कोरोना के साइड इफेक्ट- 4

डॉ मधुकर तिवारी 
 कोरोना से लड़ने वाले मैदानी योद्धाओं का अभिवादन है। वैश्विक वायरस कोरोना से इनके आत्मबल और दिन रात की मेहनत के प्रति नतमस्तक हू। ये योद्धा है हमारे नौकरशाह। उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी से लेकर सबसे निचले पायदान पर काम कर रहे कर्मचारियों का तहेदिल से शुक्रिया अदा करना होगा। इन लोगों की भावना को सम्मान करता हूँ। मानव समाज पर अब तक कि सबसे बड़ी महामारी कोरोना से सही मायनों में सरकारी अमला ही लड़ाई लड़ रहा है। यह वह अमला है जो आम दिनों में जनता से लेकर नेता के निशाने पर रहता है। पक्षपात भ्रष्टाचार नक्कारेपन सहित न जाने कितने आरोप लगाया जाता है। नेताओं के प्रोटोकॉल मैंटेन करने का काम इनको करना पड़ता है। जनता के राजस्व जमीन लड़ाई झगड़े से लेकर न जाने किन किन परिस्थितियों में इनको नौकरी करने की मजबूरी होती है। फाइलों में सर खपाने से लेकर फील्ड तक न जाने कितने प्रकार के संघर्ष करते ये नौकरशाह नजर आते है। मातहत कर्मचारियों को भी अपने अधिकारियों की फाइल ढोने से लेकर हर हुकुम बजाना ही काम रहता है। कर्मचारियों पर काम मे लापरवाही से लेकर भ्रष्टाचार तक आरोप लगते रहे है। लॉक डाउन ने सब कुछ बदल दिया। आज सफाई कर्मचारी पर मोहल्ले के लोग फूल बरसा रहे है। डॉक्टर ड्यूटी से वापस आ रहा है तो पड़ोसी तालियां बजाकर स्वागत कर रहे है। गाँव मे सैक्रेटरी को काम करते देख गाँव के लोग सराहना कर रहे है उन्हें खाना खिला रहे है। शहर देहात में कही भी पुलिस चट्टी चौराहे पर ड्यूटी दे रहे है तो उनको मोहल्ले गाँव की औरतें घर से खाना बना कर उनको अपने साथ खिला रही है। जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक जैसे अधिकारी आज जनता के अभिभावक की भूमिकाओं में है। जो कुछ कह दे रहे है उसे जनता सर आँखों पर ले रही है। व्यक्ति वही है, पद वही है, अधिकार भी वही। परिवर्तन हुआ है तो माहौल। जनता ने महसूस किया कि इस लाकडाउन मे ये अधिकारी और कर्मचारी ही हम सब के सच्चे हितैषी है। ये अधिकारी 24 घण्टे राहत बचाव मीटिंग में लगे है कब सुबह कब दोपहर और कब रात हो रही है इसका पता नही। खाना मिल रहा है या नही खा पा रहे है यह भी निश्चित नही। यह परिवर्तन भी आज कोरोना जैसे महामारी से बचाने की कवायद में लगे प्रशासनिक अमले की जबरदस्त सक्रियता के चलते हुआ है। घर तक राशन सब्जी दवा सहित अन्य जरूरत के सामान पहुचाने में पूरा का पूरा अमला डटा हुआ है। इस माहौल में कोई बीमार हो जा रहा है तो सरकारी अस्पताल में डॉक्टर लगातार ड्यूटी देते उसे मिल जा रहे है। लाकडाउन में प्राइवेट हॉस्पिटल और डॉक्टर बन्द है। गाँव गाँव मे दौड़ लगाते अधिकारी कर्मचारी इस महामारी में हर व्यक्ति के जरूरत को समझने की कोशिश में लगे है। मलिन बस्तियों से लेकर दिहाड़ी मजदूर वर्ग को अनाज राशन सब्जी यथासंभव पका हुआ भोजन तक पहुचाने में लगे कर्मचारियों को हर कोई देखता और सराहना करता नजर आ रहा है। जिलाधिकारी हो या पुलिस अधीक्षक या उनके मातहत। सब के सब इस महामारी से कमर कस कर लड़ाई लड़ रहे है। उनकी भावनाओं का कदर करते हुए हम आप उन्हें कुछ अच्छा नही देते शिवाय किसी न किसी आरोप के। कोरोना का वायरस मात्र छुआछूत से फैलता है। लाकडाउन कर इसे रोकने की कोशिशें जारी है। इन परिस्थितियों में अपने और अपने परिवार का बचाव करते हुए इन अधिकारियों और कर्मचारियों की निरन्तर डियूटी देना काबिले तारीफ है। सरकारी तंत्र इस लाकडाउन मे जन जन तक उनकी जरूरतों को पहुचाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लिया है। हर अधिकारी कर्मचारी को अलग अलग जिम्मेदारी सौंपी गई है। सोचिए जब ये अधिकारी कर्मचारी अपने घर से हर रोज इस लाकडाउन मे निकलते है। उन्हें आम जनता के बीच अपने जिम्मेदारी के अनुसार काम करना होता है। तो जरूर उनकी पत्नी बच्चे परिवार के अन्य सदस्य सहम जाते होंगे कि कही बाहर जाकर ये कोरोना संक्रमण के शिकार न हो जाय। फिर भी कर्तव्य निर्वहन का जज्बा इनमें जितना है उतने ही बधाई के पात्र इनके परिवार के सदस्य भी है। जो इस अदृश्य खतरे को जान रहे है पर उन्हें उससे लड़ने के लिए अपना अंतर्मन सहयोग दे रहे है। ये अधिकारी कर्मचारी हम सब के बीच आकर हमारे लिए लाकडाउन में वंचित सुविधाओं को हम तक हर रोज कड़ी मेहनत से पहुंचा रहे है। सरकारी डॉक्टर और उनका नर्सिंग स्टाफ इस दौर में भगवान के रूप में हमें दिख रहे है। जिन पर प्राइवेट प्रैक्टिस करने और कर्तव्यपरायणता से विमुख होने के आरोप हम आप ही लगाते थे। हम सब ने समाजसेवी लोगो की खूब तारीफे की है। इक्के दुक्के समाजसेवी संगठन को छोड़ सब इस कोरोना की लड़ाई में नौ दो इग्यारह हो लिए। नेताओं ने तो खुद को ही कोरेनटाइन कर लिया है। फेसबुक पर लाइव पर नेताओं की धूम मची है। एकाध नेता ही इस महामारी के चलते हुए लाकडाउन में असुविधा झेल रही जनता के बीच दिख जा रहे हैं। शेष तो बस या तो गायब है या फिर सोशल मीडिया पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। समाजसेवा के नाम पर सक्रिय लोग बस गरीबों वंचितों के सेवा की अच्छे अच्छे पोज में फोटो लगाकर कर्तव्यों की इतिश्री कर रहे है।

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