.......... देश की तब कितनी ललनाएं पोखरा नदियां अपनाती थीं
अंतहीन आज
अंतहीन आज- से मतलब आज सी व्यवस्था हर- दिन हो।।
काया बहुत ही साज चुकी तुम,
साजे विवेक ,नारी हर एक,
करे परिवर्तन जो मुमकिन हो।।
तुम स्वतंत्र भारत की अब तक
परतंत्र नागरिक थी नारी।।
तुम नारी हो, तुम चुप ही रहो
यह सुनती थीं नारी सारी।।
इतना ही नहीं अपनी लाडलियों को
सुनने सहने की शिक्षा देती थीं।।
कितना भी हो अन्याय मगर
चुप रहने की दीक्षा देती थीं।।
सुनते- सुनते,सहते- सहते
जीवन से अरूचि हो जाती थी।
देश की तब कितनी ललनाएं
पोखरा नदियां अपनाती थीं।।
सूनी होती थी गोद मात की
चुपके से आंसू बहाती थी।।
बिटिया को जीना सिखाया ना
यह सोच सोच पछताती थी।।
इतिहास पुराण कहीं पर भी
नारी जीवन ना सरल हुआ।।
हर जगह यही लिखा मिलता
नारी का जीवन गरल हुआ।।
नारी भी अपनी नियति मान
बस सांसें लेती रहती थी।।
मेरी अपनी इच्छा है नहीं
बस यही वो कहती रहती थी।।
पर आज समय सुहाना आया।।
नारी को जीवन जीना भाया।।
उसका जीवन मूल्यवान है,
आज की व्यवस्था ने बतलाया।।
आर्थिक सामाजिक शैक्षिक बल
देकर किया है पूरा काज।।
ऐसी व्यवस्था रहे हमेशा
और हो सुखद अंतहीन आज।।
डा पूनम श्रीवास्तव असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी विभाग सल्तनत बहादुर पी जी कालेज बदलापुर जौनपुर।
बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ योजना की सहसंयोजक।।