्दू में अनुवाद कर डाला। यही नहीं वह अपने समुदाय के लोगों को इसे पढऩे के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं।
(दीपक उपाध्याय)
जौनपुर के हमाम दरवाजा निवासी मोहम्मद आदिब ने हनुमान चालीसा को लिखने का कारनामा किया है। इसके पीछे सोच विभिन्न संप्रदाय के लोग एक-दूसरे की सभ्यता, संस्कृति व धर्म को अच्छी तरह समझ सकें ताकि उनके बीच सौहार्द बना रहे। जौनपुर के तमाम साहित्यकार व रचनाकारों ने कृतियों के माध्यम से दो धर्मों को एक धागे में पिरोने का काम किया है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मोहम्मद आबिद ने भी हनुमान चालीसा का उर्दू में अनुवाद किया।
बकौल आबिद यह इस कार्य की प्रेरणा उन्हें शिव की नगरी काशी से मिली। वह दशाश्वमेध घाट पर थे। वहां दीवार पर अंकित हनुमान चालीसा को कुछ विदेशी बड़ी ही उत्सुकता से देख रहे थे। समस्या यह थी कि वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर यह लिखा क्या है। अंतत: उन्होंने एक बालक को बुलाया, जिसने टूटी-फूटी अंग्रेजी में उन्हें समझाने का प्रयास किया। बालक से अधकचरे संवाद के बाद भी उन विदेशियों की आंखों में चमक देख लगा कि वे हनुमान की विलक्षण प्रतिभा के कायल हो गए। यहीं से उन्हें प्रेरणा मिली कि जब विदेशी हमारी धार्मिक सभ्यता को समझने के लिए इतने आतुर हैं तो हम पीछे क्यों रह जाएं। उन्होंने फौरन अनुवाद के लिए हनुमान चालीसा खरीदी। उसके बाद 90 लाइन व 15 बंधनों में उसका उर्दू में अनुवाद कर डाला। यही नहीं वह अपने समुदाय के लोगों को इसे पढऩे के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं।
(दीपक उपाध्याय)