समाचार पत्रों के प्रकाशन की अग्नि परीक्षा !


मीडिया के कई माध्यम/स्वरूप आज आपके सामने है । प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, वेब मीडिया के अलावा तेजी से सोशल मीडिया आगे बढ़ रहा है । पर जमीनी वास्तविकता यह है कि देश मे दैनिक समाचार पत्रों की विश्वसनीयता आम लोगो में कल भी और आज भी सर्वोपरि है । करोड़ो लोगों को सुबह समाचार पत्रों का इन्तेजार रहता है । कई-कई लोग दो से चार समाचार पत्रों को नियमित पढ़ते है । स्पष्ट, सटीक, सत्य, समाचार के लिए लोग समाचार पत्रों का सहारा लेते है । जीवन के हर पहलू में समचार पत्र काम आते है, प्रतियोगी परीक्षाएं भी इससे अछूती नही रही है । नेता, अधिकारी, जनता, व्यवसायी, कम्पनिया, और सोशल मीडिया भी इसी पर भरोसा करते है | वजह पूरी जिम्मेदारी और सभी के हितो को ध्यान में रखकर इसका प्रकाशन होता है | पर जिस तरह से कोरोना वायरस की वजह से देश मे लॉक-डाउन हुआ और यह अफवाह फैली की समाचार पत्रों से कोरोना वायरस फैलता है । लोगो ने बिना सोचे समझे न्यूज़ पेपर लेना बंद कर दिया । जबकि लगभग सभी समाचार पत्र बिना किस लाभ के उद्देश्य के सामाजिक उत्थान और आम आदमी के हितों के लिए चल रहे है । लोगो ने वर्षो का साथ कुछ पल में छोड़ दिया । जिसका खामियाजा लोगो के साथ-साथ समचार पत्र संचालक/कंपनियां उठा रही है ।
कोरोना वायरस की इस महामारी ने अनेको क्षेत्रो को प्रभावित किया है । इसमें समाचार पत्र भी शामिल है । पर जिस मजबूत इच्छा शक्ति और बड़े नुकशान को सह कर समाचार पत्रो का प्रकाशन कंपनियां/संगठन कर रहे है वह वास्तव में साहस भरा कार्य है । 800 से अधिक समाचार पत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय समाचार पत्र संगठन (Indian News Paper Society) के अनुसार लॉक-डाउन के प्रारम्भ से लेकर अपैल 2020 माह तक इस क्षेत्र को रुपया 5000 करोड़ का नुकशान उठाना पड़ा है और अगले 6 से 7 माहो में यह बढ़कर रुपया 15000 करोड़ होने की संभावना है । इसकी मुख्य वजह यह है कि समाचार पत्रों के वितरण में तेजी से कमी आयी है सरकार और बड़ी कंपनियों ने विज्ञापन नाम मात्र कर दिया है । सीधे तौर पर इस क्षेत्र में कैश फ्लो की कमी आयी है । मजबूरन कुछ समाचार पत्रों ने अपने पृष्ठों की संख्या में कमी ले आये है, कुछ ने अपना प्रकाशन बन्द कर दिया है । अधिकांश ने वेतन में कटौती की है तथा कई कर्मचारियों को बिना भुगतान के छुट्टी पर भेज दिया है । कुछ जगह पर छटनी के साथ साथ अन्य खर्चो में भी भारी कमी की गयी है |
इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कार्यरत तकरीबन 30 लाख लोगों की आय पर इसका गंभीर असर पड़ा है । कार्यरत बड़े समूह जैसे दी टाइम्स ग्रुप, दी इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप, हिंदुस्तान टाइम्स मीडिया लिमिटेड, बिज़नेस स्टैण्डर्ड लिमिटेड और दी क्विंट भी इससे अछूते नही है । ये वो कंपनिया है जो काफी बड़ी और मजबूत मानी जाती है । टाइम्स ग्रुप ने अप्रैल 2020 में अपने कर्मचारियों को आंतरिक ईमेल के माध्यम से वेतन में कटौती 5 से 10 प्रतिशत,  टाइम्स ऑफ इंडिया, दी इकनोमिक टाइम्स और नवभारत टाइम्स में करने की बात कही थी । ऐसे में अनेको ऐसी कंपनियां है जिनकी स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है । कई लोगो ने लॉक-डाउन की अवधि में PDEF फाइल में समाचार पत्रों को डाउनलोड करके शेयर करना शुरू किया, जिससे कंपनियों की आय पर और अधिक प्रभाव पड़ा | हालाँकि कोर्ट के एक निर्णय के पश्चात् अब ऐसा करना कानून न केवल गलत है बल्कि सजा का प्रावधान है | फिर भी कुछ जगह पर आपको PDEF फाइल समाचार पत्र मिल ही जाएगा |
समाचार पत्रों के अलावा मैगज़ीन पर भी इसका बुरा असर पड़ा है आउटलुक मैगज़ीन पहली ऐसी मैगज़ीन है जिसने 30 मार्च को अपने प्रकाशन को स्थगित कर दिया था । अनेको समाचार पत्रों / मैगज़ीन ने ऑनलाइन का रूख कर लिया है । लोगो की पढ़ने के अवधारणा में भी परिवर्तन हुआ है । भारत के रजिस्टारर ऑफ न्यूज़ पेपर के उपलब्ध नवीनतम आँकड़ो के अनुशार 31 मार्च 2008 तक कुल 1,18,239 प्रकाशन पंजीकृत थे जिनमें से 17,573 समाचार पत्र और 1,00,666 पत्रिकाएँ है । यानी कि देश मे इनकी संख्या और पहुँच आज भी मजबूत है । जबकि वर्ष 1826 में देश का पहला अखबार, उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर के निवासी और पेशे से वकील पंडित जुगल किशोर शुक्ला ने "उदंत मार्तण्ड" का प्रकाशन कोलकाता के बड़ा बाजार मार्किट से शुरु किया था । तब से लेकर आज तक समचार पत्रो ने काफी बड़े उतार-चढ़ाव देखे है, पर इस महामारी की वजह से उतपन्न परिस्थिति बिल्कुल अलग और गंभीर है ।
कई लोगो मे यह भ्रम की समाचार पत्रों से कोरोना वायरस फैलता है, उनमे से अधिकांश लोगो ने समाचार पत्र लेना बंद कर दिया । जिसकी सीधी मार समाचार पत्रों में कार्यरत कर्मचारियों पर पड़ा, कई लोगो को नौकरी से निकाल दिया गया, जबकि वेतन कटौती आम बात है । प्रमुख समाचार पत्रों ने यह कार्य सबसे पहले किया और अन्य कई कंपनियों ने भी इसी तरह का कार्य किया । समाचार वितरकों की आय पर भी गहरा प्रभाव पड़ा । अन्य पेशो की तुलना में समाचार पत्रों में कार्य करने वाले लोगो की सैलरी कम होती है और इसके मालिक बिना लाभ के सामाजिक सरोकार हेतु इसका संचालन करते है । ऐसे में आय में कमी पर न चाहते हुए भी उन्हें कठोर निर्णय लेने पड़ते है ।
समाचार पत्रों की आमदनी का मुख्य जरिया विज्ञापन है जबकि समाचार पत्रों का विक्रय दूसरे स्थान पर है । 2019 के लोक सभा चुनाव के पश्चात सरकारी विज्ञापन में तेजी से कमी आयी है और इस महामारी की वजह से कंपनियों ने भी विज्ञापन बंद कर दिया है । जिससे समाचार पत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है । ऐसे में आज जरूरत है आम आदमी को आगे बढ़कर आने की और पूर्व की भांति पुनः समचार पत्रो को नियमित खरीदने की । जिस मूल्य पर, जितनी जानकारी इन समाचार पत्रो से मिलती है उतनी मूल्य से सस्ती शायद ही किसी और माध्यम से मिल सके । यदि लोगो ने साथ नही दिया तो न केवल इस क्षेत्र को नुकसान होगा बल्कि सामाजिक संरक्षण कमजोर होगा । मीडिया को तीसरी ताकत भी कहा जाता है और इसका कमजोर होना यानि आम आदमी का कमजोर होना होगा । अब सारे रिसर्च से यह स्पष्ट हो गया है कि कोरोना वायरस समाचार पत्रों से नही फैलता है, ऐसे में मन मे सिमटे डर को भगाने की जरूरत है ।
सरकारी दखल भी इस क्षेत्र के लिए अत्यधिक जरूरी है, हालांकि कई राज्यों के मंत्रियों ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को समाचार पत्रों को बचाने के लिए ज़रूरी कदम उठाने को लिखा है । साथ ही समाचार पत्रों के विभिन्न संगठनों ने भी यह आग्रह किया हुआ है की इस मुशीबत की घड़ी में सरकार समाचार पत्रों पर 5 प्रतिशत इम्पोर्ट ड्यूटी खत्म करे । सरकारी विज्ञापनों के मूल्यों में 50 प्रतिशत वृद्धि करे और 100 प्रतिशत सरकारी बजट इस क्षेत्र के लिए बढ़ाया जाए । दो वर्षों के लिए किसी भी कर से इस उद्योग को मुक्त रखा जाए । अभी तक लंबित भुगतानों को तुरंत पूरा कराया जाए । इस विषय पर जितना अहम रोल केंद्र सरकार का है उतना ही अहम रोल राज्य सरकार का भी है । ऐसे में राज्य सरकारों को इन्हें बचाने के लिए आगे आना चाहिए । जनता और सरकारों के बीच सीधा सम्वाद इन्ही न्यूज़ पेपरों के माध्यम से होता है जो न केवल भरोसेमंद है बल्कि प्रभावशाली भी है ।
इस महामारी से इस क्षेत्र को बड़ी सीख यह भी मिली है कि विभिन्न विज्ञापनों पर निर्भरता कम या समाप्त कर समाचार पत्रों के विक्रय से आय के मॉडल पर विचार करना चाहिए । जिसको अपनाने से हो सकता है हम सब को प्राप्त समाचार पत्रों की वर्तमान मूल्य से कई गुना अधिक मूल्य भुगतान करना पड़े । शायद यही वजह है कि समाचार पत्र अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सरकार से बार - बार निवेदन कर रहे है जबकि उनके लिए आसान होता मूल्य वृद्धि करना । आज सरकार और आम आदमी दोनो को जागृत होने की जरूरत है और निस्वार्थ भाव से इस क्षेत्र को सहयोग करने की जिससे सच को बचाया जा सके । याद रखिये इनकी मौजूदगी लोगो में न केवल नवीनतम जानकारी उपलब्ध कराती है बल्कि सुरक्षा का बोध भी कराती है | लोग, समाज और देश के इन समाचार पत्रों को इस संकट से उबारना अत्यंत जरुरी है | इस अवधि में समाचार पत्रों का प्रकाशन, सरकार या जनता के सहयोग के बिना किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है |
डॉ. अजय कुमार मिश्रा (लखनऊ)
DRAJAYKRMISHRA@GMAIL.COM

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