बूचड़खानों से खतरनाक है शिक्षा माफिया
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लखनऊ। हिन्दुस्तान
के हर-एक अभिभावक के दिल पर हर महीने एक जोरदार थप्पड़ पड़ता है, कि
अभिभावक बुरी तरह बिलबिला जाता है। लेकिन ऐसे तमाचों को बर्दाश्त कर लेता
है अभिभावक। यह तमाचे उसके बच्चों के स्कूल के प्रबंधक के होते हैं।
करारे तमाचे। इतना ही नहीं, इन तमाचों के बदले हर अभिभावक ऐसे स्कूली
प्रबंधकों के हाथों में नोटों की गड्डी भी थमा देता है। राजी-खुशी होता है
यह भुगतान। सिर्फ इस राहत वाले आश्वासन के लिए कि उसका बच्चा पूरी तरह
सुरक्षित रहेगा, उसका भविष्य सुनहला बना दिया जाएगा और बाद में वह उसके
सपनों की जिन्दगी में सैर कर सकेंगे। लेकिन इसी सपने, राहत और आश्वासनों
के गुबार में अभिभावक लगातार लुटता-पिटता ही रहता है। स्कूलों की मांग
लगातार बढ़ती ही जाती है और जल्दी ही हर अभिभावक किसी गधे की तरह अपने
बच्चों को पालने नुमा मजबूरी में बिक-तबाह होना शुरू कर देता है।
यह हकीकत है इस देश के अभिभावकों की।
बच्चों के सपनों को सुधारने-तराशने की आपाधापी में हर अभिभावक यह भूल जाता
है कि उसके दायित्वों के साथ ही साथ उसके हक भी इस देश में मौजूद हैं।
इन्हीं हकों को जान-पहचान कर कोई भी अभिभावक अपने बच्चों के लुटेरे
स्कूली प्रबंधकों की गुण्डागर्दी, लूट और माफियागिरी पर तत्काल अंकुश
लगा सकता है। मसलन, नौ साल पहले सर्वोच्च न्यायालय से जारी हुआ एक आदेश,
जिसमें अभिभावकों के सुकून की गारंटी दी गयी है।
बदायूं के जांबाज पत्रकार और नवयुवक राहुल गुप्ता ने आम बेहाल अभिभावकों को त्राण दिलाने के लिए बाकायदा एक अभियान छेड़ दिया है। अब आम अभिभावकों की यह जिम्मेदारी है कि वे लोग भी राहुल गुप्ता के अभियान में सहभागी बनें, और स्कूली प्रबंधकों की लूट का विरोध करने के लिए अपना योगदान करें। राहुल का संकल्प ऐसे ही स्कूली प्रबंधकों की लूट पर अंकुश और अराजकता पर स्थाई प्रतिबंध लगाना ही है।
इसके लिए राहुल ने एक अपील जारी की है। आप
भी देखिये:- आप मित्र लोगो से एक मदद चाहिए, 9 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने
एक आर्डर किया था, स्कूल के बारे में।
जिसमें साफ-साफ हुक्म जारी किया गया था कि:-
1. स्कूल 11 महीने की फीस लेंगे,
2 . स्कूल तिमाही के आधार पर फीस न लेंगे। बल्कि चक्र महीने के हिसाब से लेंगे।
3. स्कूल 5 साल से पहले ड्रेस नही बदल सकते है।
4. स्कूल वाले किसी फिक्स दुकान से किताबे लेने को बाध्य नही कर सकते है। साथ ही स्कूल से भी किताबे बिक्री नही कर सकते है।
5. जिस बोर्ड से मान्यता है, उसमे बोर्ड से मान्यता बाली किताबे ही पढ़ाई जाए, यह नही प्राइवेट लोगो की किताबें। सर अगर यह आर्डर मिल जाये, बहुत सहूलियत होगी।
क्योकि बूचड़खाने भी अगर उच्चतम न्यायालय
के आदेश पर रोक लग सकती है। तो इन कुकुरमुत्तों की तरह उगने बाले इन
प्राइवेट स्कूल पर क्यो नही।
सुप्रीमकोर्ट ने क्या रूलिंग बनाई थी ?और
तो और निजी स्कूलों की मनमानी के चलते तकरीबन 9 साल पूर्व सुप्रीम कोर्ट
ने अपने एक आदेश में गर्मियों की छुट्टी में ली जाने वाली फीस पर प्रतिबन्ध
लगते हुए कहा था कि इस दौरान जब स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती है तो उसकी
फीस क्यों ली जाती है. मालूम हो कि कोर्ट ने छुट्टी के दौरान ली जाने वाली
फीस पर रोक लगते हुए प्राइवेट स्कूलों और मिशनरी स्कूलों पर ये रोक लगायी
थी. यही नहीं इसके साथ इस तरह के स्कूलों और कालेजों पर लगाम कसते हुए
कोर्ट ने ये भी आदेश पारित किये थे कि प्राइवेट स्कूल और कालेज अभिवावकों
को इस बाबत मजबूर नहीं कर सकते कि वह एक विशेष दुकान से ही अपने बच्चों कि
कॉपी-किताबें खरीदें.
यही नहीं, स्कूल और कालेज में हर साल बदली
जाने वाली ड्रेस पर रोक लगते हुए 5 साल से पहले ड्रेस न बदले जाने के आदेश
प्राइवेट स्कूल और कालेजों के प्रबन्धन तन्त्र को दिए थे. बावजूद इसके
स्कूल और कालेजों के प्रबन्धतन्त्र अपनी मनमानी पर आमादा हैं. फिलहाल दल के
नेताओं ने यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ से सुप्रीम कोर्ट की आयी रूलिंग
का अनुपालन कराये जाने की मांग की है.