डर से लड़ना जरूरी है ?

जीवन की प्रत्येक अवस्था मे हमे डर से दो चार होना पड़ता है | कभी अपने लिए तो कभी अपनों के लिए कभी आमदनी को लेकर तो कभी खर्चों को लेकर, कभी जीवन को लेकर तो कभी शिक्षा को लेकर, कभी कार्य के लिए तो कभी परीक्षा के लिए ये डर हर जगह कई रूपों मे आ जाता है | हम हमेशा अपने जीवन मे किसी भी विषय वस्तु या विचार को लेकर जब हम ससंकीत होते है तो यह सबसे पहले जेहन मे डर आता है और हम कल्पना करने लगते है की ऐसा हुआ तो क्या होगा या हम ऐसा करेगे तो क्या होगा | जीवन मे डर से कई निर्णय बदल जाते है |

पर ऐसा नही है की डर आने से हमेशा अच्छी बातों या कार्यों का नहीं होना होता है बल्कि कई बार हम अनेकों बुराइयों और भविष्य की समस्याओं से बच जाते है | पर डर अगर प्रत्याशित हो तो वाजिब और उचित कह सकते है पर डर अगर अप्रत्याशित हो तो हम न उसे उचित कहेगे और न ही व्यावहारिक | बचपन मे जब हम चलना नहीं जानते थे तो चलने पर गिर जाने का डर, जब चलना जान गए तो शिक्षा और परीक्षा का डर, जब बड़े हुए तो नौकरी पाने या खोने का डर, कभी जरूरतों को पूरा कर पाने का डर कभी जरूरतों को न पूरा कर पाने का डर | अधिकारी को खुश कर पाने का डर |

यह डर भी इतना खतरनाक है की कई बातों की सच्चाई को जानते हुए भी न कह पाने का डर | ये डर ही कही कही लोगों के विकास मे बाधक बन पड़ता है |  कई लोग कहतें है की डर के आगे जीत है पर कितने लोग उसके आगे सोच पातें है | डर पाने का भी और खोने का भी कारण रहा है | ऐसे मे मन मे विचार आना जरूरी है की इस डर का क्या किया जाए या फिर इस डर का सामना कैसे किया जाए |

चलिए कुछ इतिहास से ही सीखने की कोशिस करते है अपने जीवन के फ्लैश-बैक मे जाइए और सोचिए की आपने अपने जीवन मे अंतिम बार कब डर महसूस किया था और उस डर से आप बाहर कैसे आ पाए थे | तो आपको इसका जबाब स्वतः ही मिल जाएगा | फिर भी आप सोच रहे होंगे की डर से लड़ा कैसे जाए तो इसका सीधा सा उत्तर है कोई भी डर उस बात विषय के पूरा हो जाने व्यतीत हो जाने पर स्वतः ही समाप्त हो जाता है | जो निश्चित है |

हमारे मन की आशंका और कुछ न खोने की चाह डर को और मजबूत कर देती है कई-कई ऐसे व्यक्ति भी है जिन्हे एक दिन मे अनेकों बार डर का सामना करना पड़ता है और उससे वो इतने प्रभावित होते है की सच और झूठ की ताकत को भी भूल जाते है |

चलिए एक और गहरी बात को साझा करते है डर से लड़ने के लिए, इस संसार मे क्या कोई ऐसी चीज है जिसे आप हमेशा आपने पास रख सकते है शायद नही क्योंकि जब जीवन ही क्षणिक है तो फिर डर किस बात का | क्या पाने का क्या खोने का | बस जरूरत है तो ऐसे डर के सामने सिद्दत से खड़े रहने का |

कुछ लोग सोच रहे होंगे की इसका मतलब जीवन मे डर महसूस नहीं करना चाहिये और डरना नहीं चाहिये ऐसे लोगों को मेरा कहना है की किसी विषय के प्रति आपकी जानकारी डर को घटा या बढ़ा सकती है | अच्छे कार्य ही या बुरे डर आपको दोनों अवस्था मे लग सकता है | ऐसे मे यह बेहद जरूरी है की प्रत्येक निर्णय जिससे किसी का अनावश्यक नुकशान हो उसे करते हुए डरना चाहिये जबकि ऐसा डर जिससे आप अपनी स्वतंत्रता खो रहे हो ऐसा डर जिससे आप अपने जीवन मे समस्या महसूस कर रहे हो उससे पार जरूर आना चाहिये | हाँ यह एक बात जरूर आपके लिए सहायक हो सकती है की आपके अपनों का डर आपको हमेशा सही रास्ते पर जरूर ले जाएगा | अतः डर से डरने के पहले उस विषय वस्तु के सभी पहलू का विवेचन और भविष्य के परिणामों का आकलन कर उस पर नीति और नियम मान कर कुछ करने या न करने हेतु डरना या नहीं डरना सुनिश्चित करना चाहिये |

डॉ. अजय कुमार मिश्रा (लखनऊ)
drajaykrmishra@gmail.com

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