क्या शिक्षक दिवस से दूर होगी शिक्षकों की समस्याएं ?

 


आज देश भर में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है अपने प्रारम्भ से लेकर अब तक यह 58वाँ शिक्षक दिवस है ऐसे महत्वपूर्ण समय में स्वतः ही सभी लोग यह सोचने के लिए बाध्य होते है कि क्या जिस वास्तविक सम्मान और प्रोत्साहन के योग्य ये शिक्षक है, उन्हें यह क्या वास्तव में मिल रहा है ? इस अंतर्राष्ट्रीय कोरोना महामारी में देश के कई क्षेत्र गम्भीर रूप से प्रभावित हुए है उनमे शिक्षा और शिक्षक दोनों शामिल है | कोरोना महामारी की वजह से न केवल अनेको शिक्षकों की नौकरियां गयी है बल्कि कार्यरत शिक्षकों के वेतन में भारी कमी की गयी है दुखद यह भी है की यह स्थिति लगातार बनी हुई है | प्रभावित होने वाले शिक्षक गैर सरकारी क्षेत्र के है | जिनकी सुनवाई कही नही है | देश के शिक्षा की आधारशिला और प्रणाली कभी सफल रूप से नियंत्रित नहीं रही, जिसका लाभ निजी क्षेत्रो ने जमकर उठाया है जहाँ शिक्षक को नाम - मात्र वेतन दिया जाता है वही संस्थान अधिक से अधिक आय कमाने की होड़ में रहता है | कार्य के भार का दबाव शिक्षकों पर अधिक होता है |


पर इस वास्तविकता का दूसरा पहलू यह भी है की निजी क्षेत्र में कार्यरत शिक्षक जिस पीड़ा से दो चार प्रतिदिन होते है उससे कम पीड़ा सार्वजनिक क्षेत्र के शिक्षकों की नहीं है जहाँ उन्हें शिक्षा के कार्य के आलावा अनेको कार्य करने पड़ते है जो न केवल अधिक पेपर वर्क वाले है बल्कि तय समय सीमा के अंदर करने पड़ते है जिससे मूल उद्देश्य शिक्षण को सफलता पूर्वक पूरा नही कर पातें है | अभिभावक यदि थोड़ा सा भी सामर्थ्यवान है तो वह निजी क्षेत्र की राह पर जाना पसंद करता है | राजनैतिक हस्तक्षेप ने जहाँ शिक्षकों की बदहाली को जन्म दिया है वही कई कमेटियों के सुझावों को शिक्षकों की नियुक्ति और सामान वेतन में लागू न करके सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को कमजोर किया गया है | जो शिक्षक देश का भविष्य बनाते है, पर इस आधुनिक समय में भी अपनी जमीनी आवश्यकताओं के लिए संघर्षरत है |


निजी क्षेत्र में कार्यरत शिक्षकों की कई समस्याएं है जहाँ समान कार्य करते हुए भी नाममात्र का वेतन, कार्य के घंटो की सीमा का निर्धारण न होना, अध्यापन के साथ-साथ कागजी कार्यो की पूर्ति करना और हमेशा नौकरी को लेकर हासियें पर रहना, शिक्षकों के लिए किसी बड़े दर्द से कम नहीं है | भारत सरकार के मंत्रालय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन (MOSPI) के 2014-15 के आकड़ो के अनुसार देश में प्राथमिक स्कूल, उच्च प्राथमिक स्कूल, माध्यमिक स्कूल, सीनियर सेकेंडरी स्कूल और विश्वविदयालयों/कालोजो की संख्या देश में 15.68 लाख से अधिक है और इनमें पढ़ाने वाले अध्यापको की संख्या 98.23 लाख से अधिक है | शिक्षकों के लाखों पद अलग-अलग स्तर पर वर्षो से खाली पड़े हुए है | शिक्षा और शिक्षक किसी भी सरकार के लिए अति महत्वपूर्ण विषय कभी भी नहीं रहें है, जबकि कोठारी कमीशन दवारा शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी का 6% खर्च करने की सलाह 1964 में दी गयी थी जो आज तक नहीं की गयी | राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी शिक्षकों की भर्ती को लेकर कोई स्पष्ट प्रक्रियां नहीं वर्णित की गयी है और न ही निजी क्षेत्र के शिक्षकों के लिए किसी नियमावली की बात की गयी है |


एक शिक्षक कई समस्याओं से दो-चार होते हुए भी अपने छात्रो को बेस्ट देने की कोशिश करता है पर यदि वह कई चुनौतियों से स्वयं घिरा रहेगा तो अपना सार्थक योगदान कैसे दे सकता है यह एक बड़ा और सोचनीय विषय है | शिक्षकों की जरूरतों को किसी सरकार ने अभी तक अहमियत नहीं दी | कई संगठन और ज्ञानी लोग प्रयासरत है की सामान कार्य के लिए सामान वेतन हर स्तर पर दिया जाये पर उनकी सुनने वाला कोई नहीं है | एक अध्यापक कई भूमिकाओं में कार्य करता है, तकनीकी और आधुनिक प्रशिक्षण का हर स्तर पर आभाव है, कई अन्य बातों के लिए शिक्षकों को जिम्मेदार बनाना उनकी उत्पादकता को कम करता है, पेपर वर्क्स/डेटा कलेक्शन के अधिक काम से शिक्षक प्रभावित होता है जिसका सीधा प्रभाव उसके अध्यापन पर पड़ता है |


शिक्षक किसी भी देश का भविष्य बदल सकते है बशर्तें उन्हें कई रूपों में स्वतंत्रता हो | देश को सशक्त और समृद्ध बनाने में शिक्षक अति महत्वपूर्ण योगदान कर सकते है | केंद्र सरकार के साथ विभिन्न राज्य सरकारों को इनकी समस्याओं का समाधान करना चाहिये | इन बातों को सरकरी / गैर सरकारी दोनों क्षेत्रो पर सामान रूप से लागू करना न केवल अनिवार्य है बल्कि समय की मांग भी है - सामान कार्य के लिए सामान वेतन, खाली पड़े समस्त पदों पर तत्काल नियुक्त, नवीनतम तकीनीकी से नियमित प्रशिक्षण, पेपर वर्क्स/डेटा कलेक्शन कार्यालय कार्यो से इन्हें अलग रखा जाये, महिला शिक्षकों को स्थानीय जगह पर तैनाती दी जाये, बीमा सुरक्षा में इन्हें शामिल किया जाये, कार्य के घंटो का निर्धारण किया जायें, पीएफ और ग्रेच्युटी की सामान व्यवस्था लागू की जाये, महत्वपूर्ण बातों के लिए नियमावली बनायीं जाये, पदोन्नति की न्यूनतम अवधि निर्धारित की जाये, राजनैतिक हस्तक्षेप को कम किया जाये, अंतर्राष्ट्रीय मानको के अनुरूप शिक्षक छात्र अनुपात सुनिश्चित किया जाये, शिक्षकों के द्वारा किये जा रहें शिक्षण का समय - समय पर मुल्यांकन किया जाय और किसी भी तरह से सरकारी / गैर सरकारी क्षेत्र के शिक्षकों के आपसी अंतर को समाप्त किया जाये | यह कार्य कठिन जरुर है पर असंभव नहीं यदि सरकार इन बातों पर अमल करती है तो आगामी कुछ वर्षो में हम न केवल बेहतर शिक्षा उपलब्ध करा पायेगे बल्कि शिक्षकों की समस्याओं और असमानताओं को समाप्त कर पायेगे और तभी सही मायने में शिक्षक दिवस मनाने की वास्तविक ख़ुशी, सभी शिक्षकों के मुस्कुराते और उत्साहित चेहरों पर महसूस की जा सकेगी |

डॉ अजय कुमार मिश्रा

drajaykrmishra@gmail.com शिक्षक दिवस से दूर होगी शिक्षकों की समस्याएं ?

आज देश भर में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है अपने प्रारम्भ से लेकर अब तक यह 58वाँ शिक्षक दिवस है ऐसे महत्वपूर्ण समय में स्वतः ही सभी लोग यह सोचने के लिए बाध्य होते है कि क्या जिस वास्तविक सम्मान और प्रोत्साहन के योग्य ये शिक्षक है, उन्हें यह क्या वास्तव में मिल रहा है ? इस अंतर्राष्ट्रीय कोरोना महामारी में देश के कई क्षेत्र गम्भीर रूप से प्रभावित हुए है उनमे शिक्षा और शिक्षक दोनों शामिल है | कोरोना महामारी की वजह से न केवल अनेको शिक्षकों की नौकरियां गयी है बल्कि कार्यरत शिक्षकों के वेतन में भारी कमी की गयी है दुखद यह भी है की यह स्थिति लगातार बनी हुई है | प्रभावित होने वाले शिक्षक गैर सरकारी क्षेत्र के है | जिनकी सुनवाई कही नही है | देश के शिक्षा की आधारशिला और प्रणाली कभी सफल रूप से नियंत्रित नहीं रही, जिसका लाभ निजी क्षेत्रो ने जमकर उठाया है जहाँ शिक्षक को नाम - मात्र वेतन दिया जाता है वही संस्थान अधिक से अधिक आय कमाने की होड़ में रहता है | कार्य के भार का दबाव शिक्षकों पर अधिक होता है |


पर इस वास्तविकता का दूसरा पहलू यह भी है की निजी क्षेत्र में कार्यरत शिक्षक जिस पीड़ा से दो चार प्रतिदिन होते है उससे कम पीड़ा सार्वजनिक क्षेत्र के शिक्षकों की नहीं है जहाँ उन्हें शिक्षा के कार्य के आलावा अनेको कार्य करने पड़ते है जो न केवल अधिक पेपर वर्क वाले है बल्कि तय समय सीमा के अंदर करने पड़ते है जिससे मूल उद्देश्य शिक्षण को सफलता पूर्वक पूरा नही कर पातें है | अभिभावक यदि थोड़ा सा भी सामर्थ्यवान है तो वह निजी क्षेत्र की राह पर जाना पसंद करता है | राजनैतिक हस्तक्षेप ने जहाँ शिक्षकों की बदहाली को जन्म दिया है वही कई कमेटियों के सुझावों को शिक्षकों की नियुक्ति और सामान वेतन में लागू न करके सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को कमजोर किया गया है | जो शिक्षक देश का भविष्य बनाते है, पर इस आधुनिक समय में भी अपनी जमीनी आवश्यकताओं के लिए संघर्षरत है |


निजी क्षेत्र में कार्यरत शिक्षकों की कई समस्याएं है जहाँ समान कार्य करते हुए भी नाममात्र का वेतन, कार्य के घंटो की सीमा का निर्धारण न होना, अध्यापन के साथ-साथ कागजी कार्यो की पूर्ति करना और हमेशा नौकरी को लेकर हासियें पर रहना, शिक्षकों के लिए किसी बड़े दर्द से कम नहीं है | भारत सरकार के मंत्रालय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन (MOSPI) के 2014-15 के आकड़ो के अनुसार देश में प्राथमिक स्कूल, उच्च प्राथमिक स्कूल, माध्यमिक स्कूल, सीनियर सेकेंडरी स्कूल और विश्वविदयालयों/कालोजो की संख्या देश में 15.68 लाख से अधिक है और इनमें पढ़ाने वाले अध्यापको की संख्या 98.23 लाख से अधिक है | शिक्षकों के लाखों पद अलग-अलग स्तर पर वर्षो से खाली पड़े हुए है | शिक्षा और शिक्षक किसी भी सरकार के लिए अति महत्वपूर्ण विषय कभी भी नहीं रहें है, जबकि कोठारी कमीशन दवारा शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी का 6% खर्च करने की सलाह 1964 में दी गयी थी जो आज तक नहीं की गयी | राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी शिक्षकों की भर्ती को लेकर कोई स्पष्ट प्रक्रियां नहीं वर्णित की गयी है और न ही निजी क्षेत्र के शिक्षकों के लिए किसी नियमावली की बात की गयी है |


एक शिक्षक कई समस्याओं से दो-चार होते हुए भी अपने छात्रो को बेस्ट देने की कोशिश करता है पर यदि वह कई चुनौतियों से स्वयं घिरा रहेगा तो अपना सार्थक योगदान कैसे दे सकता है यह एक बड़ा और सोचनीय विषय है | शिक्षकों की जरूरतों को किसी सरकार ने अभी तक अहमियत नहीं दी | कई संगठन और ज्ञानी लोग प्रयासरत है की सामान कार्य के लिए सामान वेतन हर स्तर पर दिया जाये पर उनकी सुनने वाला कोई नहीं है | एक अध्यापक कई भूमिकाओं में कार्य करता है, तकनीकी और आधुनिक प्रशिक्षण का हर स्तर पर आभाव है, कई अन्य बातों के लिए शिक्षकों को जिम्मेदार बनाना उनकी उत्पादकता को कम करता है, पेपर वर्क्स/डेटा कलेक्शन के अधिक काम से शिक्षक प्रभावित होता है जिसका सीधा प्रभाव उसके अध्यापन पर पड़ता है |


शिक्षक किसी भी देश का भविष्य बदल सकते है बशर्तें उन्हें कई रूपों में स्वतंत्रता हो | देश को सशक्त और समृद्ध बनाने में शिक्षक अति महत्वपूर्ण योगदान कर सकते है | केंद्र सरकार के साथ विभिन्न राज्य सरकारों को इनकी समस्याओं का समाधान करना चाहिये | इन बातों को सरकरी / गैर सरकारी दोनों क्षेत्रो पर सामान रूप से लागू करना न केवल अनिवार्य है बल्कि समय की मांग भी है - सामान कार्य के लिए सामान वेतन, खाली पड़े समस्त पदों पर तत्काल नियुक्त, नवीनतम तकीनीकी से नियमित प्रशिक्षण, पेपर वर्क्स/डेटा कलेक्शन कार्यालय कार्यो से इन्हें अलग रखा जाये, महिला शिक्षकों को स्थानीय जगह पर तैनाती दी जाये, बीमा सुरक्षा में इन्हें शामिल किया जाये, कार्य के घंटो का निर्धारण किया जायें, पीएफ और ग्रेच्युटी की सामान व्यवस्था लागू की जाये, महत्वपूर्ण बातों के लिए नियमावली बनायीं जाये, पदोन्नति की न्यूनतम अवधि निर्धारित की जाये, राजनैतिक हस्तक्षेप को कम किया जाये, अंतर्राष्ट्रीय मानको के अनुरूप शिक्षक छात्र अनुपात सुनिश्चित किया जाये, शिक्षकों के द्वारा किये जा रहें शिक्षण का समय - समय पर मुल्यांकन किया जाय और किसी भी तरह से सरकारी / गैर सरकारी क्षेत्र के शिक्षकों के आपसी अंतर को समाप्त किया जाये | यह कार्य कठिन जरुर है पर असंभव नहीं यदि सरकार इन बातों पर अमल करती है तो आगामी कुछ वर्षो में हम न केवल बेहतर शिक्षा उपलब्ध करा पायेगे बल्कि शिक्षकों की समस्याओं और असमानताओं को समाप्त कर पायेगे और तभी सही मायने में शिक्षक दिवस मनाने की वास्तविक ख़ुशी, सभी शिक्षकों के मुस्कुराते और उत्साहित चेहरों पर महसूस की जा सकेगी |

डॉ अजय कुमार मिश्रा

drajaykrmishra@gmail.com

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