पिंजरे के पंक्षी रे तेरा दर्द न जाने कोय..

शरद दीक्षित
ज्यादातर पत्रकार कैसे काम करते हैं इसका अंदाजा सामान्य आदमी नहीं लगा सकता. टीवी एंकरों को देखकर लोग सोचतें है.. बड़े मजे हैं.. बहुत इज्जत सम्मान है.. ये 10 फीसदी से कम की जमात है.. ये अपनी मेहनत और किस्मत के बूते वहां बैठे हैं.. फिर बाकी के साथ क्या है? बाकियों में एक तबका ऐसा है, जो, जिंदगी में कमा खाकर अपनी जीविका चलानी है, वाली सोच के हैं.. कुछ को छोड़ दीजिए तो ज्यादातर तीन पांच की गणित से दूर अपनी ड्यूटी करते हैं.. लगन से अपना काम करते हैं.. उसकी तनख्वाह लेते हैं.. काम निरपेक्ष होकर नहीं हो सकता इसलिए किसी न किसी विचारधारा में डूब जाते हैं.. लेकिन होते हैं श्रमजीवी..इनमें भी कई प्रचंड विद्वान पर किस्मत वाले फैक्टर से कोसों दूर.. इस तबके की तनख्वाह.. वो जो यूनिट पर बैठे हैं.. जहां अखबार छपते है.. बनारस, लखनऊ, आगरा, मेरठ, रांची, पटना.... आदि... उनकी तनख्वाह 10 हजार, 20 हजार, 30 हजार, 40 हजार..  इसके ऊपर के लोग किसी यूनिट में अगर किसी को मिल रहे हैं तो वो परम सौभाग्यशाली होंगे.. इक्का दुक्का ही बस...ज्यादातर इसी में इन्हें खाना खर्चा सब चलाना होता है..हालात ये हैं कि डेस्क के तमाम पत्रकार महीने के आखिरी में उधार मांगते दिखेंगे.. दिल्ली मुंबई के पत्रकार अगर कुछ ज्यादा पाते दिखते हों तो मंहगाई की तुलना करके देखेंगे तो उनकी तनख्वाह बनारस आगरा के पत्रकारों से कम ही मिलेगी..

तीसरे तबके की दशा सबसे खराब है ये अखबार और चैनलों की रीढ़ हैं..स्ट्रिंगर.. जिनको न चैनल सम्मान देते है न ही अखबार..दिन भर दौड़ धूप.. पीठ पर झोला लादे मोटरसाइकिल से इधर उधर.. अब तो हालात गजब के हैं.. कुछ एक चैनल ऐसे है जो आईडी देने के एवज में महीने में रकम लेते हैं रिपोर्टर को चवन्नी नहीं देते.. अखबारों का हाल क्या कहूं.. 2001 - 02 के आसपास मुझे ढाई हजार रुपये देता था.. जो उसकी खबर इकठ्ठा करने के लिए पेट्रोल में फुंक जाता था.. आज इतने सालों के बाद जब पता चलता है कि मेरे जिले में ही नामी गिरामी अखबार 3 हजार, 4 हजार दे रहें हैं तो खून जल जाता है..3 हजार, 4 हजार पा रहे पत्रकार से जो समाज नैतिकता की उम्मीद करेगा तो उसे क्या कहा जाये.. पूरा परिवार पालना है इसी 4 हजार में.. 24 घंटे की ड्यूटी.. हमेशा तैयार रहो..

ये गाथा लिखने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि कोरोना संक्रमित होने की खबर डरा रही है.. ईश्वर न करे संक्रमण से मौत हुई तो परिवार का क्या होगा.. गारंटी है ज्यादातर वसीयत में कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी देकर जायेंगे.. एक टका अखबार या चैनल नहीं देगा..साथी पत्रकार भले अपनी कमाई का कुछ हिस्सा देकर एक बार मदद कर दें..  भाइयों ख्याल रखो अपना.. आपके पीछे परिवार है जो आपके ही सहारे हैं.. खबर करें पर ये मानकर जिससे भी बात कर रहे हैं वो कोरोना संक्रमित हो सकता है.. उससे दूरी बनाकर रखे.. जो संसाधन हैं उन्हीं की मदद से बचाव का बेहतर तरीका अपनायें.. बाकी तो मास्क और सेनेटाइजर लाला जी क्या देंगे और अगर दिया भी होगा एक बार में आपकी आईडी खा गयी होगी..

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