महाष्टमी को माता महागौरी का पूजन अर्चन
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जौनपुर। नवरात्रि को महाष्टमी पर बुधवार को श्रद्धालुओं ने महागौरी का विधिवत पूजन अर्चन किया। घरों में सवेरे से ही इस पर्व की तैयारियां शुरू हो गयी। व्रत रखने वाले लोगों ने स्नान आदि से निवृत्त हो कर इसके विधि विधान से मां महागौरी की पूजा किया उनको नारियल का भोग लगाया, इसके बाद मां महागौरी के मंत्रों का जाप करते हुए अंत में मां महागौरी की आरती किया। ज्ञात हो कि चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन को महाष्टमी या दुर्गाष्टमी के नाम से जाना जाता है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मां दुर्गा के आठवें स्वरूप मां महगौरी की पूजा विधि विधान से की जाती है। कहा जाता है कि आज के दिन माता महागौरी की आराधना करने से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है, साथ ही सुख-समृद्धि में कोई कमी नहीं होती है। जीवन के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मां की कृपा से सभी कष्टों से भी मुक्ति मिल जाती है। आज महाष्टमी के दिन कन्या पूजन का विधान है। कहा जाता है कि कन्याएं मां दुर्गा का साक्षात् स्वरूप होती हैं, इसलिए नवरात्रि के अष्टमी को कन्या पूजा की जाती है। मां महागौरी अत्यंत गौर वर्ण की हैं। वह श्वेत वस्त्र और श्वेत आभूषण पहनती हैं, इसलिए उनको श्वेतांबरधरा भी कहते हैं। मां महागौरी का वाहन बैल यानी वृष है, इसलिए उनको वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। वृष पर सवार चार भुजाओं वाली मां महागौरी एक दाहिनी भुजा में त्रिशूल और एक बाईं भुजा में डमरू धारण करती हैं। वहीं, एक दाहिनी भुजा अभय मुद्रा में और दूसरी बाई भुजा वरद मुद्रा में रखती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां शैत्रपुत्री 16 वर्ष की अवस्था में अत्यंत गौर वर्ण की और सुंदर थीं, इसलिए उनका नाम महागौरी पड़ गया। लेकिन महागौरी से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है। एक बार माता पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर कैलास से कहीं दूर चली गईं। वर्षों तक साधना और कठोर तपस्या में लीन होने के कारण उनका शरीर अत्यंत गौर वर्ण का हो गया। जब भगवान शिव उनको खोजते हुए मिले तो देखकर चकित रह गए। तब उन्होंने माता पार्वती को गौर वर्ण का वरदान दिया, तब से माता पार्वती मां महागौरी कहलाने लगीं।