हम जैसे संस्कार करते हैं...
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तौहीन न कर शराब को कड़वा कहकर,ज़िंदगी के तजुर्बे उससे भी कड़वे होते हैं,
कहते हैं पीने वाले मर जाते हैं जवानी में,
हम तो बुजुर्गों को जवान होते देखते हैं।
कौन कहता है कि बुजुर्ग बूढ़े होते हैं,
पियें चाहे न पियें, जवाँ अरमान होते हैं,
मदिरा कड़वी होती है या मीठी होती है,
यारों ये तो पीने वाले ही बता सकते हैं।
अजीब उलझन होती है यह ज़िंदगी,
उम्र कहती है, कि सीरियस हुआ जाए,
जबकि बढ़ती हुई उम्र कहती है कि,
कुछ मौज अभी और कर ली जाये।
उलझन जैसी कोई बात मत पालो,
ज़िन्दगी जो भी है उसे जी भर जी लो,
क्या पता कि ये पल फिर कभी आयें,
न आयें, इन्हें बस अब अपना बना लो।
मनुष्य जीवन में इतना कमज़ोर होता है
कि वो अक्सर स्वप्न में भी डर जाता है,
बहादुर इतना होता है कि ग़लत काम
करते समय ईश्वर से भी नहीं डरता है।
दिया अन्धकार का भक्षण करता है,
तब वह कालिख उत्पन्न करता है,
वैसे ही हम जैसे संस्कार करते हैं,
आदित्य वही सन्तान को भी देते हैं।
कर्नल आदि शंकर मिश्र
जनपद—लखनऊ।