नज्मों के माध्यम से हिन्दुस्तान का झण्डा बुलंद करने वाले आकील जौनपुरी नही रहे
जौनपुर। अभी राहत इंदौरी के जाने का गम लोग भूला भी नही पाये थे इसी बीच मंगलवार को एक और मनहूस खबर ने ऊर्दू और हिन्दी साहित्य से जुड़े लोगो को हिलाकर रख दिया, आज भोर में विदेशो की धरती पर अपने नज्मों के माध्यम से हिन्दुस्तान का झण्डा बुलंद करने वाले आकील जौनपुरी साहब विमारी के चलते इस दुनियां से रूखसत हो गये। उनके मौत की खबर मिलते ही हिन्दी,ऊर्दू साहित्य जगत से जुड़े लोगो समेत समाज के हर तबके में शोक की लहर दौड़ पड़ी। फिलहाल लोग किसी तरह से कलेज पर पत्थर रखकर नम आंखो से आज उन्हे मिट्टी देकर शेखमुहामिद कब्रिस्तान में सुपुर्देखाक किया।
नगर कोतवाली के पास स्थित मीरमस्त मोहल्ले के निवासी आकील जौनपुर देश ही नही विदेशों में ऊर्दू अदब के शायरो में अपनी एक अलग पहचान थे।
"उनका चर्चित नज्म "वफा में बेहयाही ढूंढता है,गंगा जल में कायी ढूंढता है" "थका हारा मुसाफिर घर पहुंचकर बस अपनी चारपाई ढूंढता ने उन्हे पूरी दुनियां में अलग पहचान दिलायी।
शायर मजहर ने बताया कि आकील जौनपुर के वालिद सफीक जौनपुर आजादी के समय सैकड़ो नज्म लिखा था। ये नज्में आजादी के दीवानों में जोश और जज्बा पैदा करता था। अपने वालिद की तरह आकील साहब देश भक्ति से ओतप्रोत नज्में लिखते और पढ़ते रहे है। आज उनके दुनियां से जाने जिले को ही नही बल्की देश को बड़ी क्षति हुई है जिसका भरपाई होना मुश्किल ही नही ना मुमकीन है।
सभासद साजिद अलीम ने बताया कि आकील जौनपुरी साहब को हार्ट व शुगर की विमारी थी। आज भोर में उनकी तबियत अचानक विगड़ गयी। उन्हे परिवार वाले डा़ बीएस उपाध्याय के पास ले गये लेकिन उन्होने कोरोना के भय से इलाज करना तो दूर की बात देखा तक नही मजबूरी में उन्हे जिला अस्पताल ले जाया गया जहां पर डाक्टरो ने उन्हे बीएचयू रेफर कर दिया। बीएचयू के डाक्टरो ने मृत घोषित कर दिया । उन्होने साफ कहा कि यदि जौनपुर के डाक्टरो ने उनका इलाज किया होता तो आज हम लोगो को इतनी बड़ी क्षति न होती।