पढ़े दिलचस्प स्टोरी , आधुनिकता के इस युग में उद्देश्य विहीन दौड़

लखनऊ । विगत तीन दशकों का यदि व्यापक मूल्यांकन किया जाये तो यह स्वतः ज्ञात होगा की हम आधुनिकता के इस युग में उद्देश्य विहीन दौड़ में भाग रहें है | जहाँ घर की कड़ाही में सरसों के तेल से कही अधिक मोटर बाइक के इंजन में पेट्रोल की महत्ता है | खाने को अच्छा भोजन हो या न हो किन्तु आकर्षक मोबाईल, नियमित इंटरनेट डेटा का होना अधिक महत्वपूर्ण है | सोशल नेटवर्किंग के माध्यम फेसबुक, व्हाट्सएप्प जैसे ढेरों उत्पाद हमारे जीवन का अभिन्न अंग बनते चले जा रहें है | देश ही नहीं विदेश में घटित होने वाली घटना पलक छपकते हमारे मोबाईल में होती है फिर चाहे हम देश के किसी भी कोने में ही क्यों न रह रहें हो | कुछ लोग इसे विकास का नाम दे सकते है | कुछ लोग इसे आधुनिकता की पहचान मान सकते है | कुछ लोग समय की आवश्यकता मान सकते है | जीवन में आधुनिकता आज देश की आबादी के अधिकांश लोगों की अनिवार्य आवश्यकता बन चूका है | पर क्या वास्तव में यह सब हमारी अनिवार्य आवश्यकता है ? क्या हम ग्लोबलाइजेशन के इस चक्रव्यूह में जकड़ते नहीं चले जा रहें है ? आज एक ही घर में नहाने, कपड़े धोने, हाथ धोने, घर की धुलाई, फ़र्स की धुलाई, के लिए विभिन्न तरह के उत्पाद प्रत्येक घर में मिल जायेगे | दशकों पहले हमारी आवश्यकता सिर्फ रोटी कपड़ा और मकान तक सीमित थी किन्तु आज रोटी कपड़ा मकान से भी महत्वपूर्ण जगह कई अन्य वस्तुओं ने ले लिया है | चाहें वह टी.वी. की देन हो या फिर पड़ोसी से पड़ोसी की प्रतिस्पर्धा, आज हर घर में ढेरो ऐसे उत्पाद लोग आधुनिकता की लालच में घर जरुर लातें है जिनकी शायद आवश्यकता ही नहीं थी |

कई लोग इतनें अच्छे -2 ज्ञान की बातें सोशल मीडिया में भेजतें रहते है जिससे लगता है की अमुक व्यक्ति से मिलकर जीवन धन्य हो जायेगा | जबकि उनके निजी जीवन की परिभाषा से उसका कोई लेना देना ही नहीं होता | आज किस युग में हम आगे बढ़ रहें है जहाँ व्यक्ति से अधिक महत्व वस्तुओं का हो चूका है | सम्बन्धो से अधिक महत्व सम्बन्धो के दिखावे का हो चूका है | सामाजिक और सामूहिक उन्नति और सुख की अपेक्षा निजी सुख की प्राथमिकता हो चुकी है | धर्म, पुराण, अच्छी किताबें, आज धूल खा रही है जबकि किसी एक्टर एक्ट्रेस की पसंद के सारी बातें लोगों की जुबान पर है | सरल शब्दों में कहाँ जाय तो लोगों के पास सूचनाओं और जानकारियों का भण्डार है पर उसे जज करने की क्षमता का समापन होता जा रहा है | विद्वानों की बातें निरर्थक है जबकि व्हाट्सएप्प और गूगल की जानकारियां अति महत्वपूर्ण | निसंदेह जिस गति से हम इस ग्लोबलाइजेशन और आधुनिकता के चक्रव्यूह में फसतें जा रहें है आगामी वर्षो में बलात्कार, हत्या, साजिश, आत्म हत्या, मनोवैज्ञानिक बिमारियों, निराशावाद, कुंठा, मानवता के विपरीत की अनेकों नई उपलब्धियों को हम प्राप्त करेंगे | जिसे प्राप्त करने वालों में उम्र की असमानता भी दिखेगी | मानवता का समापन होगा | रेयान इंटर नेशनल स्कूल की घटना और मैक्स हास्पिटल की घटना इसका ज्वलंत उदहारण भी है | आज के वर्तमान के लक्षण हिन्दुओं के भागवत पुराण में पूर्व में निहित बातों और तथ्यों से धीरे – धीरे पुष्ट भी हो रहें है |

शायद इन बातों का कुछ लोगों के लिए कोई मूल्य न हों ऐसे प्रत्येक लोगों से यह जरुर कहना है की अपने जीवन की दिन प्रतिदिन की सम्पूर्ण क्रिया कलाप में टी.वी, मोबाईल, व्हाट्स एप्प, फेसबुक, और ग्लोबलाइजेशन के प्रभाव का मुल्यांकन अवश्य करें और इसके पश्चात् थोडा समय मिले तो मानवता की सच्ची परिभाषा को समझने का प्रयास |

डॉ अजय कुमार मिश्रा (लखनऊ)

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