अब तो आंखे खोलो पत्रकार साथियों

जौनपुर। एक कमरे में बैठक करके प्रेस विज्ञप्ति छपवाने वाले नेता, एक वृक्ष लगाकर पूरे क्लब के पदाधिकारियो की फोटो सहित प्रेस रिलिज भेजने वाने समाजसेवी संगठनो  समेत समाज के हर वर्ग के संगठन के लोग आज जब एक पत्रकार का परिवार अनाथ हो गया तो ये लोग सहयोग के लिए सामने आना तो दूर एक शोक संवेदना प्रकट करना मुनासिब नही समझा। जबकि यही लोग दिवंगत होने वाले उसी पत्रकार के पास अपनी विज्ञप्ति लेकर जाते थे साथ में विनती करते थे कि कल सूबह की अखबार में मेरी यह न्यूज छप जाय। पत्रकार के साथ सौतेला व्यवहार करने वाले नेताओ, समाजसेवी संगठनो और अन्य तथाकथित संगठनो के बारे में हम पत्रकार साथियों को सोचना पड़ेगा। 
मालूम हो कि सोमवार की शाम शासन द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकार यादवेन्द्र दत्त दुबे "मनोज" की  सड़क हादसे में दर्दनाक मौत हो गयी। मनोज की मौत के बाद उनकी दो बेटी, दो बेटा अनाथ हो गये। भरी जवानी में उनकी पत्नी के मांग सुनी हो गई , पिता के बुढ़ापे की लाठी ही टूट गयी। उनकी मौत से पूरा पत्रकार समाज समेत अन्य तबका मर्माहत है। लेकिन बड़े दुःख की बात है यह भी है कि जो पत्रकार अपनी लेखनी से नेताओ की राजनीति चमकाता है। समाजसेवी संगठनो का प्रचार प्रसार करता है। आधा दर्जन से अधिक व्यापार मण्डलो की प्रेस नोट छापता है। इसके अलावा तमाम शिक्षक संघ की खबरे प्रमुखता लिखता है। लेकिन जब पत्रकार साथी के परिवार पर बज्रपात हो गया तो कोई भी नेता, समाजसेवी संगठन आज सहायता करना तो दूर की बात एक शोक संवेदना भी प्रकट नही किया।
इस मामले पर बरिष्ठ पत्रकार अनिल पाण्डेय ने कहा कि यह बहुत ही निन्दीय है। नेताओ समाजसेवी संगठनो अधिकारियों का रवैया बहुत उदासीन है। मनोज को दिवगंत हुए 24 घंटे से अधिक समय बीत चुका है लेकिन अभी तक न तो कोई अधिकारी उनके घर गया न ही सरकारी आर्थिक सहायता ही दी गयी है। ऐसे में सभी पत्रकारो को गहन चिंतन करने की जरूरत है।
युवा पत्रकार रामजी जायसवाल ने कहा कि हम लोग छोटा नेता हो या बड़ा कोई भी समाजसेवी संगठन हो वेगैर भेदभाव के सबकी खबरे लिखते है। लेकिन आज एक पत्रकार साथी के परिवार पर दुःखो का पहाड़ टूट पड़ा तो कोई भी संगठन खड़ा नही दिख रहा है। ऐसे में अब हम पत्रकार साथियो को सोचना पड़ेगा। जब हमारे परिवार के दुखद घड़ी में साथ कोई नही आ रहा है तो हम लोग क्यो किसी की खबर छापे।
अब सभी पत्रकार साथियों को इससे सबक लेते हुए आगे पत्रकारो के प्रति उदासीन नेताओ अधिकारियों समाजसेवी संगठनो व अन्य लोगो की खबरो को प्रकाशित करने से पूर्व एक बार जरूर मनोज की हुई दर्दनाक मौत और उनके परिवार  हुए बज्रपात के बारे सोचकर खबरे लिखना चाहिए।

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