निष्पक्ष रूप से इतिहास लिखें जिससे देश व समाज हित के लिए चेतना जाग्रत हो सके : प्रो. यादव
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जौनपुर। उत्तर
प्रदेश इतिहास कांग्रेस के 28वें अधिवेशन में विद्वतजनों ने इतिहासकारों
से अपील की है कि वे निष्पक्ष रूप से इतिहास लिखें जिससे देश व समाज हित के
लिए चेतना जाग्रत हो सके। चर्चा में चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी का भी
जिक्र हुआ।
मोहम्मद हसन पीजी कालेज में शनिवार को इतिहास कांग्रेस की शुरुआत करते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरपी यादव ने कहा कि इतिहास दृष्टि और साधन है जो सामाजिक परिवेशों को समझने और उनको व्याख्या करने का अवसर प्रदान करता है। इतिहास का अतीत कभी समाप्त नहीं होता। साहित्य, कला, विज्ञान, दर्शन समेत भूत व भविष्य पर इतिहास दृष्टिपात करता है।
प्रो. एसएनआर रिजवी ने बताया कि 1935 में इतिहास के राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थाना हुई जो वर्तमान में इण्डियन हिस्ट्री कांग्रेस के नाम से जाना जाता है। उसमें केवल अंग्रेजी भाषा में शोधपत्र प्रकाशित होते थे जिससे हिन्दी भाषाई इतिहासकारों को परेशानी होती थी। इसी निमित्त 1985 में प्रो. राधेश्याम श्रीवास्तव ने इविवि में उत्तर प्रदेश इतिहास का गठन किया।
अध्यक्षता करते हुए प्रो. किरन कुमार थपलियाल ने प्राचीन काल में प्रचलित सैन्धव कालीन लेखन कला को मौर्य काल से जोड़ा। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. एसजेडएच जाफरी ने व्याख्यान दिया।
कार्यक्रम में आये हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए प्राचार्य डा. अब्दुल कादिर ने कहा कि इतिहास से सबक लेने की जरूरत है। सम्राट अशोक और अकबर महान की तरह कुछ ऐसे राजा थे जिन्होंने दिलों पर राज किया लेकिन कुछ राजाओं ने धार्मिक कट्टरता से राजसत्ता को बर्बाद कर दिया। उनसे सीख लेने की जरूरत है। संचालन प्रो. अतुल सिन्हा ने किया।
मोहम्मद हसन पीजी कालेज में शनिवार को इतिहास कांग्रेस की शुरुआत करते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरपी यादव ने कहा कि इतिहास दृष्टि और साधन है जो सामाजिक परिवेशों को समझने और उनको व्याख्या करने का अवसर प्रदान करता है। इतिहास का अतीत कभी समाप्त नहीं होता। साहित्य, कला, विज्ञान, दर्शन समेत भूत व भविष्य पर इतिहास दृष्टिपात करता है।
प्रो. एसएनआर रिजवी ने बताया कि 1935 में इतिहास के राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थाना हुई जो वर्तमान में इण्डियन हिस्ट्री कांग्रेस के नाम से जाना जाता है। उसमें केवल अंग्रेजी भाषा में शोधपत्र प्रकाशित होते थे जिससे हिन्दी भाषाई इतिहासकारों को परेशानी होती थी। इसी निमित्त 1985 में प्रो. राधेश्याम श्रीवास्तव ने इविवि में उत्तर प्रदेश इतिहास का गठन किया।
अध्यक्षता करते हुए प्रो. किरन कुमार थपलियाल ने प्राचीन काल में प्रचलित सैन्धव कालीन लेखन कला को मौर्य काल से जोड़ा। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. एसजेडएच जाफरी ने व्याख्यान दिया।
कार्यक्रम में आये हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए प्राचार्य डा. अब्दुल कादिर ने कहा कि इतिहास से सबक लेने की जरूरत है। सम्राट अशोक और अकबर महान की तरह कुछ ऐसे राजा थे जिन्होंने दिलों पर राज किया लेकिन कुछ राजाओं ने धार्मिक कट्टरता से राजसत्ता को बर्बाद कर दिया। उनसे सीख लेने की जरूरत है। संचालन प्रो. अतुल सिन्हा ने किया।