नौनिहालों के निवाले हजम कर रहे आंगनवाड़ी केन्द्र

जौनपुर, । जिले भर में आंगनवाड़ी केन्द्रों पर नौनिहालों के निवाले हजम करने का खेल चल रहा है सम्बन्धित अधिकारी अपना कमीशन लेकर चुप्पी साध ले रहे है। न तो धात्री महिलाओं को पोषाहार मिल पा रहा है न बच्चों को पौष्टिक आहार मिल रहा है। बाल पुष्टाहार मासूम बच्चों व गर्भवती, निराश्रित महिलाओं को हर माह मिल रहा है। इन्ही लोगों के बीच वितरण होना है लेकिन बिना किसी लाग लपेट के बराबर कार्यकत्रियों सहित सहायकों द्वारा बेचा जा रहा है। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है। लेकिन जरा ठहरिए! ये सब महज फाइलों के कागजो पर सुशोभित हो रहा है। फाइलों को देख साहब खुश जाते है। लेकिन इसकी जमीनी हकीकत क्या है कभी उन गरीबों से पूछिए जिनके बच्चे कुपोषण का शिकार हो चुके है। या फिर जो गर्भवती महिला है। क्या उसको कुपोषण से बचने के लिए कभी पुष्टाहार मिला।
 विकास खण्ड शाहगंज सोंधी के सबरहद गांव में सरकारी योजना में बड़ा घोटाला सामने आया है। यहां बच्चों व गर्भवती महिलाओं के बीच वितरित होने वाला बाल पुष्टाहार वितरण होने के बजाय खुलेआम कालाबाजारी हो रही है। सबसे बड़ी बात ये है कि मामला अधिकारियों के संज्ञान में होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। दरअसल केंद्र सरकार द्वारा विश्व बैंक के सहयोग से संचालित योजना आईसीडीएस के तहत 07 माह से 3 वर्ष तक के नौनिहालों व गर्भवती महिलाओं तथा निराश्रित महिलाओं के बीच बाल पुष्टाहार वितरित किया जाता है। इस गांव में बाल पुष्टाहार योजना पशुहार बन कर रह गया है। इस खेल में कार्यकत्री, सहायिका व सुपरवाइजर भी शामिल है। इनकी मिलीभगत से बाल पुष्टाहार की खरीद फरोख्त के काम को धड़ल्ले से अंजाम दिया जा रहा है। आँगनवाड़ी सेन्टर का तो पूरे गांव में कहीं अता पता नही है और ये मात्र कागजों पर ही चल रहा है। हाड़कुक्ड भी इस योजना में शामिल है। जो नौनिहालों को केंद्रों पर सुबह में देना पड़ता है। इसमें पाठशाला में रजिस्टर्ड नौनिहालों को गरम भोजन, दूध, फल आदि दिया जाता है। उसके लिए अलग से प्रति छात्रों का पैसा सरकार द्वारा भुगतान होता है लेकिन रजिस्टर्ड छात्रों के नाम का तो विभाग से हाड़कुक्ड के नाम पर भुगतान तो हो जाता है। जबकि केंद्र मात्र कागजों पर ही संचालित है तो भुगतान प्रतिमाह कहाँ जाता है। सच्चाई से कोसो दूर है। कहीं छात्रों का पता नही होता है और न ही इसकी जानकारी ग्रामीणों को है। बाल पुष्टाहार को गांव के पशुपालकों सहित दूधिया वालों को बेचा जा रहा है। इससे मावेशियों के पेट का आहार बन रहा है। यहां बाल पुष्टाहार के रेट फिक्स हैं। पशुपालकों को 300 रुपया प्रति बोरी बेच कर सभी कार्यकत्रियों और सहायिका में बंदरबाँट होता है यही खेल महीनों से जारी हैं। बिडम्बना यह है कि बच्चों की शिक्षा व उनके स्वास्थ्य से सीधे जुड़ी इस योजना का क्रियान्वयन में पारदर्शिता लाने के लिए किसी भी स्तर पर कोई पहल नही की जाती है। यह करना तो दूर की बात है इस पर सोचना मुनासिब नहीं समझते है बल्कि योजनाओं में पलीता लगाने का केन्द्र संचालक काम कर रहे है।

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