‘‘ बोलिए अथ अमरपुराणे यूपी बिहार खंडे राजनीतिक धर्मक्षेत्रे की जै

                
   प्रभुनाथ शुक्ल
देवलोक में देवर्षि खुद का अभूतपूर्व सत्कार देख अति प्रशन्न हुए। छिद्रान्वेषी स्वभाव के चलते वह इस बात को पचा नहीं पा रहे थे। उनमें पिताम्ह ब्रहमा से इसका कारण जानने की उत्सुकता प्रगट हुई। बोले हे ‘‘पिताम्ह हम देवलोक के इस सत्कार से बेहद अभिभूत हूं। क्या मैं इसका कारण जान सकता हूं।‘‘ बोले पुत्र धरती लोक से तुम पत्रकारिता धर्म निभाकर हाल में लौटे हो। आपने बिहार चुनाव और नीतीश शपथ ग्रहण की तथ्यात्मक रिपोर्टिंग कर देवलोक के पाठकों को आनंदित किया है। आपने देवलोकवासियों को धरती लोक में राजनीतिक धर्म निभाने वाले प्राणियों की एक-एक विशेषताओं से परिचित कराया है। इसके लिए आप साधुवाद के पात्र हैं। क्योंकि बिहार के बाद राजनीतिक लिहाज से उत्तर भारत के सबसे बड़े राज्य यूपी में भी अब चुनावी खिचड़ी पकने लगी है। लिहाजा देवलोक आपसे बिहार जैसी तथ्यात्मक रपट की अपेक्षा रखता है। अब तो आप इस सत्कार के पीछे का राज समझ गए होंगे। मीडिया गुरु देवर्षि नारद ने ब्रहमा के सामने सिर झुकाते हुए कहा ‘‘हे नाथ! आपकी लीला न्यारी है। आप धन्य हैं। आप की रचनाधर्मिता को कोई चुनौती नहीं दे सकता है। आपका न्याय अनन्य और सर्वप्रिय है। ...प्रभो धरती के प्राणियों की लीला सबसे निराली है। उसमें भी राजनीति की लीला सबसे अलग। यहां सभी धार्मों में श्रेष्ठ राजनीति है। यह सर्व और लोकप्रिय है। यह अवसरवाद, जाति, धर्म, नीति, धर्म, अधर्म, पंथ, से परे है। इसकी अपनी कोई भाषा और परिभाषा नहीं है। धरती लोक के राजनीतिक प्राणियों का धर्म अकथनीय और अवर्णनीय के साथ अद्वितीय है। इसका न आदि है न अंत। प्रभो! राजनीतिक प्राणी गोमुख और गायत्री से भी पवित्र होते हैं। आपने देखा बिहार में किस तरह क्या हुआ। धर्म, पंथ, जाति का भांडा फूटा। चुनाव पटने में हो रहे थे और पटाखे पाकिस्तान में फूट रहे थे। यह राजनीति है। इसमें नीति नहीं होती है। राजनीति में गाली के बाद गले मिलन सबसे पवित्र माना जाता है जैसे अपने केजरी भईया ने किया। धरती लोक में कल तक जो एक दूसरे को नीचा दिखाते रहे थे एक दूजे को असहिष्णु बताते रहे वे पवित्र चुनावी मौसम में किस तरह आ बैल मुझे मार की तर्ज पर आ गले लग गए। धरती की माया धन्य है प्रभो। राजनीतिक धर्मावलबिंयों की माया मायापति से भी बड़ी और निराली है। शपथ ग्रहण समारोह में आपने नहीं देखा। मानो यह शपथ ग्रहण के बजाय सर्वधर्मसमभाव सम्मेलन रहा। जाति, धर्म, बोल, वचन सबको भूला मनसा, वाचा कर्मणा से सब एक स्वर में भारत विजय का संकल्प लेते दिखे। हलांकि भारत में इस तरह का राजनीतिक गठबंधन चिरजीवी नहीं रहा हैं लेकिन उसे पुर्नजीवित करने की कोशिश राजनीति धर्मावलंबी समय-समय पर करते रहते हैं। बिहार चुनाव न होकर गोया यह बहार के दिन थे। अब अपने यूपी वाले यदुवंशी दिल से मुलायम और ठाकुर साहब को देखिए। उनकी यारी पटरी पर आती दिखती है। लेकिन खां साहब बेवजह कबाब में हड्डी और तूफान बने हैं। कहते फिर रहे हैं कि तूफान आता है तो कूड़ा करकट भी चला आता है। अब कौन उन्हें समझाए। ऐसी बात भी नहीं हैं कि वे समझते भी नहीं हैं। अरे भाई अब मुलायम सिंह बेचारे क्या करते। जनम-जनम का साथ रहा है। सैफई की आबो हवा में आज जो रंगघुला है। उसमें क्या अपने ठाकुर साहब की भूमिका कम रही है। बेचारे नेताजी ठहरे मुलायम दिल लिहाजा अपने जन्मदिन का जश्न उन्हें दो जगह मनाना पड़ा। एक अपने ठाकुर भईया के लिए दूसरे अपने रामपुरवाले अजीज के लिए।ं कृष्ण और गोपियों की तरह सभी के पास होने का उन्होंने एहसास कराया। क्योंकि यदुवंशी को 2017 के महासमर के पहले किसी दूसरे महासंग्राम की शुरुवात उनकी सेहत के लिए अच्छी नहीं होगी। इसलिए उन्हें पांचजन्य का उपयोग करना पड़ा। यानी अवस्थामा मरो नरो वा कुंजरो...। लिहाजा वे अमर प्रेम को जाहिर करने में कामयाब दिखे और अपने अपने खां साहब की रामपुरी छूरी से केक काट कर उन्हें अपना होने का एहसास भी करा दिया। महाभारत कें युद्ध में अर्जुन के दो सारथी थे एक मधुसूदन और दूसरे बजरंगबली। ठीक वैसे ही राजनीति के रणक्षेत्र में मुलामय सिंह के भी दो सारथी हैं अपने आजमगढ़ वाले बाबू साहब और रामपुरी छूरी की धारवाले खां साहब। नेताजी के दिल में आज भी दिल के अरमां आसुंओं में बह गए हम वफा करके भी तनहा रह गए की छबि ठाकर साहब की है। अमर भईया की वफादारी को मुलायम दिल नेताजी कभी नहीं भूल सकते हैं। लिहाजा कृष्णरुपी सारथी की अमरकथा और उसके प्र्रेम को वे कैसे भूल सकते हैं। क्योंकि अर्जुन के सच्चे सारथी मधुसूदन ही थे। लिहाजा अगर उनके लिए जन्म दिन का जश्न सैफई में आयोजित करना पड़ा। क्योंकि उन्हें आवश्यक था और खां साहब की रामपुरीधार से भी बचना था सो उन्होंने अपने राजनीतिक धर्म को निभाया। अब यह दीगर बात है कि अपने बिहारवाले समधी जी को जन्म दिन का केक भले नहीं नसीब हुआ। होता भी कैसे क्योंकि बिहार एक समधी जहां बिहार में बहार के दिन आने से खुश हैं वहीं सैफईवाले समधी बहार के मौसम छूट जाने से गमगीन हैं। हलांकि सुख और दुख तो अपने साथी हैं लेकिन ससुरी मलाल भी तो कुछ है। जब तक एक मुई दिल से नहीं जाएगी तो बात कैसे बनेगी। लिहाजा वे जन्म दिन के जश्न में कैसे शामिल होते। अपने लालू जी का भी आलू गोल ही रहता है। लिहाजा उसमें स्थिता नहीं रहती है। क्योंकि कहा गया है राजनीति में लालू और सब्जी में आलू का कोई जोड़ नहीं है। हूं अपने यूपी वाले समधी जी क्यों झुकें। उन्हें बिहार की बहार और हार से क्या मतलब है। यहां तो 2017 में बहार के दिन आने वाले हैं। लिहाजा वह धर्म भी तो उन्हें निभाना है। समधी आज नही ंतो कल गले मिल जाएंगे। इ तो मानमनौवल का रिश्ता है। अरे बिहार के रास में समधी जी महागांठ में नहीं बंधपाए तो क्या हुआ अभी तो दिल्ली दूर है जब बात बनती देंखेंतो तो गले मिल जाएंगे। क्योंकि राजनीति में खूब गरियाने के बाद गले मिलना ही तो राजनीतिक धर्म कहलाता है। अरे भाड़ में जाएं अपने बिहार वाले समधी। सैफईवाले समधी अपने यूपी में बिहारवाला दांव मारने में पीछे नहीं रहेंगे। लगेहाथ बहन जी का मन टटोला लेकिन उडऩ खटोला उड़ा तो उड़ा। नहीं उड़ा नहीं उड़ा। चलों इसी बहाने जश्न भी मन गया। अपने राम और रहीम भी खुश हो गए। आखिर तूफान में कूड़ा करकट तो आता ही है। आखिर ठाकुर साहब की योग माया का कुछ हिस्सा तो नेताजी के पास है ही। कथा इतिश्री होने के बाद नारद जी बोले ‘‘वाह! पिताम्हजी आपकी माया भी प्रबल है। इस ब्रहमपुराण की महिमा अनन्य है। आप जो लिख देंगे उसे मिटाने वाला कोई नहीं है। आपके संमुद्र मंथन में अमृत और विष दोनों निकलता है। वह भी सबके हिस्से में बराबर-बराबर जाता है। समय को आप कितने सुंदर ढंग से सहेजते हैं। आप धन्य हैं।‘‘ बोलिए अथ अमरपुराणे यूपी बिहार खंडे राजनीतिक धर्मक्षेत्रे की जै। बोलिए सैफइवाले दुवंशी की जै। इतिश्री।
लेखकः स्वतंत्र पत्रकार हैं







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