योगेश चन्द्र दुबे को मिला ‘‘दिव्यांगजन के निमित्त कार्यरत सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति’’ सम्मान
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चित्रकुट। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 योगेश चन्द्र दुबे को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘‘दिव्यांगजन के निमित्त कार्यरत सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति’’ हेतु राज्य स्तरीय पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया। विश्व दिव्यांगता दिवस पर इन्दिरा गांधी प्रतिष्ठान, विभूति खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ में आयोजन पुरस्कार वितरण समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा प्रो0 दुबे को पुरस्कार प्रदान किया गया। पुरस्कार स्वरूप मेडल, प्रमाण-पत्र, साल तथा पुरस्कार राशि रु. 25000/- प्रदान किया गया। कुलपति जी के विश्वविद्यालय पहुँचने पर छात्र/छात्राओं ने फूल-मालाओं से लादकर स्वागत किया है।
ज्ञात हो कि दिव्यांग शिक्षा के प्रति दृृढ़ इच्छा एवं समर्पण भावना के कारण
प्रो0 योगेश चन्द्र दुबे जी लगभग 24 वर्षों से विष्वविद्यालयीन अध्यापन सेवा में संलग्न रहते हुए जहाँ एक ओर मूल्य आधारित षिक्षा ;टंसनम ठंेमक म्कनबंजपवदद्ध ग्रामीण विकास षिक्षा ;त्नतंस क्मअमसवचउमदज म्कनबंजपवदद्ध तथा इसी प्रकार की अन्य षैक्षणिक एवं साहित्यिक गतिविधियों को उच्च षिक्षा के स्तर पर बढ़ावा देने के लिए निरन्तर कार्य करते रहे, वही दूसरी ओर समाज और परिवार से उपेक्षित दिव्यांगों को सर्वविध षिक्षित एवं प्रषिक्षित कर षिक्षा के विभिन्न आयामों में दिव्यांगों की सक्रिय सहभागिता हेतु लगभग 24 वर्षों से अहर्निष कार्यरत हैं। दिव्यांगों की शिक्षा के प्रति दृृढ़ इच्छा एवं समर्पण की इसी भावना के कारण चित्रकूट क्षेत्र में सर्वप्रथम पूर्व प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक, पूर्व उच्चतर माध्यमिक स्तर पर दिव्यागों को शिक्षित एवं आत्म निर्भर बनाने के लिए तुलसी प्रज्ञाचक्षु एवं मूक बधिर उ0मा0 विद्यालय की स्थापना तथा सम्यक संचालन में सक्रिय योगदान किया। उच्च शिक्षा में दिव्यांगों का नामांकन लगभग नगण्य था, इसको दृृष्टिगत रखते हुए दिव्यांगों को उच्च शिक्षा में भी शिक्षित प्रशिक्षित करने तथा समाज एवं राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, चित्रकूट, सतना, म0प्र0 में सहायक आचार्य की स्थायी एवं प्रभूत धनराशि की नौकरी को त्यागकर 26 जुलाई 2001 को केवल दिव्यांगों हेतु चित्रकूट में विश्व के प्रथम दिव्यांग विश्वविद्यालय जगद््गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, की स्थापना करायी तथा दिव्यांग सेवा हेतु विश्व के इस प्रथम दिव्यांग विश्वविद्यालय में प्रथम आचार्य के रूप में विश्वविद्यालय के समस्त शैक्षणिक एवं प्रशासनिक पदों पर कार्य करते हुए सम्प्रति कुलपति के पद पर कार्यरत होते हुए दिव्यांग सेवा में अहर्निश संलग्न हैं। विश्वविद्यालय में कुलपति प्रो0 योगेश चन्द्र दुबे ने कहा कि जगद््गुरु जी ने जो भरोसा मुझ पर किया है उस भरोसे में खरा उतरते हुए दिव्यांगजनों के कल्याणार्थ कार्य करता रहूँगा। इसके लिए विश्वविद्यालय के जीवनपर्यन्त कुलाधिपति जगद््गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी के मार्गदर्शन व आर्शीवाद से दिव्यांग छात्र/छात्रायें नये आयाम तक पहुँचेगे। छात्र/छात्राओं को यहां शिक्षा अर्जन करने के पश्चात एक नयी उर्जा का संचार होता है जिससे वह सभी बाधाऐं पार करते हुए अपने लक्ष्य पर जरूर सफल होंगे।
पुरस्कार से सम्मानित होने पर प्रो0 दुबे को विश्वविद्यालय के जीवन पर्यन्त कुलाधिपति जगद््गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी से आर्शीवाद प्राप्त हुआ तथा विश्वविद्यालय के कुलसचिव, श्री गिरिजा प्रसाद दुबे, वित्त अधिकारी, श्री आर.पी. मिश्र तथा समस्त अध्यापक/कर्मचारी एवं विद्यार्थियों ने अपार प्रसन्नता व्यक्त की। यह जानकारी विश्वविद्यालय के सुचना एवं जनसम्पर्क अधिकारी सूर्य प्रकाश मिश्र ने दी।
ज्ञात हो कि दिव्यांग शिक्षा के प्रति दृृढ़ इच्छा एवं समर्पण भावना के कारण
प्रो0 योगेश चन्द्र दुबे जी लगभग 24 वर्षों से विष्वविद्यालयीन अध्यापन सेवा में संलग्न रहते हुए जहाँ एक ओर मूल्य आधारित षिक्षा ;टंसनम ठंेमक म्कनबंजपवदद्ध ग्रामीण विकास षिक्षा ;त्नतंस क्मअमसवचउमदज म्कनबंजपवदद्ध तथा इसी प्रकार की अन्य षैक्षणिक एवं साहित्यिक गतिविधियों को उच्च षिक्षा के स्तर पर बढ़ावा देने के लिए निरन्तर कार्य करते रहे, वही दूसरी ओर समाज और परिवार से उपेक्षित दिव्यांगों को सर्वविध षिक्षित एवं प्रषिक्षित कर षिक्षा के विभिन्न आयामों में दिव्यांगों की सक्रिय सहभागिता हेतु लगभग 24 वर्षों से अहर्निष कार्यरत हैं। दिव्यांगों की शिक्षा के प्रति दृृढ़ इच्छा एवं समर्पण की इसी भावना के कारण चित्रकूट क्षेत्र में सर्वप्रथम पूर्व प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक, पूर्व उच्चतर माध्यमिक स्तर पर दिव्यागों को शिक्षित एवं आत्म निर्भर बनाने के लिए तुलसी प्रज्ञाचक्षु एवं मूक बधिर उ0मा0 विद्यालय की स्थापना तथा सम्यक संचालन में सक्रिय योगदान किया। उच्च शिक्षा में दिव्यांगों का नामांकन लगभग नगण्य था, इसको दृृष्टिगत रखते हुए दिव्यांगों को उच्च शिक्षा में भी शिक्षित प्रशिक्षित करने तथा समाज एवं राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, चित्रकूट, सतना, म0प्र0 में सहायक आचार्य की स्थायी एवं प्रभूत धनराशि की नौकरी को त्यागकर 26 जुलाई 2001 को केवल दिव्यांगों हेतु चित्रकूट में विश्व के प्रथम दिव्यांग विश्वविद्यालय जगद््गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, की स्थापना करायी तथा दिव्यांग सेवा हेतु विश्व के इस प्रथम दिव्यांग विश्वविद्यालय में प्रथम आचार्य के रूप में विश्वविद्यालय के समस्त शैक्षणिक एवं प्रशासनिक पदों पर कार्य करते हुए सम्प्रति कुलपति के पद पर कार्यरत होते हुए दिव्यांग सेवा में अहर्निश संलग्न हैं। विश्वविद्यालय में कुलपति प्रो0 योगेश चन्द्र दुबे ने कहा कि जगद््गुरु जी ने जो भरोसा मुझ पर किया है उस भरोसे में खरा उतरते हुए दिव्यांगजनों के कल्याणार्थ कार्य करता रहूँगा। इसके लिए विश्वविद्यालय के जीवनपर्यन्त कुलाधिपति जगद््गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी के मार्गदर्शन व आर्शीवाद से दिव्यांग छात्र/छात्रायें नये आयाम तक पहुँचेगे। छात्र/छात्राओं को यहां शिक्षा अर्जन करने के पश्चात एक नयी उर्जा का संचार होता है जिससे वह सभी बाधाऐं पार करते हुए अपने लक्ष्य पर जरूर सफल होंगे।
पुरस्कार से सम्मानित होने पर प्रो0 दुबे को विश्वविद्यालय के जीवन पर्यन्त कुलाधिपति जगद््गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी से आर्शीवाद प्राप्त हुआ तथा विश्वविद्यालय के कुलसचिव, श्री गिरिजा प्रसाद दुबे, वित्त अधिकारी, श्री आर.पी. मिश्र तथा समस्त अध्यापक/कर्मचारी एवं विद्यार्थियों ने अपार प्रसन्नता व्यक्त की। यह जानकारी विश्वविद्यालय के सुचना एवं जनसम्पर्क अधिकारी सूर्य प्रकाश मिश्र ने दी।