बनाते हो घरौंदा, हमें भी सिखाना.....

 बनाते हो घरौंदा, हमें भी सिखाना,

बेशकीमती बात न परिंदा भुलाना।
तेरे इस इल्म की दुनिया दीवानी,
चुगने यहाँ आबो-दाना तू आना।

छूना तू नभ को बहुत दूर-दूर तक,
फुर्सत में मुझको उड़ना सिखाना।
हवा के होंठों से रोज ही खेलते,
सुबह में आकर मुझे भी जगाना।

कितने शिकारी बिछाए हैं जाल,
उनसे कभी देखो धोखा न खाना।
मुंडेर पे बैठो या बैठो तू डाल पे,
दुश्मन से घोंसला अपना बचाना।

अंधेरा जब बैठेगा चाँद के ऊपर,
तब अपने बच्चों को लोरी सुनाना।
पड़े जब जरुरत मिट जाना वतन पे,
बच्चों में भी देशभक्ति जगाना।

शहर के शोर से कान फट रहे हैं,
सुकूँ के छाँव मुझे भी ले जाना।
जिस चित्रकार ने सिखाया ये इल्म,
मुझको भी उससे जरूर मिलाना।

रामकेश एम. यादव मुम्बई
(कवि व लेखक)

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