क्या 72 साल में बालिकाओं को आजादी मिल पाई, स्त्रियों को समाज में वो सहभागिता मिल पाई ?

  

प्राथमिक शिक्षक संघ के संगठन मंत्री अश्वनी कुमार सिंह ने गणतंत्र दिवस की जनपद वासियों को बधाई देते हुए कहा कि 

 उनके गुरबत पर नहीं है एक भी दिया, 

जिनके खूं से जलते थे चिराग ए वतन 
जगमगा रहे हैं मकबरे उनके 
जो शहीदों के कफन बेचा करते थे
        भारत कई शताब्दियों से पश्चिम के ऊंटों और भेड़ों का चारागाह बना हुआ था। कुछ काल हुआ, जो उन भेड़ों और ऊंटों को भारतीय भूमि के गुलाबों को चरने से वंचित किया गया। फिर भी इसको रेगिस्तान उजाड़ समझकर ऊंट और भेड़ इस भारतीय भू-भाग के बहुतेरे स्थान घेर रखे हैं, चरते भी हैं और हंकाने पर मारने भी दौड़ते हैं।
लंगड़े और लूलों को यह बिछड़ने का स्थान और सुविधाएं भारतीय पुत्रों ने यदि फिर दिया तो सारी भारतीय भूमि की बागवानी का जिसे हमारे पुरानियों ने लगाया है, उजाड़ हो जाएगा।
अपने में भारतवासियों की चैतन्यता जमें, दृष्टि खुले। ऊंट और भेड़ों लंगड़े और लूले से अपने को मुक्त कर सके, उनका पश्चिम की तरफ मुंह कर सके, वहीं तरुण भारत माता का सपूत, महान उपासक, राम और बुद्ध के दिखाए हुए पगडंडी पर चलने वाला कहा जा सकता है।
     जितने लोग देश हित के लिए कुर्बान हो गए हैं। जिन्होंने अपना अपना सब कुछ त्याग दिया है। जो जान की बाज़ी लगाकर इस संसार से उठ गए हैं। वो सब उस बीज की तरह आज भारत की स्वतंत्रता के रूप में पल्लवित और प्रफुल्लित होकर हमें फल देने लगे हैं।
      स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पौत्र के रुप में कहना चाहता हूँ  क्या 72साल में बालिकाओं को आजादी मिल पाई, स्त्रियों को समाज में वो सहभागिता मिल पाई, क्या समाज के  अन्तिम व्यक्ति को न्याय मिल पाया, क्या राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति को हम एक छत दे पाये, क्या सुभाषचंद्र बोस,शहीदे आजम भगतसिंह के राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना को  साकार कर पाये, क्या अमीर गरीब के बीच की खाई को हम पाट पाये, क्या राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति को चिकित्सा सुविधाएं दे पाये
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