पृथ्वीराज चौहान भारत के स्वाभिमान थे
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जौनपुर। प्राथमिक शिक्षक संघ के संगठन मंत्री ने दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान की अपने घर पर 857 वीं जयंती मनाई। इस अवसर पर अश्वनी कुमार ने कहा कि वह विद्वान और महान योद्धा थे। आज युवा उनके शौर्य से प्रेरणा लें और राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दें।
पृथ्वीराज चौहान ने 15 वर्ष की आयु में अपने राज्य का राजपाठ संभाल लिया था। वह संस्कृत, प्राकृत सहित छह भाषाओं के विद्वान और वेदांत, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र के जानकार थे। उन्हें शब्द भेदी बाण चलाने में महारत हासिल था। सब गुण थे वे चन्द्रगुप्त मौर्य जैसे चक्रवर्ती सम्राट हो सकता था लेकिन उनके पास कोई चाणक्य जैसा गुरू नहीं था जब लोगों ने पूछा कि आप तो थे कबि ने कहा कि मैं तो उसका मित्र व कबि था केवल उसे प्रसन्न देखना चाहता था, रासों में कबि चंद ने लिखा, "यह लहै द्रव्य हरै भूमि, सुख लहै अंग जब होई भूमि" पा राज्याभिषेक 18 अगस्त 1178 को 15 वर्ष की आयु में हुआ वे केवल वीर ही नहीं थे बल्कि महान सेनापति भी थे कहते हैं कि एकबार सिंह से संघर्ष में उसके जबड़े को फाड़कर शिकार किया यहाँ तक कि वे शब्द वेधी वांण भी चलाते थे, सत्तरह बार मुहम्मद गोरी को पराजित करने के पश्चात अपने ही जयचंदों के धोखा देने से यह धर्म रक्षक महावीर 1192 में इस हिन्दू धरा के लिये लड़ते लड़ते चला गया ।
उक्त अवसर पर नीलम देवी, नीतू सिंह, गर्विता सिंह, सार्थक सिंह पुष्पाजंली अर्पित किए
पृथ्वीराज चौहान ने 15 वर्ष की आयु में अपने राज्य का राजपाठ संभाल लिया था। वह संस्कृत, प्राकृत सहित छह भाषाओं के विद्वान और वेदांत, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र के जानकार थे। उन्हें शब्द भेदी बाण चलाने में महारत हासिल था। सब गुण थे वे चन्द्रगुप्त मौर्य जैसे चक्रवर्ती सम्राट हो सकता था लेकिन उनके पास कोई चाणक्य जैसा गुरू नहीं था जब लोगों ने पूछा कि आप तो थे कबि ने कहा कि मैं तो उसका मित्र व कबि था केवल उसे प्रसन्न देखना चाहता था, रासों में कबि चंद ने लिखा, "यह लहै द्रव्य हरै भूमि, सुख लहै अंग जब होई भूमि" पा राज्याभिषेक 18 अगस्त 1178 को 15 वर्ष की आयु में हुआ वे केवल वीर ही नहीं थे बल्कि महान सेनापति भी थे कहते हैं कि एकबार सिंह से संघर्ष में उसके जबड़े को फाड़कर शिकार किया यहाँ तक कि वे शब्द वेधी वांण भी चलाते थे, सत्तरह बार मुहम्मद गोरी को पराजित करने के पश्चात अपने ही जयचंदों के धोखा देने से यह धर्म रक्षक महावीर 1192 में इस हिन्दू धरा के लिये लड़ते लड़ते चला गया ।
उक्त अवसर पर नीलम देवी, नीतू सिंह, गर्विता सिंह, सार्थक सिंह पुष्पाजंली अर्पित किए