108 सिद्धपीठों में एक है विन्ध्याचल
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मिर्जापुर। माॅ विन्ध्यवासिनी धाम 108 सिद्धपीठों में एक है। पुराणों मंे इस क्षेत्र को तीन उपाधियों से विभूषित किया गया है, शक्तिपीठ, सिद्धपीठ और मणिद्वीप। सृष्टि के प्रारम्भ से लकर प्रलय तक यह क्षेत्र समाप्त नही होता है।
कहा जाता है कि एक बार वशिष्ठ मुनि ने तीनों लोको को भ्रमण करने वाले नारद ऋषि से पृथ्वी पर सबसे उत्तम क्षेत्र के विषय पर जिज्ञासा प्रकट की। इस पर नारद ऋषि ने कहा कि ब्रहांड मंे विन्ध्य क्षेत्र सर्वोत्कृष्ट है। देवी भागवत के अनुसार जहां विन्ध्य पर्वत व भगवती सुरसरि का संगम होता है वह स्थान है मणिद्वीप। यह स्थल विन्ध्याचल मंे स्थित है। जानकारों का कहना है कि हिमालय से गंगा सागर तक गंगा का विन्ध्य पर्वत से संगम सिर्फ विन्ध्याचल में ही होता है। यहां स्नान पूजन करने से सभी बंधन कट जाता है। तीर्थ पुरोहित डाक्टर राजेश मिश्र ने कहा कि देवी पुराण में 108 सिद्धपीठों का उल्लेख है जिसमें विन्ध्याचल भी शामिल है। यहां के कण-कण में ईश्वर का निवास है। कहते है कि भगवान राम ने भी वन गमन के समय विन्ध्य क्षेत्र में अनुष्ठान पूजन किया था।
कहा जाता है कि एक बार वशिष्ठ मुनि ने तीनों लोको को भ्रमण करने वाले नारद ऋषि से पृथ्वी पर सबसे उत्तम क्षेत्र के विषय पर जिज्ञासा प्रकट की। इस पर नारद ऋषि ने कहा कि ब्रहांड मंे विन्ध्य क्षेत्र सर्वोत्कृष्ट है। देवी भागवत के अनुसार जहां विन्ध्य पर्वत व भगवती सुरसरि का संगम होता है वह स्थान है मणिद्वीप। यह स्थल विन्ध्याचल मंे स्थित है। जानकारों का कहना है कि हिमालय से गंगा सागर तक गंगा का विन्ध्य पर्वत से संगम सिर्फ विन्ध्याचल में ही होता है। यहां स्नान पूजन करने से सभी बंधन कट जाता है। तीर्थ पुरोहित डाक्टर राजेश मिश्र ने कहा कि देवी पुराण में 108 सिद्धपीठों का उल्लेख है जिसमें विन्ध्याचल भी शामिल है। यहां के कण-कण में ईश्वर का निवास है। कहते है कि भगवान राम ने भी वन गमन के समय विन्ध्य क्षेत्र में अनुष्ठान पूजन किया था।