अनैतिक, अवैधानिक, षड्यन्त्रकारी वेतन निर्धारण हमे मंजूर नहीं : डॉ विजय प्रताप तिवारी

जौनपुर । उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा मंत्री के इशारे पर उच्च शिक्षा विभाग एवं राज्य विश्वविद्यालयों द्वारा मनमाने ढंग से , शिक्षकों में फ़ूट डालने के उद्द्येश्य से वेतन निर्धारण का अनैतिक खेल चल रहा है। स्वयं मनगढ़ंत नियमो के आधार पर तरह तरह के वेतन निर्धारित किये जा रहे हैं और इस तरह से माननीय उच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेश का उल्लंघन किया  जा रहा है। उत्तर प्रदेश अनुदानित महाविद्यालय अनुमोदित शिक्षक संघ ऐसे किसी वेतन निर्धारण को स्वीकार नही करेगा जो माननीय न्यामूर्ति डी पी सिंह के न्यूनतम यू जी सी वेतनमान को प्रदान न करता हो। हम इसके विरुद्ध माननीय न्यायालय से लेकर महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों तक अपने हक की लड़ाई लड़ेंगे और माननीय मंत्री के इस षड्यन्त्रकारी योजना का पर्दाफाश करेंगे। 

   गौरतलब है कि   माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में तत्कालीन न्यायमूर्ति डीपी सिंह ने सुरेश कुमार पांडेय वनाम उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य के बाद 729/(एस वी)/2012 के केस में यह  निर्णय दिया था कि अनुदानित महाविद्यालयों में स्ववित्तपोषित योजना में कार्यरत शिक्षकों को भी यूजीसी का न्यूनतम वेतनमान  प्राप्त होना चाहिए, अनुपालन न होने की स्थिति में में नीरज कुमार श्रीवास्तव ने अवमानना याचिका (2604/2018  डॉ नीरज कुमार श्रीवास्तव वनाम  श्री नवीन अग्रवाल व अन्य) उच्च न्यायालय में दायर किया । सरकार कोई न कोई बहाना करके अवमानना वाद को लटकाती रही।  पिछले कुछ बहसों में सरकार की तरफ से तरह तरह के हलफनामों के द्वारा माननीय उच्च न्यायालय को गुमराह करने का कुत्सित खेल किया गया, जब न्यायालय ने कड़ा रुख इख्तियार किया तो सरकार ने शिक्षकों के बीच फुट डालने की रणनीति अपना ली है। यह एक बड़ा खेल है जो बड़ी ही घृणित मानसिकता के साथ खेला जा रहा है , हम सभी को इस खेल को समझना होगा। यह दिनेश शर्मा की केवल आज की रणनीति नही वरन शासन के  दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है जिसमे उच्च शिक्षा को पूरी तरह से निजी हाथों में सौप देने की तैयारी चल रही है जिससे आज नही तो कल उच्च शिक्षा में लगे हुए हर व्यक्ति को प्रभावित होना ही होगा। 

उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा के निजीकरण और बाजारीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत राजनाथ सिंह  द्वारा स्ववित्तपोषित योजना को लागू करके किया गया था । तब भी इनकी मर्जी शिक्षण संस्थाओं को दुकान बना के चलाने की थी।   और अब भी।
 आज शिक्षक की स्थिति उस पथेरे की तरह बनाया जा रहा है जो दिन भर अपने द्वारा पाथे गए ईंटों को गिनवता है और उस संख्या के अनुपात में उसको भुगतान प्राप्त होता है, मिट्टी की ईंट पाथने वाले का अलग, सीमेंट का ईंट बनाने वालों का अलग। 
इसलिए हम शासनादेश संख्या दिनांक 13 मार्च 2020, जिसका अनुपालन सभी राज्य विश्वविद्यालयों को 15 मई तक करके देना है का विरोध करते हैं। 

उक्त शासनादेश 11 नवंबर 1997 के शासनादेश के क्रम में जारी किया गया है। उसके अतिरिक्त वर्तमान में निर्गत शासनादेश के पार्श्वांकित शासनादेशों को अवक्रमित कर दिया गया है।
 निर्गत शासनादेश में विश्वविद्यालयों को स्ववित्तपोषित योजना अंतर्गत संचालित पाठ्यक्रमों में शिक्षकों के लिए न्यूनतम वेतन व शिक्षण शुल्क निर्धारित करने का अधिकार राज्य विश्वविद्यालयों को दिया गया है। जो कदाचित उचित नही है।  शिक्षण शुल्क का कम से कम 75% अंश शिक्षक शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के वेतन पर खर्च होगा।  ऐसा प्रावधान है।...
क्योंकि विधिक रुप से प्रत्येक पाठ्यक्रम में यूजीसी योग्यता धारी शिक्षक रखे गए हैं इसलिए न्यूनतम वेतनमान भी यूजीसी का ही देना होगा।




यह शासनादेश, पूरी तरह से अनैतिक, अवैधानिक, तथा अन्यायपूर्ण है। शासन द्वारा विभेद पर विरचित एक ऐसा षडयंत्र है जिसमे फंसा कर, शिक्षक एकता को तोड़ने का प्रयास किया गया है , सरकार स्वतन्त्र है अपने कागजी घोड़ो को दौड़ाने के लिए , परंतु उत्तर प्रदेश अनुदानित महाविद्यालय अनुमोदित शिक्षक संघ की इकाई तथा प्रदेश का कोई भी शिक्षक इस शासनादेश को स्वीकार नही करेगा। हमारा आग्रह है कि उच्च शिक्षा के स्थापित मानकों के अनुरूप यूजीसी वेतनमान प्रदान करने की व्यवस्था कर नैसर्गिक न्याय की उपलब्धता सुनिश्चित किया जाए।

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