रहनुमा हर घर का........


साया होता है सहर का।
जो घर को रोशन है करता,
घर की दिवारो मे,
खुशियो के रंग हैभरता।
दिवाना होता है,वह अपनी आन का।
रहनुमा हर घर का..........।
अपने हर फूल की रंगत के लिए,
जाने कितने दर्द सहकर,
होंठ अपने सिए।
नये पेडो़ के बढने पर,
खुश होता है,उनकी तरक्की देखकर।
एहसास नही उसे अपने दर्द का।
रहनुमा हर घर.......।।
बडे़ होने पर पेड़ उसे छाया दें,
या अपने काँटोसे बेंधे
वह सिर्फ उन्हे देख,
भूल जाता अपने ही पाले सर्पो के  दंश को।
देख कर उन पेडो़ में अपने वंश को,
जो भूल चुके कि ,
कोई चाहता है भला हर एक का।
रहनुमा हर घर का.........।।।



सुमति श्रीवास्तव

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