खेल से फेल हो रहा मातृ शिशु अभियान
https://www.shirazehind.com/2017/04/blog-post_553.html
जौनपुर। प्रसव के दौरान हो रही प्रसूताओं और नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में रोक लगाने के लिए सरकार ने मातृ-शिशु रक्षा अभियान शुरू किया था। इसके तहत गर्भवती महिलाओं की जांच प्रसव से पूर्व करने और उन्हें डॉक्टरों की देखरेख में दवाएं देने का प्रावधान है। वहीं शिशुओं की रक्षा के लिए न्यू बार्न केयर यूनिट को भी बनाया गया है, लेकिन अफसरों की अनदेखी और शासन स्तर से डॉक्टरों की तैनाती न होने के कारण यह अभियान जिले में फेल होता नजर आ रहा है। इसके अलावा शिशुओं को दी जाने वाले आयरन की गोलियां और विभिन्न प्रकार की जांचों में भी अफसर खेल कर रहे हैं।कभी इलाज के अभाव में तो कभी कुपोषण के चलते प्रसूताओं की मौतें हो रही हैं। वहीं शिशु मृत्युदर की भी यही स्थिति है। इसको रोकने के लिए सरकार की ओर से तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन यह प्रयास धरातल पर उतरते महसूस नहीं हो रहे हैं। वजह है अफसरों की धनकमाऊ नीति और लापरवाही। अधिकारियों की इसी लापरवाही के चलते प्रसूताओं को सीएचसी और पीएचसी पर कायदे का इलाज नहीं मिल पा रहा है। यही नहीं जो जांचे होनी चाहिए उन जांचों को भी कायदे से नहीं किया जा रहा है। इससे यह अभियान मजाक बनकर रह गया है। शिकायतें होने के बाद भी जिले पर बैठे महकमे के अधिकारी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। यही वजह है कि प्रतिमाह जिले में जन्म लेने वाले बच्चों में से करीब 10 बच्चे दम तोड़ देते हैं। लेकिन यह आंकड़े विभागीय अधिकारियों के पास नहीं है। सभी खेल कागजों में चल रहे हैं।
ज्ञात हो कि प्रसव केंद्रों पर सरकार की ओर से भर्ती प्रसूताओं के लिए खाने की व्यवस्था की गई है। जिले में अधिकांश प्रसव केंद्रों पर भर्ती महिलाओं को खाना नहीं दिया जाता है। वजह है कि अधिकांश प्रसूताएं प्रसव केंद्र पर 48 घंटे नहीं ठहरती हैं। जबकि भोजन दिए जाने वाले रजिस्टर में 48 घंटे ठहरना दर्ज किया जाता है। ऐसे में सरकार को प्रतिमाह लाखों रुपये का चूना लगाया जाता है। इस ओर न तो सीएमओ ध्यान दे रहे हैं और न ही अन्य अधिकारी।प्रसव केंद्रों पर पहुंचने वाली प्रसूताओं के परिजनों से जमकर उगाही का खेल चल रहा है।
ज्ञात हो कि प्रसव केंद्रों पर सरकार की ओर से भर्ती प्रसूताओं के लिए खाने की व्यवस्था की गई है। जिले में अधिकांश प्रसव केंद्रों पर भर्ती महिलाओं को खाना नहीं दिया जाता है। वजह है कि अधिकांश प्रसूताएं प्रसव केंद्र पर 48 घंटे नहीं ठहरती हैं। जबकि भोजन दिए जाने वाले रजिस्टर में 48 घंटे ठहरना दर्ज किया जाता है। ऐसे में सरकार को प्रतिमाह लाखों रुपये का चूना लगाया जाता है। इस ओर न तो सीएमओ ध्यान दे रहे हैं और न ही अन्य अधिकारी।प्रसव केंद्रों पर पहुंचने वाली प्रसूताओं के परिजनों से जमकर उगाही का खेल चल रहा है।