अवश्य पढ़े : कोरोना "सत्यता बनाम अफवाह

कोरोना नामक विश्वव्यापी महामारी जिस प्रकार पंख फैलाए लोगों को अपना आहार बना रही है,स्थिति वास्तव में अत्यधिक भयावह है इसकी सत्यता ही भयावह है परंतु अफवाह तो पूरी तरह से पैनिक है। किसी भी महामारी की सच्चाई जानकर उससे तो लड़ा जा सकता है परंतु 'अफवाहों से लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है,क्योंकि उससे सिर्फ और सिर्फ एक प्रकार का अवास्तविक डर व्यक्ति के मन में घर कर जाता है जिससे कि उसका सामान्य जीवन भी बाधित हो जाता है अतः कोविड19 की सत्यता को जाने, जैसे कोरोना सर्दी बुखार या सीजनल फ्लू से बिल्कुल अलग है कोरोना की शुरुआत अचानक किसी ऐसी चीज है व्यक्ति के संपर्क में आने से हो सकता है जो इस वायरस से इनफेक्टेड हो इसके लक्षण बुखार ,सूखी खांसी मांस पेशियों में दर्द ,एवं थकान अन्य लक्षण सिर दर्द ,खून वाली खांसी और दस्त है।व्यक्ति को जैसे ही अपने भीतर इस तरह के लक्षण दिखे तुरंत जांच करवानी चाहिए क्योंकि इसके लक्षणों का उपचार संभव है इसमें रोगी को अकेले रखकर उपचार करने से उसके ठीक होने की संभावना ज्यादा होती है जबकि मात्र 5 परसेंट ही जटिल मामले हो सकते हैं ,लेकिन अफवाहों ने इसकी सत्यता को बुरी तरह से ढक दिया है लोग डर के कारण अपने घरों में ज्यादा से ज्यादा रोजमर्रा की चीजें इकठ्ठा कर रहे हैं और साधारण से सर्दी जुकाम से इस तरह सहम रहे हैं जैसे कि उन्हें इस महामारी ने अपना आहार ही बना लिया हो ,अभी हाल ही में 14 मार्च को नागपुर के मायो हॉस्पिटल से चार संदिग्ध मरीज भाग गए जिसके कारण पूरे महाराष्ट्र में अफरा-तफरी मच गई उन्हें उनके घरों से दोबारा पकड़ कर लाया गया, तो पता चला कि लक्षण नेगेटिव थे ,इस तरह से संदेह के आधार पर लोग पैनिक हो रहे हैं । हमारे प्रधानमंत्री जी ने जनता कर्फ्यू की अपील की है जिसका वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक प्रभाव बहुत अधिक है क्योंकि इस वायरस की उम्र भिन्न-भिन्न चीजों पर भिन्न-भिन्न है।इसकी उम्र से अधिकतम 72 घंटे ही है। लेकिन अधिकतर 36 घंटे तक ही समाप्त हो जाता है, इस हिसाब से देखा जाए तो एक व्यक्ति शनिवार की रात 7:00 बजे से भी अपने घर में रहता है और सोमवार की सुबह तक रहता है तो वह पूरे 36 घंटे अपने आपको क्वॉरेंटाइन रखेगा जिसका परिणाम यह होगा कि यह वायरस दूसरे जीव के संपर्क में नहीं आ सकेगा ज्यादातर वायरस समाप्त हो जाएगा, इस तरह का वैज्ञानिक प्रयोग एक अत्यधिक सूझबूझ वाला व्यक्ति ही कर सकता है वह भी हाथ जोड़कर निवेदन के साथ। हम सभी जानते हैं कि यह पहली तरह की महामारी नहीं है, इसके पहले भी जिन रोगों की दवाई टीके उपलब्ध नहीं थे वे महामारी ही कहलाते थे जैसे चेचक, हैजा ,टी.वी .आदि ।इस मुहिम में धर्मगुरु को भी साथ जुड़ना चाहिए अत्यधिक अंधविश्वास व कट्टरता को शामिल किए बगैर ।भारतवर्ष में आज से नहीं सदियों से हमारे ऋषि-मुनियों ने धर्मगुरु ने ऐसे ही महामारी से बचाव के लिए लोगों को धर्म से जोड़कर सतर्क किया है आज भी हमारे यहां जब किसी को चेचक होता है तो वहां नीम की पत्ती, साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है उस कमरे में किसी को जाने की अनुमति नहीं होती है जो जाता है वह बहुत साफ सफाई से जाता है ,साधारण लोगों को यह बताकर डरा दिया जाता है कि देवी मां आ गई हैं गंदगी से नाराज हो जाएंगी, अतः जितनी साफ-सफाई की जाएगी उतनी ही खुश होकर जल्दी चली जाएंगी, उस समय विज्ञान भी इतना आगे नहीं था पर हमारा धर्म ही विज्ञान से बढ़कर है। साईं बाबा की एक कहानी हमने पढ़ी थी ,कि एक बार आस-पास के गांव में हैजा फैल गया था सिर्फ शिरडी को छोड़कर क्योंकि वहां के लोग साईं बाबा पर अटूट विश्वास रखते थे वे जैसा कहते थे लोग वैसा ही करते थे पूरी साफ सफाई से रहना ,परहेज के साथ रहना यहां तक कि उन्हीं की कुटिया में रहकर इलाज करवाते इलाज के नाम पर सिर्फ और सिर्फ स्वच्छता और खान पान में संयम ही था ,अतः धर्म गुरुओं और सोशल मीडिया को ध्यान रखना चाहिए कि अफवाह कट्टरता ,अंधविश्वास ना फैलाएं बल्कि इस मुहिम में सूझबूझ समझदारी का परिचय दें और लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करें स्वच्छता, सतर्कता, और स्वास्थ्य के प्रति। कोरोना की सत्यता बनाम अफवाह इस कहावत को पूरी तरह चरितार्थ करती है *एक तो टितऊ लौकी ऊपर से नीम चढ़ा* अर्थात ये विश्वव्यापी महामारी तो है ही ऊपर से इससे जुड़ी अफवाहों ने लोगों को मानसिक रूप से बीमार कर दिया है। 
डॉ जान्हवी श्रीवास्तव (मनोवैज्ञानिक) 
असिस्टेंट प्रोफेसर, 
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर

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