अटाला मस्जिद की आधार शिला फिरोजशाह तुगलक ने 1364 ई0 में रखी थी लेकिन इसका निर्माण 34 वर्ष के बाद 1408 ई0 में सुल्तान इब्राहिम शाह शर्की ने पूरा कराया। इस मस्जिद के बुनियाद की पहली पत्थर संत मख्दमू चिरागेहिन्द जफराबादी के हाथो रखा गया था। जौनपुरी स्थापत्य शैली का पुराना नमूना पेश कर रही यह मस्जिद शिल्प कला का एक उत्कृष्ट नमुना हैं। मस्जिद के पिछले भाग में जहां नमाज अदा की जाती हैं, वह पांच भागो में बटा हुआ हैं। पत्थरो को तरासकर बनाये गये इस खुदा के घर को विभिन्न प्रकार के बेलबूटो और नक्कासियो से सजाया गया हैं। ये सारी साज सज्जा की व्यवस्था इन मेहराबो पर टिकी हैं। जिस स्थान पर इमाम खड़े होकर नमाज पढ़ाते हैं उसके ठीक पीछे बने मेहराब पर लिखी कलात्मक कुरान की यह आयते तत्कालीन महान लेखक सै0 मुहम्मद इब्राहिम ने लिखी हैं। काले पत्थरों को तरासकर बनायी गयी ये कलाक्तियां मस्जिद के सुन्दरता को चार चांद लगा रही हैं।
ऊपरी हिस्से में जालियो से घिरे बने यह स्थान महिलाओं के लिए सुरक्षित हुआ करती थी। महिलाएं इसी कक्ष में बैठकर धार्मिक प्रार्थना सुना करती थी।
अटाला मस्जिद के तोरणद्वार की लम्बाई 75 फीट हैं और चैड़ाई 47 फीट हैं। इस द्वार के विषाल स्तंभ छः मेहराबी आकृति में बटे हुए हैं। इन्हे सुन्दर फूल पत्तियों और मनमोहक आकृतियो से सजाया गया हैं। इस मस्जिद में आने जाने के लिए तीन विशाल बाहरी दरवाजे बनाये गये हैं। इस मस्जिद के निर्माण के लिए मिश्र, यूनान और दिल्ली से कारीगर बुलाएं गये थे।