केंद्र सरकार द्वारा लाए गये तीनों कृषि कानून संघीय ढांचे पर हमला है : विकास तिवारी
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जौनपुर। गांधी जयंती के अवसर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मुफ्तीगंज ब्लाक के गांधी प्रतिमा सम्मुख कांग्रेस नेता विजय तिवारी के नेतृत्व में सांकेतिक धरना प्रर्दशन कर हाथरस में हैवानियत की शिकार हुई बेटी को न्याय दिलाने एवं हाथरस जा रहे कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी तथा राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के साथ बदसलूकी करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध कठोर दण्डात्मक कार्यवाही करने की मांग की तथा कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर हुए लाठीचार्ज तथा किसान विरोधी बिल के खिलाफ सरकार विरोधी नारेबाजी किया व ई-मेल के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति को ज्ञापन प्रेषित कर कृषि विधेयक को निरस्त करने की मांग किया। धरना प्रदर्शन में उपस्थित जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष विकास तिवारी ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लाया गया कृषि कानून किसान विरोधी है। इसलिए हम इस कृषि कानून को काला कानून कहते हुए निरस्त करने की मांग महामहिम राष्ट्रपति महोदय से कर रहे है,मोदी सरकार ने देश के किसान,खेत और खलिहान के खिलाफ षड़यंत्र किया है। केंद्र की भाजपा सरकार तीन काले कानूनों के माध्यम से देश की ‘हरित क्रांति’ को हराने की साजिश कर रही है। देश के अन्नदाता और भाग्य-विधाता किसान तथा खेत मजदूर की मेहनत को चंद पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रखने का षड़यंत्र किया जा रहा है।आज देश भर में 62 करोड़ किसान-मजदूर व 250 से अधिक किसान संगठन इन काले कानूनों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं,पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और उनकी सरकार सब ऐतराज दरकिनार कर देश को बरगला रहे हैं।सड़कों पर किसान मजदूरों को लाठियों से पिटवाया जा रहा है।संघीय ढांचे का उल्लंघन कर, संविधान को रौंदकर, संसदीय प्रणाली को दरकिनार कर तथा बहुमत के आधार पर मोदी सरकार ने संसद के अंदर तीन काले कानूनों को जबरन तथा बगैर किसी चर्चा और राय मशवरे के पारित कराया।देश की अनाज मंडी-सब्जी मंडी को खत्म करने से कृषि उपज खरीद व्यवस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। ऐसे में किसानों को न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)मिलेगा और न ही बाजार भाव के अनुसार फसल की कीमत।सरकार का दावा है कि अब किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है जो कि पूरी तरह से सफेद झूठ है। देश का 86 प्रतिशत किसान पांच एकड़ से कम भूमि का मालिक है। जमीन की औसत मिल्कियत दो एकड़ या उससे कम है। ऐसे में 86 प्रतिशत किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी-सब्जी मंडी के अलावा कहीं और परिवहन कर न ले जा सकता या बेच सकता है। मंडी प्रणाली नष्ट होते ही सीधा प्रहार स्वाभाविक तौर से किसान पर होगा।मंडियां खत्म होते ही अनाज-सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों-करोड़ों मजदूरों, आढ़तियों, मुनीम, ढुलाईदारों, ट्रांसपोर्टरों आदि की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी। अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही प्रांतों की आय भी खत्म हो जाएगी। प्रांत बाजार शुल्क और ग्रामीण विकास कोष के माध्यम से ग्रामीण अंचल का ढांचागत विकास करते हैं तथा खेती को प्रोत्साहन देते हैं। कृषि उत्पाद, खाने की चीजों और फल-फूल-सब्जियों की भंडारण सीमा को पूरी तरह से हटाकर आखिरकार न किसान को फायदा होगा और न ही उपभोक्ता को। बस चीजों की जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले मुट्ठीभर लोगें को फायदा होगा। जब भंडारण सीमा ही खत्म हो जाएगी, तब जमाखोरों और कालाबाजारों को उपभोक्ता को लूटने की पूरी आजादी होगी। केन्द्र सरकार द्वारा लाए गये तीनों कृषि कानून संघीय ढांचे पर हमला हैं। खेती और मंडियां संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, लेकिन मोदी सरकार ने राज्यों से विचार-विमर्श करना तक उचित नहीं समझा। खेती का संरक्षण और प्रोत्साहन स्वाभाविक तौर से राज्यों का विषय है, लेकिन उनकी कोई राय नहीं ली गई। उल्टा खेत खलिहान और गांव की तरक्की के लिए लगाए गए बाजार शुल्क और ग्रामीण विकास कोष को एकतरफा तरीके से खत्म कर दिया गया। यह अपने आप में संविधान की परिपाटी के विरुध्द है।महामारी के दौर में किसानों पर आई आपदा को मुट्ठीभर पूंजीपतियों के अवसर में बदलने की मोदी सरकार की साजिश को देश का अन्नदाता किसान और मजदूर कभी नहीं भूलेगा। इसलिए हम राष्ट्रपति महोदय से इन तीनों काले कृषि कानूनों को बगैर देरी निरस्त करने की मांग करते है।उक्त अवसर पर प्रमुख रूप से दिनेश कुमार राय,संदीप कुमार यादव,आशू यादव,आरीफ अली,अरूण कुमार तिवारी, छेदीलाल चौहान, गुड्डू चौहान,सावन नागर, जितेंद्र बेनवंशी,विजय गौतम, राजेश यादव आदि उपस्थित रहे।